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आखिर नित्यानंद सिंह किस डीएम के दोषी, प्रियंका निरंजन या अंद्रा वामसी के?

आखिर नित्यानंद सिंह किस डीएम के दोषी, प्रियंका निरंजन या अंद्रा वामसी के?

-डीएम प्रियंका निरंजन ने इन्हें निर्दोश माना, और डीएम अंद्रा वामसी ने दोषी, एक ने कार्रवाई के लिए अनुभाग-1 को दूसरे ने दोषियों को बचाने के लिए अनुभाग-3 को लिखा, डीएम को गुमराह करने का सूत्रधार एलबीसी बना

-सवाल उठ रहा है, कि मजदूरी का छह लाख 10 हजार 740 रुपया किसी और बाबू ने निकाला तो जांच अधिकारी सीआरओ और ईओ कीर्ति सिंह ने कैसे चेयरमैन और ईओ के साथ में नित्यानंद सिंह को दोषी मान लिया

-प्रभारी ईओ कीर्ति सिंह अपनी आख्या में बैंक स्टेटमेंट भी देती है, लेकिन उसे देखती तक नहीं, देखी होती तो समझ में आता कि पैसा किस बाबू ने निकाला

-चेयरमैन धीरसेन और ईओ राम समुख को बचाने के लिए नित्यानंद सिंह को खुन्नस निकालने के लिए बलि का बकरा बना दिया, पैसा किसी और ने निकाला और दोषी लिपिक को बना दिया

-जिस बाबू ने पैसा निकाला और जिस लक्ष्य फाउंडेशन ने अनियमितता किया उसे जांच अधिकारी और ईओ ने बरी कर दिया, और जिसने कुछ नहीं किया, उसके खिलाफ रिकवरी निकाल दिया

-जांच अधिकारियों और ईओ ने घोटाला न होते हुए भी इसे घोटाला करार दे दिया, सिर्फ विधिक प्रक्रिया न अपनाए जाना माना जाता, अगर पैसा मजदूरों के खाते में भेजा होता तो समस्या ही न खड़ी होती

-आखिर क्यों प्रशासन ईओ कीर्ति सिंह पर इतना मेहरबान? तीन-तीन नगर पंचायतों का प्रभार दे दिया, अपना मूल नगर पंचायत मुंडेरवा संभाल ही नहीं पा रही है, और चली हैं, बभनान और रुधौली संभालने

-यह जांच एमएलसी प्रतिनिधि हरीश सिंह के शिकायत पर शासन की ओर से कराया गया

बस्ती। अगर एक ही प्रकरण में दो डीएम की अलग-अलग रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी तो डीएम पर सवाल उठेगा ही? किस डीएम की रिपोर्ट को सही माना जाए और किसकी गलत। एक ही प्रकरण में कार्रवाई के लिए एक डीएम अनुभाग-1 को लिखते हैं, और दूसरे डीएम अनुभाग-3 को, जब शासन ने पूछा कि इसके लिए दोषी कौन-कौन हैं, तो तत्कालीन डीएम प्रियंका निरंजन ने 26 अगस्त 23 को अनुभाग-1 को लिखे पत्र में रुधौली नगर पंचायत के तत्कालीन ईओ राम समुख और वर्तमान चेयरमैन धीरसेन को छह लाख 10 हजार 740 रुपये की अनियमितता के लिए दोषी माना। लिखा कि नगर पालिका अधिनियम 1916 के द्वारा बोर्ड द्वारा प्राप्त अधिकारों का हनन करते हुए माह अप्रैल 18 में कार्यरत 70 श्रमिकों के सापेक्ष 68 श्रमिकों का भुगतान उनके खाते में आरटीजीएस द्वारा न करके मास्टररोल पर उनके हस्ताक्षर/अगूंठा प्राप्त करके किया गया। एसडीएम हर्रैया की जांच रिपोर्ट कहती है, कि चार जुलाई 18 को जब स्थलीय जांच की गई तो उपस्थित 22 मजदूरों के द्वारा शपथ बयान दिया गया कि उन्हें मार्च 2018 तक लक्ष्य फाउंडेषन के द्वारा कम मानदेय मिला। जबकि अप्रैल 2018 तक नगर पंचायत ने पूरा भुगतान किया। जो उन्होंने मस्टरोल पर रिसीव कर नकद प्राप्त किया। जबकि 11 जुलाई 18 को की गई स्थलीय जांच में 29 श्रमिकों द्वारा बयान दिया गया, जिसमें पाया गया कि उन्हें मस्टरोल से अंकित मानदेय मिला। एसडीएम ने कम भुगतान और अनियमित भुगतान किए जाने की पुष्टि की। इस प्रकार अध्यक्ष और तत्कालीन ईओ रुधौली दोषी है। डीएम की इस रिपोर्ट में कहीं पर भी लिपिक नित्यानंद सिंह को दोषी नहीं माना गया। दोषी ईओ और चेयरमैन को माना गया। इस मामले में शासन की ओर से चेयरमैन को कारण बताओ नोटिस भी जारी हुआ। आरोप तो सीधे लक्ष्य फाउंडेशन पर कम मानदेय देने का लगा। तो फिर क्यों नहीं लक्ष्य फाउंडेशन के खिलाफ कार्रवाई हुई? और क्यों नहीं उस बाबू के खिलाफ कार्रवाई हुई, जिसके नाम से चेक कटा? ऐसा लगता है, कि मानो बाबू को बचाने के लिए सभी लोगों ने मिलकर नित्यानंद सिंह को बलि का बकरा बना दिया। ईओ कीर्ति सिंह ने भी आख्या देते समय बैंक स्टेटमेंट को नहीं देखा जो उन्होंने स्वंय रिपोर्ट के साथ लगाया था, जांच अधिकारी ने भी वही गलती की जो कीर्ति सिंह ने किया। जिसका परिणाम एक ऐसे लिपिक को दोषी बना दिया गया, जिसका कोई दोष नहीं। अब आ जाइए तत्कालीन डीएम अंद्रा वामसी की वह रिपोर्ट जो गलती से या जानबूझकर अनुभाग-3 को इसी प्रकरण में 17 मई 24 को भेजा गया। पहली जांच तत्कालीन एडीएम और एसडीएम ने किया, और दूसरी जांच तत्कालीन सीआरओ संजीव ओझा ने भेजा। रिपोर्ट में वही सबकुछ हैं, जिसकी जांच एडीएम और एसडीएम ने की। बस डीएम की इस रिपोर्ट में ईओ और चेयरमैन के साथ लिपिक नित्यानंद सिंह को भी समान रुप से दोषी बताया गया। रिकवरी भी समान रुप से करने की बात कही गई। अब सवाल उठ रहा है, कि जब नित्यानंद सिंह ने पैसा निकाला नहीं तो वह दोषी कैसे हो सकते है? इनका इतना दोष अवष्य हो सकता है, कि इन्होंने चेयरमैन और ईओ के कहने पर कार्यालय के ही एक बाबू को विधिक प्रक्रिया अपनाए बिना 22 मई 18 को चेक संख्या 248497 के जरिए 620915 रुपये का काटकर दे दिया, जो इन्हें नहीं करना चाहना चाहिए था। ध्यान देने वाली बात यह है, कि चेक पर ईओ और चेयरमैन दोनों के हस्ताक्षर होते है। नोटशीट पर भी इन्हीं दोनों की सहमति के बाद चेक काटा जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि इन दोनों ने जानबूझकर बाबू के नाम चेक कटवाया। जिस बाबू के नाम चेक कटा, वह भी बरी हो गया। बड़ा सवाल यह है, कि मजदूरी का छह लाख 10 हजार 740 रुपया किसी और बाबू ने निकाला तो जांच अधिकारी सीआरओ और आख्या देने वाली ईओ कीर्ति सिंह ने कैसे चेयरमैन और ईओ के साथ में नित्यानंद सिंह को दोषी मान लिया? किस एंगल से इन सभी को नित्यानंद सिंह दोषी नजर आ गए। इसके लिए ईओ और सीआरओ से भी सवाल जबाव होना चाहिए। एलबीसी कार्यालय के लोगों से भी सवाल जबाव होना चाहिए, कि कैसे एक ही प्रकरण में दो अनुभाग को कार्रवाई के लिए डीएम की ओर से पत्र लिखा गया। जिम्मेदारी तो एलबीसी कार्यालय के लोगों की भी बनती, वैसे कार्यालय प्रभारी के रुप में जिम्मेदारी एडीएम की भी बनती है।

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