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आखिर ईओ कीर्ति सिंह को किसने सुपरवुमेन बनाया?

आखिर ईओ कीर्ति सिंह को किसने सुपरवुमेन बनाया?

-कब उड़कर यह मुंडेरवा से बभनान पहुच जाती है, और कब बभनान से उड़कर रुधौली आ जाती और कब फिर मुंडेरवा आ जाती चेयरमैन और बाबू को छोड़कर अन्य किसी भी पता नहीं चलता

-सारे नियम कानून को तोड़कर इन्हें तीन-तीन नगर पंचायतों का प्रभार दे दिया, आखिर इनमें कौन सी ऐसी खूबी है, जो अधिकारी इन पर इतना मेहबान

-इनके दर्शन के लिए तीनों नगर पंचायत की जनता तरस जाती, समस्या धरी की धरी रह जाती, इनका अधिकतर समय नगर पंचायतों में नहीं बल्कि राजधानी में बीतता

-तीनों नगर पंचायतों में गुणवत्ता विहीन काम कराने और फर्जीवाड़े का आरोप लग रहा, इनके पास इतना भी समय नहीं रहता कि यह देख ले कि नगर पंचायत रुधौली के सामने एक बोरी सीमेंट में 16 बोरी बालू मिलाई जा रही

-अपने चेहेते बाबू को बचाने के लिए दूसरे बाबू को दोषी बना दिया, इन्हें इतना तक नहीं  मालूम कि न तो यह चेयरमैन के खिलाफ रिपोर्ट कर सकती है, और न अपने समकक्ष ईओ के खिलाफ

बस्ती। किसी भी ईओ का ईमानदार होना उतना महत्वपूर्ण नहीं हैं, जितना अधिकारियों का चहेता/चहेती होना। अगर वह अधिकारियों का चहेता/चहेती है, तो उनके लिए सात खून माफ रहता है। ऐसे ईओ भले ही चाहे जितना भ्रष्टाचार क्यों न करें, नियम कानून क्यों न तोड़े वित्तीय अनियमितता क्यों न करें, कोई कुछ नहीं कहेगा। अधिकारी आंच तक नहीं आने देगें। तभी तो अधिकारी ऐसे ईओ के लिए नियम कानून तक ताक पर रखने को तैयार हो जाते है। अधिकारी चाहें तो किसी महिला ईओ को सुपरवुमेन बना सकते है। ऐसी ही कीर्ति सिंह नाम की सुपरवुमेन ईओ हैं, अधिकारियों ने इनकी क्षमता, ईमानदारी, दक्षता या चेहरा देखकर न जाने क्यों इन्हें सुपरवुमेन बना दिया? इन्हें एक नहीं दो नहीं बल्कि तीन-तीन नगर पंचायतों का प्रभार नियम कानून को तोड़ कर दे दिया, यह कब मुंडेरवा से उड़़कर बभनान जाती है, और बभनान से उड़कर रुधौली पहुंचती और उसके बाद न जाने कैसे यह उड़कर मुंडेरवा आ जाती है। यह कार्य कोई सामान्य ईओ नहीं कर सकता/सकती, यह काम तो कीर्ति सिंह जैसी कोई सुपरवुमेन ईओ ही कर सकती है। इनसे मुलाकात करना तीनों नगर पंचायतों की जनता के लिए आसान नहीं होता है। इनकी मुलाकात चहेते बाबू या फिर चेयरमैन से ही हो पाती, वह भी तब जब इन्हें चेक पर हस्ताक्षर करना होता है। इनके पास इतना भी समय नहीं रहता कि यह देख सके कि नगर पंचायत रुधौली के सामने जो तालाब का सौंदरीकरण हो रहा है, उसमें क्यों एक बोरी सीमेंट के साथ 16 बोरी बालू मिलाई जा रही है। इनका सुपरवुमेन की तरह काम करने का तरीका अधिकारियों को तो पसंद आता ही है, बल्कि चेयरमैन साहब लोग भी गदगद रहते है। कहते हैं, कि ऐसा ईओ सभी चेयरमैन को मिले। सुपरवुमेन की तरह काम करने का नतीजा रहा कि तीनों नगर पंचायतें भ्रष्टाचार की आग में जल रही है। तीनों नगर पंचायत की जनता गुणवत्ताविहीन निर्माण कराने और फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगाती आ रही है, लेकिन चहेते चेयरमैन और चहेती ईओ के कारण षिकायतें रददी की टोकरी में या तो डाल दी जाती है, या फिर एलबीसी कार्यालय की आलमारियों में दफन कर दी जाती है। यह अपने बाबू को बचाने के लिए दूसरे बाबू को बिना दोष के दोषी बना देती है। यह इतनी उर्जावान है, कि यह चेयरमैन के खिलाफ भी रिपोर्ट करती है, और अपने समकक्ष ईओ को भी दोषी बनाने से पीछे नहीं हटती। इन्हें इतना तक नहीं मालूम कि किसी भी चेयरमैन के खिलाफ यह रिपोर्ट नहीं कर सकती, लेकिन इन्होंने रुधौली के चेयरमैन को तो दोषी माना ही साथ ही अपने समकक्ष ईओं को भी लपेट दिया। जिसे लपेटना चाहिए था, उसे नहीं लपेटा और जिसे नहीं लपेटना चाहिए उसे लपेट दिया, इसी लिए इन्हें अघिकारियों का चहेती ईओ माना जाता है। क्यों कि नियम विरुद्व काम करने की हिम्मत वही ईओ जुटा पाता है, जिसे यह पूरा भरोसा रहता है, कि अधिकारी उन्हें बचा लेगें। कहना गलत नहीं होगा कि आज जो नगर पंचायतों और पालिका में भ्रष्टाचार व्याप्त हैं, और रहा है, उसके लिए और कोई नहीं बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों को ही जनता जिम्मेदार मानती है। कहती हैं, क्यों नहीं कोई डीएम/एडीएम तत्कालीन डीएम डा. राजशेखर की तरह एक्षन लेता? एक एक्षन ने बस्ती से लेकर लखनउ तक को हिलाकर रख दिया था। यह अलग बात हैं, कि राजनैतिक दबाव के चलते कोई कार्रवाई नहीं हुई, नहीं तो न जाने कितने लोग जेल की हवा खा चुके होते, और कितने निंलबित हो गए होते।

बभनान और रुधौली नगर पंचायतों का अतिरिक्त प्रभार देते समय अधिकारियों ने यह नहीं सोचा कि मुडेंरवा और बभनान की दूरी लगभग 60 किमी. और मुंडेरवा से रुधौली की दूरी लगभग 50 किमी. है। अगर इन्हें प्रभार देना ही था, तो बनकटी, गायघाट, गनेषपुर या फिर कप्तानगंज का प्रभार दे देते, लेकिन बभनान और रुधौली का प्रभार देने का मतलब धन की और समय दोनों की बर्बादी है। यह कब मुंडेरवा रहेगी, कब बभनान और रुधौली रहेगीं, क्षेत्र की जनता को नहीं मालूम। इनका कार्यकाल जिले में तीन साल से अधिक हो गया, फिर भी यह जमी हुई है। इसे कहते हैं, अधिकारी और चेयरमैन के गुडबुक में होना। वैसे भी गुडबुक मेें रहने वाले बाबूओं और चेयरमैनों को लाभ मिलता रहता है। अगर इनका कार्यक्रम देखा जाए तो मान लीजिए कि यह सप्ताह में एक दिन मुंडेरवा, एक दिन बभनान और एक दिन रुधौली, अब जरा अंदाजा लगाइए कि जो महिला ईओ 60 किमी. चलकर बभनान पहुंचेगी क्या वह निर्माण कार्यो की गुणवत्ता देखने जा पाएगी? एक दिन मंगलवार को आईजीआरएस की बैठक में निकल जाता है। जाहिर सी बात हैं, षनिवार को राजधानी भागने की चिंता भी रहती होगी। यहां पर जनता अधिकारियों को उतना जिम्मेदार नहीं मानती जितना कीर्ति सिंह को। देखा जाए तो महिला होने के नाते इन्हें अतिरिक्त प्रभार लेना ही नहीं चाहिए था, अगर मजबूरी/जरुरी था भी, तो करीब का प्रभार लेना चाहिए था, ताकि जिम्मेदारी से कार्यो का सम्पादन कर सके। कोई भी ईओ चाहे जितना क्षमतावान हो, वह चाहकर भी अपने मूल नगर पंचायत के साथ ईमानदारी नहीं बरत सकता। सवाल उठ रहा है, कि ऐसे में क्या कोई वह भी महिला कैसे तीन-तीन नगर पंचायतों का बोझ ईमानदारी से संभाल पाएगी? यही बात ईओ कीर्ति सिंह और अधिकारियों को सोचना है।

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