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आखिर जिला अल्प संख्यक अधिकारी पर क्यों नहीं दर्ज हुआ केस?

आखिर जिला अल्प संख्यक अधिकारी पर क्यों नहीं दर्ज हुआ केस?

-जिला अल्प संख्यंक कल्याण अधिकारी कार्यालय के बाबू और कंप्यूटर आपरेटर के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए

-अगर केंद्र ने पांच हजार छात्रों का वायोमेटिक प्रमाधिकरण न कराया तो 22-23 में तीन करोड़ के छात्रवृत्ति की योजना डीअईओएस के बाबू और कंप्यूटर आपरेटर ने बनाई थी

-प्रमाणिकरण में पांच हजार में से तीन हजार ऐसे छात्र निकले जो किस स्कूल के हैं, पता ही नहीं चला, इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने यूपी में इसकी जांच सीबीआई से कराने का निर्णय लिया

-डीआईओएस कार्यालय का कंप्यूटर आपरेटर सोएब ने खुद के नाम, पत्नी के नाम और माता के नाम फर्जी आईडी जनरेट कर दस लाख से अधिक छात्रवृत्ति को हड़पा

बस्ती। जिला अल्प संख्यक कल्याण विभाग से इंटर तक के बच्चों को मिले वाली छात्रवृत्ति घोटाले में 24 कालेज के प्रबंधकों और नोडल के खिलाफ मुकदमा तो एक करोड़ 46 लाख के घोटाले में तो दर्ज हो गया, लेकिन सवाल उठ रहा है, कि जिसके कार्यकाल में घोटाला हुआ उस जिला अल्प संख्यक अधिकारी और इसी विभाग के बाबू और कम्पयूटर आपरेटर के खिलाफ क्यों नहीं मुकदमा दर्ज हुआ? जबकि जांच रिपोर्ट विभाग के बाबू दोषी पाए जा चुके है। सबसे अधिक हैरान करने वाली बात यह है, कि डीआईओएस कार्यालय में दस हजार के मानदेय पर कार्य करने वाला कंप्यूटर आपरेटर सोएब के द्वारा पत्नी सलमा और माता कंहकशा और खुद के नाम फर्जी आईडी बनाकर दस लाख से अधिक का घोटाला करना रहा। यह घोटाला 21-22 की छात्रवृत्ति में हुई। घोटालेबाजों की योजना 22-23 में भी करोड़ों के हड़पने की बनी थी, यह लोग कामयाब भी हो जाते अगर भारत सरकार पांच हजार बस्ती के छात्रों का बायोमेटिक प्रमाणिकरण न कराती। जानकर हैरानी होगी, कि पांच हजार में से तीन हजार छात्र ऐसे पाए गए, जिनका कोई अता-पता नहीं, यह बच्चे किस विधानय के हैं, इसका भी पता नहीं चला। इसे देखते हुए भारत सरकार ने यूपी में छात्रवृत्ति घोटाले की जांच सीबीआई से कराने का निर्णय लिया हैं, कभी भी इसकी घोषणा हो सकती है। तब अरबों रुपये के घोटाले का खुलासा हो सकता है। अगर कहीं 22-23 में भी भुगतान हो गया होता तो सरकार का प्रदेश में अरबों रुपये का नुकसान होता। बार-बार किहा जा रहा है, कि अगर डीआईओएस और जिला अल्व संख्यक अधिकारी का बाबूओ और कंप्यूटर आपरेटर पर नियंत्रण होता तो फिर किसी सोएब की इतनी हिम्मत नहीं पड़ती कि वह खुद के नाम, पत्नी और माता के नाम फर्जी आईडी बनाकर छात्रवृत्ति का लाखों रुपया हजम कर पाते। अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकते, क्यों कि अंतिम हस्ताक्षर उन्हीं का होता है। सोएब इतना चालाक निकला कि कहीं पर वह सोएब बनकर तो कहीं पर सोएब अंसारी बनकर छात्रवृत्ति हड़पा। आखिर कोई भी सरकार अल्प संख्यकों के लिए योजना ही तो बना सकती है, बजट दे सकती है, लेकिन बजट का उपयोग/दुरुपयोग तो जिले के अधिकारियों पर ही निर्भर करता है। अगर कोई बाबू या फिर कंप्यूटर आपरेटर घोटाला कर सकता है, तो जरुा उसमें साहबों की भी सहमति रही होगी। हिस्सा भी हो सकता है।

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