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बेचारे दलित विधायक दूधराम की कोई नहीं सुन रहा!

बेचारे दलित विधायक दूधराम की कोई नहीं सुन रहा!

-तो क्या अब इन्हें सचिव ललिता मौर्या का तबादला करवाने के लिए पीएम और सीएम को लिखना पड़ेगा?

-डीपीआरओ कहते हैं, कि अगर विधायक जैसे लोगों की सुनने लगे तो जिला खाली हो जाएगा

-किसी विधायक की ऐसी लाचारी इससे पहले न तो सुनी गई और न देखी गई

-डीएम, डीपीआरओ और बीडीओ तक विधायकजी के पत्र को कोई महत्व नहीं दे रहे, विधायक के साथ छह प्रधानों ने भी सचिव के भ्रष्टाचार की है, शिकायत

बस्ती। कहा जा रहा है, कि जब अधिकारी बृज भूषण शरण सिंह जैसे कदावर की नहीं सुनते तो विधायक किस खेत की मूली है। बकौल पूर्व सांसद डीएम उसी विधायक की सुनते जो डीएम का पैर छूते है। महादेवा के दलित विधायक की डीएम और डीपीआरओ की कौन सुने बीडीओ सदर तक नहीं सुन रहे है। इनके नेता खुद पंचायती राज विभाग के मंत्री है, और उन्होंने विधायक से कहा भी था, कि अगर डीएम नहीं सुनेगें तो बताइएगा, हम सचिव ललिता मौर्या का दबादला करवा देगें। वह भी फेल हो गए। इस सरकार में सत्ता पक्ष या फिर सरकार के सहयोगी पार्टी के विधायक अगर अपनी इज्जत बचा ले जाए तो बड़ी बात है। सवाल उठ रहा है, कि क्या एक भ्रष्टाचार के आरोपी सचिव विधायिका से भी बढ़ी हो गई। आखिर इसमें कौन सी ऐसी खूबी हैं, कि विधायक के लिखने के बाद भी इसका तबादला नहीं हो रहा है। अब विधायकजी को अपनी इज्जत बचाने के लिए धरना ही एक मात्र रास्ता इनके पास रह गया, वरना यह क्षेत्र में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगें। अगर एक विधायक की बात डीएम, डीपीआरओ और बीडीओ नहीं सुन रहे हैं, तो क्या अब विधायकजी को पीएम और सीएम को लिखना पड़ेगा? मंगलवार को जब इस मामले में डीपीआरओ से पूछा गया तो पहले तो उन्होंने कहा कि किस सचिव के तबादले की बात कह रहे हैं, जब उन्हें याद दिलाया गया कि विधायक दूधराम ने डीएम से मिलकर उनसे तबादला करने की चिठठी दी थी, तब कहने लगे कि अगर इसी तरह विधायकों के कहने पर तबादला करते रहें तो पूरा जिला ही सचिवों से खाली हो जाएगा। जब उनसे यह पूछा गया, कि आप ने उस नोटिस पर क्या किया जो सचिव को दिया गया, कहने लगे कि हम्हें ठीक से नोटिस के बारे में मालूम नहीं। उन्होंने यह भी पूछा कि विधायकजी कब डीएम से मिले थे। सचिव की ओर से 32 पन्ने का स्पष्टीकरण डीपीआरओ को दिया जा चुका है। डीपीआरओ अपना बला अपर डीपीआरओ पर यह कर टाल रहे हैं, कि उन्होंने कल ही रिपोर्ट दिया, जबकि एडीपीआरओ का कहना है, कि हम को तो जांच ही नहीं दिया गया, और न  सचिव के स्पष्टीकरण की समीक्षा करने को ही कहा गया। हमने तो मानदेय न मिलने की रिपोर्ट की। सवाल उठ रहा है, कि डीपीआरओ सचिव के स्पष्टीकरण पर क्यों नहीं कोई कार्रवाई कर रहे हैं? अगर जमराव कलस्टर के छह प्रधानों को सचिव ने भ्रष्टाचार का दोषी माना तो प्रधानों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए, अगर सचिव दोषी है, उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए, चूंकि डीपीआरओ साहब इसी माह रिटायर हो रहे हैं, इस लिए उनका एक मात्र एजेंडा कार्रवाई न करने के बदले धन उगाही का रह गया। विधायकजी को डीपीआरओ के भ्रष्टाचार के खिलाफ षासन में जांच करने के लिए लिखना चाहिए, और मुख्यमंत्री से षिकायत करनी चाहिए कि अधिकारी उनकी नहीं सुन रहे। विधानसभा में सवाल उठाना चाहिए, तभी विधायकजी की इज्जत बच पाएगी। वरना यह 27 तक चिल्लाते रह जाएगें, कोई इनकी नहीं सुनेगा। विधायकजी यह सिर्फ आपका मामला नहीं रह गया, अब तो यह सारे विधायकों के इज्जत का सवाल है? अगर आपने विधायकी नहीं दिखाया तो कोई आप के पास नहीं जाएगा, सिर्फ ठेकेदार ही जाएगें।

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