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आखिर उद्यमी कंचन पांडेय को मिल ही गई सफलता

आखिर उद्यमी कंचन पांडेय को मिल ही गई सफलता

-साई कृपा टेडर्स गनेशपुर की संचालक कंचन पांडेय ने दिखा दिया कि एक कारोबारी के लिए कारोबार करना उतना आसान नहीं जितना सरकार कहती

-इन्होंने राजकीय मिनी औद्यौगिक आस्थान गनेशपुर में बैंक से लोग लेकर लगभग एक करोड़ की लागत से बिजली का सामान बनाने वाली एक यूनिट का स्थापना किया, लेकिन शहर की बिजली न होने से यूनिट नहीं चल पा रही

-इन्होंने शहर का बिजली लेने के लिए डीएम को लिखा, कमिष्नर को लिखा, बिजली विभाग के चीफ इंजीनियर से लेकर एक्ईएन और जेई से मिली, नगर पंचायत गनेशपुर की अध्यक्ष को भी लिखा, लेकिन हर जगह से इन्हें निराशा हाथ लगा

-मजबूर होकर इन्होंने क्षेत्रीय एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह को लिखा, उन्होंने तीन बार चीफ इंजीनियर को पत्र लिखा और फोन से बात भी किया, एमडी विधुत को भी लिखा और उनसे भी बात किया, लेकिन बिजली नहीं मिली

-सदन में सवाल भी उठाया, जबाव में भी मामले को उठाया फिर भी बिजली नहीं मिली, हर कोई इनसे बिजली लगवाई सात लाख का खर्चा मांग रहा था

-इनकी समझ में नहीं आ रहा था, आखिर उनसे बिजली खर्चे के रुप में क्यों सात लाख जमा करने को कहा जा रहा है, जब कि बिजली देना सरकार की जिम्मेदारी

-फिर इन्होंने थकहार उपायुक्त उद्योग हरेंद्र यादव से मदद मांगी, उन्होने बिजली विभाग से स्टीमेट मांगा और अपनी संस्तुति के साथ विभाग से बजट मांगा

-लगभग दो माह बाद अब जाकर विभाग ने बिजली विभाग के अधिशाषी अभियंता के नाम टीडीएस की कटौती करके पांच लाख 19 हजार 458 रुपया टासंफर कर दिया

-कंचन पांडेय की शिकायत उन उद्योग एवं व्यापार बंधु की होने वाली बैठकों में शामिल होने पदाधिकारियों से है, जो सिर्फ चाय और समोसा खाने जाते, यह लोग उद्यमियों की आवाज तक नहीं उठाते

-सवाल उठ रहा है, कि कैसे कोई उद्यमी कारोबार करें और कैसे हो वी तरक्की करे जब उसे बिजली ही नहीं मिलेगी, जब कि बिजली किसी भी उद्योग के लिए अनिवार्य

-कंचन पांडेय सरकार की उस नीति का एक उदाहरण है, जिसके चलते इन्हें सिर्फ बिजली के लिए इतना पापड़ बेलना पड़ा, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है, कि प्रदेश की व्यवस्था कितना चरमरा गई

बस्ती। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि जब सरकार किसी उद्यमी को बिजली ही उपलब्ध नहीं करा पाएगी तो मिनी उद्योग स्थापित करने से क्या फायदा? कहने को तो कागजों में राजकीय मिनी औद्यौगिक आस्थान गनेशपुर में स्थापित हो गया, लेकिन किसी भी नेता औी किसी भी अधिकारी ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि कितने उद्योग चल रहे हैं, और कितने बिजली के अभाव में बंद पड़े है। मीडिया की ओर से कमिष्नर और डीएम से कई बार कहा भी गया और सुझाव भी दिया गया, कि एक बार गनेशपुर का निरीक्षण कर लीजिए, ताकि कमिंया दूर हो सके, और उद्योग संचालित हो सके, लेकिन इसके लिए न तो अधिकारी और न नेता किसी के पास समय नहीं। सबसे खराब स्थित उन नौजवान उद्यमियों की हैं, जिनके सपने चकनाचूर हो रहे है। बैंक से लोन लेकर यूनिट स्थापित किया, लेकिन बिजली सहित अन्य बुनियादी सुविधा न मिलने कारण यूनिट डप्प पड़ा है। ऐसे उद्यमियों के सामने सबसे बड़ी समस्या बैंक के लोन की अदायगी को लेकर हो रही है। ब्याज पर ब्याज बढ़ रहा है। इसी का शिकार एक होनहार महिला उद्यमी कंचन पांडेय हुई। एक करोड़ से अधिक लगाकर भी आज तक इन्होंने एक रुपये का कारोबार नहीं किया, मुनाफे की तो बात ही छोड़ दीजिए। पिछले एक साल से अधिक समय से यह निरंतर शहर की बिजली के लिए दूषित व्यवस्था से लड़ाई लड़ रही है, कोई ऐसा दरवाजा नहीं जहां पर लगे कालवेल को न दबाया हो। एक तरह उद्योग ठप्प होने का गम तो दूसरी तरफ बैंक के ब्याज का दर्द समा रहा था। बिजली पाने के लिए एक महिला उद्यमी को जितना जद्वोजहद कीना था, उससे अधिक कर लिया, फिर भी बिजली नहीं मिली और न ही उद्योग की चल पाया।

आइए हम आप को बताते हैं, इन्होंने शहर की बिजली पाने के लिए कितना पापड़ बेला। यकीन मानिए इनकी समस्या और परेशानी सुनकर कोई भी राजकीय सेक्टर में उद्योग लगाना पसंद नहीं करेगा। साई कृपा टेडर्स गनेशपुर की संचालक कंचन पांडेय ने दिखा दिया कि एक कारोबारी के लिए कारोबार करना उतना आसान नहीं जितना सरकार कहती है। इन्होंने राजकीय मिनी औद्यौगिक आस्थान गनेशपुर में बैंक से लोग लेकर लगभग एक करोड़ की लागत से बिजली का सामान बनाने वाली एक यूनिट का स्थापना किया, लेकिन शहर की बिजली न होने से यूनिट नहीं चल पा रही। इन्होंने शहर का बिजली लेने के लिए डीएम को लिखा, कमिष्नर को लिखा, बिजली विभाग के चीफ इंजीनियर से लेकर एक्ईएन और जेई से मिली, नगर पंचायत गनेशपुर की अध्यक्ष को भी लिखा, लेकिन हर जगह से इन्हें निराशा हाथ लगा। मजबूर होकर इन्होंने क्षेत्रीय एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह को लिखा, उन्होंने तीन बार चीफ इंजीनियर को पत्र लिखा और फोन से बात भी किया, एमडी विधुत को भी लिखा और उनसे भी बात किया, लेकिन बिजली नहीं मिली। सदन में सवाल भी उठाया, जबाव में भी मामले को उठाया फिर भी बिजली नहीं मिली, हर कोई इनसे बिजली लगवाई सात लाख का खर्चा मांग रहा था। इनकी समझ में नहीं आ रहा था, आखिर उनसे बिजली खर्चे के रुप में क्यों सात लाख जमा करने को कहा जा रहा है, जब कि बिजली देना सरकार की जिम्मेदारी है। फिर इन्होंने थकहार उपायुक्त उद्योग हरेंद्र यादव से मदद मांगी, उन्होंने बिजली विभाग से स्टीमेट मांगा और अपनी संस्तुति के साथ विभाग से बजट की मांग की। मुस्किल तो था, लेकिन उपायुक्त के प्रयास से सफलता मिल ही गई। लगभग दो माह बाद अब जाकर विभाग ने बिजली विभाग के अधिशाषी अभियंता के नाम टीडीएस की कटौती करके पांच लाख 19 हजार 458 रुपया टासंफर कर दिया। कंचन पांडेय की षिकायत उन उद्योग एवं व्यापार बंधु की होने वाली बैठकों में शामिल होने पदाधिकारियों से है, जो सिर्फ चाय और समोसा खाने जाते, यह लोग उद्यमियों की आवाज तक नहीं उठाते। सवाल उठ रहा है, कि कैसे कोई उद्यमी कारोबार शुरु करें और कैसे हो वह तरक्की करे जब उसे बिजली ही नहीं मिलेगी, जब कि बिजली किसी भी उद्योग के लिए अनिवार्य होता है। कंचन पांडेय सरकार की उस नीति का एक उदाहरण है, जिसके चलते इन्हें सिर्फ बिजली के लिए इतना पापड़ बेलना पड़ा, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है, कि प्रदेश की व्यवस्था कितना चरमरा गई है।

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