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अठदमा की प्रधान आकृति शुक्ला ने दो बार निकाला मानदेय

अठदमा की प्रधान आकृति शुक्ला ने दो बार निकाला मानदेय

-सारे नियम कानून तोड़ कर 15वें वित्त आयोग से सचिव के साथ मिलकर 25-25 हजार का निकाला दो बार मानदेय, जबकि प्रधानों का मानदेय राज्य वित्त आयोग से निकालने का प्राविधान

-इतना ही नहीं विज्ञापन का जो भुगतान अखबार को करना था, उसे देव कम्यूनिकेशन को 6135 रुपया कर दिया

-मनरेगा में बिना काम कराए भुगतान करने और संपन्न लोगों के खाते में पैसा भेजने सहित अन्य आरोप लगाकर मुख्यमंत्री सहित डीएम और सीडीओ से जांच करवाने और विधिक कार्रवाई करने की मांग गांव के एक व्यक्ति ने की

-बहादुरपुर के अठदमा ग्राम पंचायत में आजादी के बाद सिर्फ एक बार आरक्षण हुआ, अवशेष एक ही वर्ग और एक ही परिवार के पास प्रधानी रही

-जिस ब्लॉक का संचालन तीन-तीन नकली प्रमुख करेगें, उस ब्लॉक के ग्राम पंचायतों की हालत अठदमा जैसी होगी

बस्ती। कहा भी जाता है, कि जिस बहादुरपुर ब्लॉक का संचालन एक नहीं दो नहीं बल्कि तीन-तीन नकली प्रमुख करेगें, उसका हाल ग्राम पंचायत अठदमा जैसा होगा। यह वही ब्लॉक हैं, जहां के प्रधान संघ के अध्यक्ष ने ब्लॉक के भ्रष्टाचार की पोल खोली थी, यह वही ब्लॉक हैं, जहां के असली प्रमुख रामकुमार का सपा के विधायक ने नीजि लाभ के लिए अपहरण किया था, यह वही ब्लॉक हैं, जहां पर बीडीओ के चंेबर में एक नकली प्रमुख ने मारापीटा, यह वही ब्लॉक है जहां के प्रभारी बीडीओ/डीडीओ ने 15 करोड़ का फर्जीवाड़ा किया। जिस ब्लॉक में इतनी सारी खूबियां हो वह ब्लाक तो भ्रष्टाचार में डूबेगा ही। सच पूछिए तो इस ब्लॉक को कुछ लोगों ने नीजि संपत्ति समझकर इसका उपयोग/दुरुपयोग कर रहे है। कोई रोकने टोकने वाला नहीं हैं, अगर होता तो अठदमा ग्राम पंचायत की प्रधान आकृति शुक्ल, सचिव से मिलकर 25-25 हजार का दो बार मानदेय न निकाल लेती। वह भी 15वें वित्त आयोग से, जबकि मानदेय राज्य वित्त आयोग से प्रधानों का निकलता है। इसे प्रधान की मनमानी नहीं तो और क्या कहेगें, महिला प्रधान को मालूम ही नहीं होगा कि उसके परिवार/अन्य ने उसके नाम पर दो बार मानदेय निकाला भी होगा। प्रधान और सचिव की मनमानी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है, कि निविदा के विज्ञापन का जो भुगतान अखबारों को करना चाहिए, उसे देव कम्यूनिकेशन को भुगतान कर दिया। दोनों मामलों को गंभीर वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में माना जाता है, और इसके लिए प्रधान पदच्यूत और सचिव निलंबित भी हो सकते है। आजादी से लेकर आजतक इस ग्राम पंचायत में एक बार ही आरक्षण लागू हुआ, क्यों नहीं गांव के लोगों को आरक्षण मिला और क्यों एक ही परिवार के सामा्रज्य रहा? यह सवाल बना हुआ। गांव के ही एक व्यक्ति ने मनरेगा में बिना काम कराए भुगतान करने और संपन्न लोगों के खाते में पैसा भेजने सहित अन्य आरोप लगाकर मुख्यमंत्री सहित डीएम और सीडीओ से जांच करवाने और विधिक कार्रवाई करने की मांग  की है। 1998 से ही प्रधानी शुक्ला परिवार में ही रही, इससे पहले 2005 में पहली बार एससी सीट हुआ, तब विधा सागर प्रधान चुने गए, एक साल भी नहीं बीता था, कि उनकी मौत हो गई, उसके बाद उप चुनाव में विधासागर का वाहन चालक मिश्रीलाल प्रधान बने।

अगर अगस्त से लेकर दिसंबर 24 तक प्रधान आकृति शुक्ल दो बार 25-25 हजार का मानदेय सचिव की मदद से लेती है, और यही जोड़ी विज्ञापन का पैसा अखबार को न देकर किसी नीजि फर्म को देती है, तो इसे आप ईमानदारी तो कहेंगे नहीं और न मानेगें। जिले का शायद ही कोई प्रधान अपना मानदेय 15वें वित्त आयोग से लिया होगा, क्यों कि 15वें वित्त आयोग से मानदेय का भुगतान करने का कोई प्राविधान नहीं हैं, लेकिन, अगर कोई मनबढ़ प्रधान और सचिव होता है, तो वह यह नहीं देखता कि वह नियम से भुगतान कर रहे हैं, या नियम विरुद्व। सचिवों को बार-बार यह कहा जाता है, कि क्यों आप लोग ऐसे प्रधान के लिए अपनी गर्दन फंसा रहे हैं, जो आज हैं, कल नहीं रहेगा? ध्यान देने वाली बात यह हैं, कि न तो कोई प्रधान और न कोई सचिव अकेले चाहे तो नियम विरुद्व भुगतान नहीं कर सकता, भुगतान जब भी होगा दोनों की रजामंदी और डोंगल लगाने से ही होगा। चूंकि अधिकांश प्रधान और सचिव बेईमान होते हैं, इस लिए उन्हें फर्जी या गलत भुगतान करने में कोई परहेज नहीं होता। प्रधान और सचिवों पर निगरानी रखने वाले एडीओ पंचायत और बीडीओ को जब अपना बखरा मिल जाता है, तो वह भी अपनी आंखें बंद कर देते है। बहरहाल, आकृति शुक्ल जैसी न जाने कितनी महिला प्रधान होगीं, जिन्हें यह तक नहीं मालूम होगा कि उनके नाम पर परिवार वाले या फिर चुनाव जीताने वाले नकली प्रधान क्या-क्या गांव में कर रहे हैं? इन्हें तो तब पता चलता है, जब कभी वित्तीय अनियमितता के आरोप में एफआईआर दर्ज होता और पुलिस इन्हें पकड़ने के लिए गांव पहुंचती। तब इन्हें पता अपने परिवार के सच का पता चलता। महिला प्रधानों के परिवार को भी यह सोचना होगा कि उनके घर की महिला प्रधान पर कोई अगुंली न उठा सके। जब तक महिला प्रधानों के परिवार वाले ईमानदार नहीं होगें और उन्हें अपनी इज्जत प्यारी नहीं होगी, तब तक गांव का विकास नहीं हो सकता, परिवार का तो हो सकता है, लेकिन उन गांव वालों का नहीं होगा, जिन्होंने बड़ी उम्मीद के साथ आकृति शुक्ला जैसी न जाने कितनी महिलाओं को प्रधान बनाया।

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