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आईएमए ने दिया ओमवीर अस्पताल को क्लीन चिट!

आईएमए ने दिया ओमवीर अस्पताल को क्लीन चिट!


-आईएमए वाले और मीडिया चाहें जितना डा. नवीन चौधरी और अर्चना का बचाव कर लें, क्लीन चिट देंदे लेकिन बचा नहीं पाएगें

-कहा डाक्टर की कोई गलती नहीं, आरोप इस लिए लगाते ताकि धन उगाही की जा सके, यही बयान डा. नवीन चौधरी ने भी मीडिया को दिया

-क्लीन चिट देने से पहले आईएमए ने डाक्टर से यह क्यों नहीं पूछा कि भाई मेरे जब आप की ड्यूटी मेडिकल कालेज महामाया अंबेडकरनगर में हैं, तो यहां आप ने कैसे आपरेशन किया? पत्नी अर्चना से यह क्यों नहीं पूछा कि जब आप मरवटिया में गाईनी के रुप में तैनात तो यहां क्या रहीं?

-आईएमए ने यह भी जानने का प्रयास नहीं किया कि जब आपरेशन हो रहे हैं, तो फिर आईसीयू की व्यवस्था क्यों नहीं?

-आईएमए ने क्लीन चिट देने से पहले यह भी जानने का प्रयास नहीं किया, क्यों इनके अस्पताल में टांडा के 85 फीसद आयुष्मान के मरीजों का इलाज और आपरेषन होता? क्यों कि इनका दो एंबुलेंस मेडिकल कालेज महामाया में खड़ा रहता?

-आईएमए ने यह भी जानने का प्रयास नहीं किया कि आखिर दो साल में इनके पास इतनी संपत्ति आई कहां से, एक-दो लाख के वेतन से तो अस्पताल खड़ा नहीं किया जा सकता

-आईएमए और मीडिया वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि मातम डा. नवीन चौधरी के घर और अस्पताल में नहीं बल्कि मृतक पल्टू के घर पर छाया हुआ, जाकर एक बार तो मिल जाइए, उसके बाद चाहें तो क्लीन चिट दे दीजिए

-आईएमए पर सबसे बड़ा सवाल क्यों नहीं इसके पदाधिकारी अन्य अस्पतालों में हुई मौतों के डाक्टर के पक्ष में बयान देने आए? क्यों सिर्फ डा. नवीन के पक्ष में बयान दिया, आईएमए अगर अन्य घटनाओं की चुप रहता तो उन पर सवाल नहीं उठता

आईएमए और मीडिया के उस बात को तो माना जा सकता, जिसमें धन उगाही करने की नीयत से प्राइवेट अस्पतालों पर आरोप लगाए जाते, लेकिन क्लीन चिट देने देने वाली बात किसी को हजम नहीं हो रही

बस्ती। ओमवीर अस्पताल को क्लीन चिट देने वाले आईएमए और कुछ मीडिया को क्लीन चिट देने से पहले यह अवष्य सोचना चाहिए था, कि मातम डा. नवीन चौधरी और संचालिका अर्चना चौधरी के घर और अस्पताल पर नहीं बल्कि मृतक पल्टू के घर पर छाया हुआ है। डिा. नवीन और अर्चना ने पिता को नहीं खोया, बल्कि वीरेंद्र प्रताप ने खोया। अनाथ डाक्टर दंपत्ति नहीं बल्कि वीरेंद्र प्रताप हुआ। जिस तरह आईएमए और मीडिया ने पल्टू की मौत के मामले में डाक्टर की गलती नहीं बल्कि परिजन की मानकर बयानबाजी कर रहे हैं, उसे लेकर सबसे अधिक सवालों के कटघरे में आईएमए और मीडिया ही आ रही है। क्यों कि क्लीन चिट देने से पहले आईएमए और मीडिया ने डाक्टर से यह क्यों नहीं पूछा कि भाई जब आप की ड्यूटी मेडिकल कालेज महामाया अंबेडकरनगर में हैं, तो यहां आप ने कैसे बस्ती में आकर अपने अस्पताल में आपरेषन किया? पत्नी अर्चना से यह क्यों नहीं पूछा कि जब आप मरवटिया सीएचसी में गाईनी के रुप में तैनात तो यहां आकर कैसे पड़ित परिवार को जान से मारने की धमकी दिया? आईएमए ने यह भी जानने का प्रयास नहीं किया कि जब आपरेषन हो रहे हैं, तो फिर आईसीयू की व्यवस्था क्यों नहीं? आईएमए ने क्लीन चिट देने से पहले यह भी जानने का प्रयास नहीं किया, कि इनके अस्पताल में टांडा के 85 फीसद आयुष्मान के मरीजों का इलाज और आपरेषन कैसे और क्यों और कौन करता? क्यों इनका दो एंबुलेंस मेडिकल कालेज महामाया में खड़ा रहता? आईएमए ने यह भी जानने का प्रयास नहीं किया कि आखिर दो साल में इनके पास इतनी संपत्ति आई कहां से आ गई, एक-दो लाख के वेतन से तो करोड़ों रुपये का आलीषान अस्पताल तो खड़ा नहीं किया जा सकता? आईएमए पर सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा कि पदाधिकारी अन्य अस्पतालों में हुई मौतों के डाक्टर के पक्ष में बयान देने क्यों नहीं सामने आए? क्यों सिर्फ डा. नवीन के पक्ष में बयान दिया? आईएमए के पदाधिकारी अन्य घटनाओं को लेेकर क्यों चुप रहे? क्यों नहीं प्रेसवार्ता करके स्थित को स्पष्ट किया? आईएमए और डाक्अर नवीन के उस बात को तो माना जा सकता, जिसमें धन उगाही करने की नीयत से प्राइवेट अस्पतालों पर आरोप लगाए जाने की बातें कही गई। लेकिन क्लीन चिट देने वाली बात किसी को भी हजम नहीं हो रही। इससे आईएमए की छवि को नुकसान पहुंचा। आईएमए के बयान और कुछ मीडिया की रिपोर्ट को लेकर पीड़ित परिवार बहुत ही दुखी है। परिवार को सबसे अधिक तकलीफ और कष्ट उन कुछ मीडिया वालों से है, जिन्होने जख्म पर मरहम लगाने के बजाए नमक छिड़क रहें है। वह भी पत्रकारिता को बेचकर। पीड़ित परिवार का कहना है, कि वह दो दिन तक सीएमओ और डीएम की कार्रवाई का इंतजार करेगें, उसके बाद वह डाक्टर नवीन चौधरी के अंबेडकरनगर से लेकर बस्ती तक के कालेकारनामों के खिलाफ मोर्चा खोलेंगें, कहा कि उनके पास सारे साक्ष्य और वीडियो हैं, जिससे पता चलेगा कि डा. नवीन सरकारी नौकरी की आड़ में क्या-क्या खेल खेल रहे हैं, और कितना धन अर्जित किया। आयुष्मान के कितने मरीज यह टांडा से अपने दोनों एंबुलेस में बस्ती लाकर ओमवीर अस्पताल में इलाज और आपरेषन करते रहें, उसका इन्हें हिसाब देना पड़ेगा। अपने पिता को खोने वाला वीरेंद्र प्रताप कहते हैं, कि अगर डाक्टर सीरिएस बता देते तो वह अपने पिता को वेंदाता ले जाते, क्यों कि उनके पिता का इलाज इससे पहले वेदांता में हो चुका है। कहते हैं, कि इन्होंने आपरेषन करने का नाम ही नहीं लिया और न कोई गंभीर होना बताया, कहा कि मैं कहता रह गया कि डाक्टर साहब पिता का बीपी कम हैं, होमोग्लोबिन सिर्फ पांच ग्राम है, आपरेषन मत करिए, लेकिन नहीं माने। कहा कि जब इस अस्पताल में एमसीआई के गाइड लाइन के अनुसार आईसीयू की सुविधा नहीं हैं, तो कैसे आपरेषन कर रहे हैं, जबकि इन्होंने स्वंय मीडिया को आपरेषन करने की बात कही। कहा कि इनके खिलाफ मेरे पास इतने सबूत हैं, कि इन्हे जेल जाने से कोई बचा नहीं सकता। डा. नवीन ने गलत आदमी से पंगा लिया है। जितना यह लोगों से सिफारिष करवा रहे हैं, उतना ही इनका अपराध सिद्व होता जा रहा है। कहा कि हमने तो अपना पिता खो दिया, लेकिन मैं नहीं चाहता कि और कोई अपना पिता डा. नवीन चौधरी जैसे डाक्टरों की लापरवाही से खो दें। आईएमए वाले और मीडिया चाहें जितना डा. नवीन चौधरी और अर्चना का बचाव कर लें, क्लीन चिट देंदे लेकिन बचा नहीं पाएगें।

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