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अध्यक्षों का चुनाव अधर से गटर में लटकता जा रहा!

अध्यक्षों का चुनाव अधर से गटर में लटकता जा रहा!

-14 जनवरी तक राष्टीय अध्यक्ष देने वाली भाजपा प्राइमरी इकाई का फाइनल नहीं कर पा रही

-150 से अधिक अनुभवी चुनाव अधिकारियों, प्रेक्षकों की फौज की रिपोर्ट के बाद भी लखनउ और दिल्ली की दरबार में अध्यक्ष का चुनाव उहापोह की स्थित में

-अनेक बार घोषणा की संभावित तिथियों के बाद भी तिथियां लटकती जा रही, जिस तरह आनन-फानन में मंडल और जिले से चुनाव की प्रक्रिया पूरी हुई, वह आज तक दाखिल दफतर

-जहां तक बस्ती की बात हैं, तो कोई भी कुछ भी कहने की स्थित में नहीं हैं, कौन संभावित अध्यक्ष होगा?

-दिल्ली की रेखा गुप्ता की तरह किसका भाग्य उदित होगा, यह तो नेतृत्व और परमात्मा जाने, लेकिन जो बिलंब हो रहा है, उससे कार्यकर्त्ता हतोसाहित नजर आ रहा

बस्ती। कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा जिलाध्यक्षी का चुनाव अधर से गटर में लटकता जा रहा है। दिल्ली की रेखा गुप्ता की तरह किसका भाग्य उदित होगा, यह तो नेतृत्व और परमात्मा जाने, लेकिन जो भी हो रहा है, उसके बिलंब से कार्यकर्त्ता हतोसाहित अवष्य है। 14 जनवरी तक राष्टीय अध्यक्ष देने वाली भाजपा प्राइमरी इकाई जिलाध्यक्षों को भी फाइनल नहीं कर पाई। 150 से अधिक अनुभवी चुनाव अधिकारियों, प्रेक्षकों की फौज की रिपोर्ट के बाद भी लखनउ और दिल्ली की दरबार में अध्यक्ष का चुनाव उहापोह की स्थित में है। अनेक बार घोषणा की संभावित तिथियों के बाद भी तिथियां लटकती जा रही, जिस तरह आनन-फानन में मंडल और जिले से चुनाव की प्रक्रिया पूरी हुई, वह आज तक दाखिल दफतर हैं, जहां तक बस्ती की बात हैं, तो कोई भी कुछ भी कहने की स्थित में नहीं हैं, कौन संभावित अध्यक्ष होगा? गंभीर बात यह है, कि अनेक बार घोषणा की संभावित तिथियों के बाद भी तिथियां लटकती जा रही है। बस्ती सहित अन्य जिलों के भी यही हाल है। जो बदले जाने वाले हैं, उनका मन काम करने में नहीं लग रहा है। बनने की कतार में हर जिले में पांच-दस लोग है। देखा जाए तो अब जिलाध्यक्ष को लेकर कोई रुचि ही नहीं रह गई, बस यही कहा जा रहा है, जो भी बने लेकिन उसका नाम घोषित हो। कुछ दिन पहले तक जिलाध्यक्ष को लेकर जो सरगर्मी देखी गई, अब वह नहीं दिखाई दे रही है। राजधानी पहुंचने वालों की संख्या भी घट गई। जिले में 58 प्रत्याशीयों ने अध्यक्ष बनने का सपना सजोए पर्चा दाखिल किया था, इसमें शायद ही कोई ऐसा नहीं जो अपने आप को अध्यक्ष ना मानकर चल रहा था। जो लोग अध्यक्ष मानकर चल रहे थे, बिलंब के बाद उनके भी हौसले कम होते जा रहे है। बिलंब होने के लिए भाजपाई पार्टी के लोगों और उनकी नीतियों को ही जिम्मेदार मानकर चल रहे हैं, और कह रहे हैं, कि जब चुनाव कहकर पर्चा भरवाया गया तो फिर चुनाव क्यों नहीं करवाया गया? क्यों जिलों में चुनाव अधिकारी बनाए गए? क्यों अध्यक्ष का फैसला लखनउ और दिल्ली वाले करेंगें? आज जो अध्यक्ष को लेकर उहापोह की स्थित हैं, उसके लिए भाजपा की नीतियों को ही जिम्मेदार माना जा रहा है। कहना गलत नहीं होगा दरबारी कल्चर को भाजपा ही बढ़ावा दे रही हैं, अध्यक्ष बनने के भागदौड़ के चक्कर में जिले के ना जाने कितने उम्मीदवारों को ना जाने कितना पैसा और समय बर्बाद हुआ। असल में अध्यक्ष पद के लिए जो मारामारी हो रही हैं, उसके पीछे पार्टी की सेवा करना या फिर चुनाव जीतना या फिर संगठन को मजबूत करना नहीं बल्कि इसकी आड़ में अपनी आर्थिक स्थित को मजबूत करना माना जा रहा है। यही कारण है, कि अध्यक्ष असफल और कमजोर होते जा रहे है। जिस अध्यक्ष का कार्यकर्त्ता जयजयकार ना करें, और योग्यता और दक्षता पर सवाल उठाएं, तो समझ लेना चाहिए कि चयन में पार्टी से कहीें ना कहीं चूक हुई। कहा भी जाता है, कि जब तक नेताओं के पसंद और नापसंद के अध्यक्ष बनते रहेगें, तब तक चुनाव का परिणाम सुखदाई नहीं होगा। जब तक अध्यक्ष कार्यकर्त्ताओं की पसंद का नहीं बनेगा, तब तक संगठन मजबूत नहीं होगा, क्यों कि बार-बार कहा जाता है, कि चुनाव नेता नहीं जीताता बल्कि कार्यकर्त्ता जीताते है, और यह तब होता जब कार्यकर्त्ताओं की सुनी जाएगी, हालत यह है, कि आज एक कार्यकर्त्ता अपनी मोटरसाइकिल को थाने और चौकी से नहीं छुड़ा पाता। जनता का काम करवाना तो बहुत दूर की बात है। जिस तरह कार्यकर्त्ता उपेक्षित हो रहा है, और अपनी राह बदल रहा है, ऐसे में अगर कोई दमदार और लोकप्रिय अध्यक्ष जिले को नहीं मिला तो 2027 भाजपा के लिए शुभ साबित नहीं होगा। इसी लिए बार-बार कार्यकर्त्ता इस बात की आवाज उठा रहा है, कि अगर 2027 में पांचों सीटें भाजपा को अपनी झोली में करनी है, तो ऐसा जिलाध्यक्ष पार्टी को देना होगा, जो कार्यकर्त्ताओं में लोकप्रिय हो, और जो लोगों को जोड़ सके। वैसे परिवर्तन की मांग काफी दिनों से कार्यकर्त्ता उठाते आ रहे हैं, देखना है, कि नेता कार्यकर्त्ताओं का घ्यान रखते हैं, या फिर किसी नेता का। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि जब सबकुछ लखनउ और दिल्ली में तय होना है, तो जिले स्तर पर क्यों इतनी मेहनत की जाती है? जो पार्टी एक राष्टीय अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष ना दे सके, उस पार्टी से कार्यकर्त्ता और क्या उम्मीद करें?

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