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अधिकारियों ने आईजीआरएस को मजाक बना दिया

अधिकारियों ने आईजीआरएस को मजाक बना दिया

-डीएम की अध्यक्षता में डेली इसकी समीक्षा होती है, फिर भी शिकायतकर्त्ता संतुष्ट नहीं रहता

-आईजीआरएस की खामियों को कई बार भाजपा नेता राजेंद्रनाथ तिवारी पीएम और सीएम को लिख चुके लेकिन फिर भी कोई सुधार नहीं हो रहा

-प्रशासन त्वरित न्याय देने के सिद्धांत को ही बदल दे रहा हैं, आईजीआरएस जांच और सत्यापन अधिकारियों के लिए कमाई का जरिया बनता जा रहा

-कोई अधिकारी खुद नहीं जांच करने जाता है, बल्कि मातहत को भेज देता है, और मातहत जो जांच रिपोर्ट देगा उसे डीएम को संदर्भित कर दिया जाता

-हालही में बीडीए के जेई शैलेष ने उमेश गोस्वामी के आईजीआरएस पर जांच करने गए, और रिपोर्ट लगा दिया कि शिकायतकर्त्ता के मोबादल पर संपर्क किया नहीं हो सका, पैसा लेकर उन्होंने लिख दिया कि भव्या होटल का निर्माण बीडीए के गठन से पहले हुआ, जबकि जमीन ही बीडीए के गठन के बाद ली गई

-अब शिकायतकर्त्ता ने जेई के खिलाफ पैसा लेकर जांच रिपोर्ट लगाने का आरोप लगाते हुए जेई की ही जांच करने को लिखा

-इसी तरह भाजपा नेता राजेंद्रनाथ तिवारी ने भी तालाब पर बने कप्तानगंज के मदरसा अहले सुन्नत फैजुलनवी की षिकायत आईजीआरएस पर सीएम और डीएम से भी किया, राजस्व की टीम ने माना कि तालाब के कुछ हिस्से पर मदरसा बना, लेकिन कार्रवाई करने के बजाए नगर पंचायत कप्तानगंज को विधिक कार्रवाई को भेज दिया

बस्ती। भाजपा नेता राजेंद्रनाथ तिवारी जैसे जिले के हजारों आईजीआरएस पर षिकायत करने वालों का दर्द यह है, कि प्रशासन त्वरित न्याय देने के सिद्धांत को ही बदलकर रख दे रहा है। त्वरित न्याय देने के बजाए प्रषासन पीड़ितों को और भी पीड़ा पहुंचा रहा है। कहते हैं, कि जिले में अधिकारियों ने आईजीआरएस को मजाक बनाकर रख दिया, शायद ही कोई शिकायतकर्त्ता रिपोर्ट या कार्रवाई से संतुष्ट हो। न्याय देने के नाम पर जांच और सत्यापन अधिकारियों ने आईजीआरएस को कमाई का जरिया बना लिया। कार्रवाई की गुणवत्ता इतनी खराब रहती है, कि पीड़ित माथा पकड़कर बैठ जाता है। चूंकि नामित अधिकारी खुद मौके पर नहीं जाते और मातहतों को भेज देते हैं, और मातहत धन दोहन करके चले आतें है, और साहब को वही रिपोर्ट देतें है, जिसके लिए विपक्ष पैसा दे रखा होता है। हालही में बीडीए के जेई षैलेष, उमेश गोस्वामी के आईजीआरएस पर की गई शिकायत की जांच करने गए, जब कि बीडीए के सचिव/एक्सईएन को जाना था, और रिपोर्ट लगा दिया कि शिकायतकर्त्ता के मोबाइल पर संपर्क किया लेकिन नहीं हो सका, पैसा लेकर उन्होंने लिख दिया कि भव्या होटल का निर्माण बीडीए के गठन से पहले हुआ, जबकि शिकायतकर्त्ता का कहना है, कि जब जमीन ही बीडीए के गठन के बाद ली गई, तो कैसे बीडीए के गठन से पहले मानचित्र पारित हो गया? अब शिकायतकर्त्ता ने जेई पर एक लाख रुपया लेकर झूठी रिपोर्ट लगाने का आरोप लगाते हुए जेई के खिलाफ ही जांच करने को लिखा। इसी तरह राजेंद्रनाथ तिवारी की एक षिकायत पर कलवारी के सिपाही ने पैसा लेकर एसपी की रिपोर्ट को ही गलत साबित कर दिया। इसी तरह इन्होंने हाल ही में तालाब पर बने कप्तानगंज के मदरसा अहले सुन्नत फैजुलनवी की शिकायत आईजीआरएस पर किया सीएम और डीएम से भी किया, जांच करने गई राजस्व की टीम ने भी माना कि तालाब के कुछ हिस्से पर मदरसा बना, लेकिन कार्रवाई करने के बजाए मामले को नगर पंचायत कप्तानगंज को विधिक कार्रवाई करने के लिए भेज दिया। राजस्व टीम ने यह भी रिपोर्ट दिया कि मदरसा के प्रबंधक हाजी मुनीर अली के पुत्र ने नवीन परती की जमीन पर कब्जा करके मकान बनवा लिया, लेकिन जब हर्रैया तहसील को कार्रवाई करने की बारी आई तो नवीन परती पर कब्जे को पचा ले गए। तालाब पर कब्जे के मामले में तो 156सी की कार्रवाई कर दी, लेकिन नवीन परती को छोड़ दिया। सभी अधिकारियों ने यह लिखकर मामले को निक्षेपित कर दिया कि मामला न्यायालय का है। सवाल उठ रहा है, कि तालाब पर कब्जा करके मदरसे का निर्माण करने का मामला कैसे न्यायालय का हो गया, और अगर हाजी मुनीर अली इसे लेकर न्यायालय गए तो उन्हें न्यायालय जाने का मौका किसने दिया? आईजीआरएस पर पीड़ित इस लिए शिकायत करता है, ताकि उसे त्वरित न्याय मिल सके, लेकिन उसे क्या मालूम कि अधिकारी त्वरित न्याय देने के सिद्धांत को ही बदलने पर लगें हुए है। जिस तरह मामले को निराधार बताकर निक्षेपित करने की रिपोर्ट लगाई जा रही है, और निक्षेपित कर भी दिया जाता है, उसे देख कहा जा सकता है, कि अधिकारी ही नहीं चाहते कि पीड़ितों को न्याय मिले। शिकायतकर्त्ता से जब यह पूछा जाता कि आप निस्तारण से संतुष्ट हैं, तो उनमें 99 फीसदी न में जबाव देते हैं, फिर भी मामले को निक्षेपित कर दिया जाता है। भाजपा नेता राजेंद्रनाथ तिवारी का कहना है, कि वचह इसे लेकर मुख्यमंत्री से मिलेगें और पीएम को पत्र भी लिखेगें।

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