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आखिर हर्रैया के नेताओं पर नेता ही क्यों नहीं विष्वास करते?

आखिर हर्रैया के नेताओं पर नेता ही क्यों नहीं विष्वास करते?

-यह लोग लोग गले भी मिलते, हाथ भी मिलाते, न्यौता हकारी भी करते, और मौका मिलने पर पीठ पर छुरा भी भोकते

बस्ती। हर्रैया के लोग ही सवाल करते हैं, कि आखिर हमारे क्षेत्र के नेता विष्वासी क्यों नहीं होतें? क्यों नहीं यहां का नेता एक दूसरे नेता पर विष्वास नहीं करता? क्यों नहीं इन नेताओं पर इनके लोग आंख बंद करके भरोसा करते? इतना समृद्विषाली होने के बावजूद अगर इन पर अपने ही लोग विष्वास करने को तैयार नहीं तो यह किसकी गलती है? इसी क्षेत्र में कई ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी है, जिसमें विष्वास का खून होते लोगों ने देखा। जो लोग साथ में खाए और जाम से जाम टकराया, वही जब बाहर निकले, तो मेज पर रखे हुए बोतल के वीडियो को वायरल कर दिया। नेता लाख सफाई देते रहे कि वह पानी का बोतल है, शराब का नहीं? लेकिन लोग विष्वास करने को तैयार ही नहीं हुए। जनता उन्हीं नेताओं पर थोड़ा बहुत विष्वास करती, जिनका आचरण और व्यवहार ठीक है। पीने-खाने और मौजमस्ती करने वाले नेताओं पर तो जनता बिलकुल ही विष्वास करने को तैयार नहीं है। जब से नेताओं ने आइडिएल बनना बंद कर दिया, जब से नेताओं पर जतना ने विष्वास करना बंद कर दिया। इससे आप समझ ही गए होगें कि क्यों नहीं लोग एक दूसरे पर विष्वास करते? क्यों हमेशा एक दूसरे के मन में यह डर बना रहता है, कि कहीं धोखा ना दे दें।  हर्रैया क्षेत्र के नेताओं के बारे में यह कहा जाता है, कि यह गलबहियां भी करते, हाथ भी मिलाते, साथ भी चलते, न्यौता हकारी भी करते, लेकिन पीठ में छूरा भोंकने के फिराक में भी रहते। यही कारण है, कि इस क्षेत्र के नेताओं में रिष्ते के मामले में कोई पारदर्शिता नहीं है। सबसे अधिक गिरावट रिष्ते में ही देखी गई। यह भी सही है, कि क्षेत्र के लोग डरपोक नहीं होते, मौका आने पर सबके सामने चढढ़ी बनियान तक उतारने में देरी नहीं लगाते, ऐसा ही एक नजारा रामगढ़ के कार्यक्रम में देखा गया। कौन कितने पानी हैं, सबकी पोल उसी कार्यक्रम में एक दूसरे ने खोली। यह भी कहा गया, कि जब विक्रमजोत के मामले में मुख्यमंत्री से मिलकर एफआईआर दर्ज कराया जा सकता है, तो उभाई के मामले में क्यों नहीं मुख्यमंत्री से मिले? इसका जबाव उनके पास भी नहीं था, जिन पर मुख्यमंत्री से मिलकर एफआईआर दर्ज करवाने का शक किया जा रहा है। वैसे भी उभाई के मामले में जिलेभर के नेताओं की पोलखोलकर रख दी है। नेताजी कहने से काम नहीं चलेगा कि मामला हाईलेबिल का है। कहीं ना कहीं इसका खामियाजा सत्ता और विपक्ष के नेताओं को चुनाव के दौरान भुगतना भी पड़ेगा। किसी भी नेता ने इसे लेकर सड़क पर बैठने की हिम्मत नहीं दिखाई। इस लिए नहीं दिखाया, क्यों कि यह मामला एक गरीब और पुलिस का था? जनता और पीड़ित परिवार इसे नेताओं की नाकामी मानती है। हर्रैया क्षेत्र में नेतागण दांव बहुत खेलते है। एक दूसरे को नीचा दिखाने की जो प्रवृत्ति बनी है, उसी के चलते एक दूसरे पर कोई भरोसा करने को तैयार नही। यहां के लोग यह कहते हुए भी नहीं थकते, कि जिसने भरोसा किया समझो धोखा खाया। भरोसे का खून भी सबसे अधिक इसी क्षेत्र में होता है। यहां पर कब कौन दोस्त बन जाता है, और कब दुष्मन हो जाता है, पता ही नहीं चलता। वैसे भी देखा, जाए तो सबसे अधिक बाबू साहबों का ही बोलबाला है। यहां की धरती ने एक से एक बढ़कर बाबू साहबों को जन्म दिया। एकाध दो को छोड़कर लगभग सभी विधायक भी बाबू साहब ही बने।

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