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आखिर मानवेंद्र श्रीवास्तव पर डीओ इतनी मेहरबान क्यों?

आखिर मानवेंद्र श्रीवास्तव पर डीओ इतनी मेहरबान क्यों?

स्ती। भले ही जिला कृषि अधिकारी के पास अपार अनुभव हो लेकिन बस्ती में उनका न तो अनुभव काम आ रहा है, और न या नियम से काम ही कार्य कर पा रहे है। खाद के वितरण और आंवटन के मामले में तो यह असफल अधिकारी साबित हो ही चुके हैं, और अब प्रशासनिक कार्य में इनकी असफलता सामने आ रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो यह मानवेंद्र श्रीवास्तव के मामले में शासनादेश के विरुद्व कार्य न करते। डीओ साहब ने मानवेंद्र श्रीवास्तव में न जाने ऐसा क्या देख लिया कि इन्हें इतने सारे प्रभार दे दिया। मानवेंद्र श्रीवास्तव के मामले में निलंबन से लेकर जांच अधिकारी बनाए जाने तक, बहाली और अटेैचमेंट से लेकर प्रभार देने तक के मामले में जिला कृषि अधिकारी पर सवाल उठ रहें, और पूछा जा रहा है, कि आखिर एक बाबू पर साहब की इतनी मेहरबानी क्यों? कहीं यही मेहरबानी साहब के लिए मुसीबत का कारण न बन जाए। सवाल उठ रहा है, कि जो व्यक्ति तीन दिन पीडी डीआरडीए के कार्यालय में काम करेगा और सिर्फ तीन दिन जिला कृषि कार्यालय में रहेगें, इतनी व्यस्तता होने के बावजूद क्या यह स्थापना पटल, बीज प्रक्षेत्र एवं बीज लाइसेंस का पटल के दायित्व एक साथ निभा पाएगें? सवाल तो यह भी उठ रहा है, कि जिस स्थापना पटल की ठीक से जिम्मेदारी न निभाने के कारण इन्हें निलंबित किया गया, बहाली के बाद उसी स्थापना पटल का प्रभार क्यों दे दिया गया? सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है, कि गंभीर आरोपों में निलंबित होने वाले को क्यों नहीं कोई कठोर दंड दिया गया? क्यों सिर्फ भर्त्सना करके छोड़ दिया गया, डीओ साहब भर्त्सना कोई कार्रवाई नहीं होती। बहाली के बाद निदेशक के द्वारा लिपिक संवर्ग के कार्य दायित्व के लिए निर्गत आदेश का भी पालन नहीं किया गया, और मलाईदार पटल दे दिया गया। निलंबन के बाद उसी कार्यालय में अटैच करना और उसी कार्यालय के ग्रुप एक के अधिकारी को जांच अधिकारी बनाना यह साबित करता है, कि यह सबकुछ पूर्व नियोजित कार्यक्रम के तहत किया गया। ऐसा लगता है, कि मानो साहब को लिपिक से कोई खतरा हो। लिपिक प्रेम कहीं साहब के लिए मुसीबत न खड़ी कर दे। वैसे भी जिस आरोप में निलंबित किए गए, उसमें साहब भी फंस रहे है। चूंकि यह साहब हैं, और इनके पास मनी और पावर दोनों हैं, वरना इन्हें भी लिपिक के साथ में निलंबित होना चाहिए था।

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