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आलोकजी पूरा जेडीई कार्यालय लूट लीजिए, आपका कुछ नहीं होगा!
-78 लाख की कमाई में चाहें फारचूपर लीजिए, चाहंे आलीशान कमान बनवाइए, मौका मिले तो और भी गरीबों को चूसिए
-जब तक आपके साथ जेडीई और जांच अधिकारी हैं, आप पर आंच नहीं आ सकती, शिकायतकर्त्ताओं को चिल्लाने दीजिए, आखिर एक साल से चिल्ला रहे, क्या कर पाएं?
-चिंता मत करिए इस 2.78 करोड़ के बंदरबांट में आप अकेले नहीं, बल्कि जेडीई, कंपनी और जांच अधिकारी भी शामिल
-जांच अधिकारी साहब 278 प्रबंधकों ने भी चपरासियों को ज्वाइन कराने के नाम 50-50 हजार लिया, प्रबंधकों ने एक करोड़ 39 लाख मिलकर बंदरबांट किया
बस्ती। जेडीई कार्यालय के कनिष्ठ लिपिक आलोक कुमार दूबे को जिले भर के लोग सलाह दे रहे हैं, कि आप चाहें तो पूरा जेडीई कार्यालय लूट लीजिए, जब तक जेडीई आप के साथ हैं, आपका कोई बाल भी बांका नहीं सकता। नेता और षिकायकतर्ता भी कुछ नहीं कर सकते, अगर आप का कुछ होना होता तो अब तक हो गया होता, आप को इस लिए भी चिंता करने की आवष्यकता नहीं है, क्यों कि जेडीई और जांच अधिकारी आपके साथ है। ध्यान में रखिएगा कि भले ही चाहें आप लोगों ने मिलकर गरीब चपरासियों का खून चूसा, लेकिन आप के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी, जाइए परिवार के साथ मजा कीजिए कमाए गए 78 लाख का चाहें फारचूनर खरीदिए या चाहें तो आलीशान मकान बनवाइए जो आपके परिवार की आवष्यकता हो वे सारे काम कर डालिए। पैसा कम पड़ जाए तो फिर इसी तरह का कोई घोटाला कर लीजिए। आलोकजी आप इस लायक थे, तभी तो जेडीई साहब ने आपसे सीनियर्स बाबूओं को नजरंदाज करके आप को आउटसोसिंग और जेडीए कार्यालय का पूरा काम सौंप दिया। वैसे भी साहब लोग उन्हीं लोगों को सारे नियम कानून तोड़कर मलाईदार पटल देते हैं, जो उन्हें लाभ पहुंचा सके। खुद भी मलाई खाए और साहबों को भी खिलाता रहे। जो भ्रष्ट किस्म के अधिकारी होते हैं, उन्हें आप जैसे बाबू बहुत पंसद आते है। ऐसे अधिकारियों को ईमानदार बाबू नहीं बल्कि बेईमान बाबू चाहिए।
चूंकि आप अधिकारी के फ्रेम में फिट पड़ते हैं, इस लिए आप को मलाईदार पटल दे दिया गया। 2.78 करोड़ का जबाव आपको नहीं बल्कि जेडीई को देना होगा और वह भी क्यों देगें जब उन्होंने कोई सरकारी धन का गबन ही नहीं किया। कंपनी भी क्यों देगी, उसे चपरासी देना था, उसे दे दिया, और आप भी क्यों जबाव क्यों देगें, आप का काम टेंडर निकालना और एजेंसी चयनित करना वह तो आप ने ईमादारी से निभा दिया तो जबाव किस बात का। रही बात आप को एक लाख देने वाले रामसुमेर यादव की तो अगर वह पैसा खाते में दिए होते तो साबित कर पाते लेकिन जब नकद दिया तो कैसे साबित कर पाएगें। वैसे भी घूस लेना और देना दोनों समान अपराध माना गया है। इस लिए चिंता मत करिए, आराम से 78 लाख का परिवार के साथ में मजा लीजिए। इस तरह का काम जेडीई कार्यालय में न जाने कितना होता रहता है। न जाने कितने लोग काम कराने का जेब में पैसा रखकर जाते है। मांगने की आवष्कता ही पड़ती। क्यों कि काम कराने वालों को मालूम हैं, कि जब तक साहब और बाबू की जेब गरम नहीं करेगंे, तब तक न तो बाबू फाइल निकालेगा और न साहब ही कलम चलाएगें। जितने भी प्रबंधकीय विवाद होते हैं, उसका हल जेडीई कार्यालय के द्वारा ही होता है, और यहां पर उन्हीं विवादों का हल होता है, जिसके लिफाफे का वजन अधिक होता है। यहां पर बाबूओं और साहबों का फेवीकोल जैसा अटूट जोड़ देखने को मिलता है। कोई भी बाबू अगर डेली उसकी जेब और साहबों की जेबों में मोटा लिफाफा नहीं गया, समझो उस दिन बाबूओं की नाकामी मानी जाती है। वह बाबू क्या जो साहबों का ख्याल न रखे, और जिस कार्यालय में आलोक कुमार दूबे जैसा बाबू रहेगें उस कार्यालय के साहब बहुत खुश रहते है।
अब आप इसी बात से अंदाजा लगाइए कि चपरासियों की नियुक्ति में सिर्फ जेडीई कार्यालय में 2.78 करोड़ का बंदरबांट हो गया और किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। शिकायत पर शिकायतें हुई लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। एक साल से जांच अधिकारी/उपनिरीक्षक संस्कृत पाठशालाएं सत्येंद्र कुमार पांडेय जांच की फाइल को दबाए बैठे है। इन्हें जरा सा भी अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं, एहसास होगा कैसे? जब यह भी बहती गंगा में हाथ धो बैठे है। इन्होंने जितनी बार शिकायतकत्ताओं से सबूत और शपथ पत्र मांगा दिया गया, कमिष्नर तक से शिकायत की गई, लेकिन इनके कान में जूं तक नहीं रेंग रहा, और जब तक जांच नहीं होगी, तब तक कार्रवाई नहीं होगी? यह बात बाबू, कंपनी और जेडीई साहब अच्छी तरह जानते है। इसे आप लोग एक सुरक्षित घोटाला भी मान सकते है। बहती गंगा में 278 स्कूल के प्रबंधक जिसमें बहुत कम ऐसे होगें जिन्होंने ज्वाइन कराने के नाम पर चपरासियों से 50 हजार न लिया हो। इसकी शिकायत सूदीपुर के चपरासी कर भी चुका, जिसे प्रबंधक ने अपने स्कूल से मुक्त कर दिया।
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