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‘बीडीओ’ साउंघाट की ‘तानाशाही’ः फोन न उठाने पर ‘सचिव’ को करवाया ‘निलंबित’!

‘बीडीओ’ साउंघाट की ‘तानाशाही’ः फोन न उठाने पर ‘सचिव’ को करवाया ‘निलंबित’!


-बीडीओ साहब रात नौ बजे अविवाहित ग्राम विकास अधिकारी प्रियंका यादव वीसी करते थे, अगर कोई महिला सचिव वीडियो पर नहीं रहती, उससे वीडियो पर आने को कहा जाता

-निलंबित सचिव ने बीडीओ पर जानबूझकर परेशान और उत्पीड़न करने का आरोप लगाते हुए कहा कि निलंबन से पहले उन्हें सफाई में कहने का मौका ही नहीं दिया, जबकि कोर्ट तक कहती है, कि मौका दिया जाए

-जब यही अधिकारी बिना स्पष्टीकरण के निलंबित मिकए जाते है, तो लखनए से लेकर हाईकोर्ट तक चिल्लाते हैं, कि मेरा प़ा सुने बिना निलंबित कर तिदया गया

-निलंबन के विरोध में सांउघाट के सचिव पिछले चार दिन से ब्लॉक पर निलंबन की वापसी और बीडीओ पर लगाए गएं आरोपों की जांच के लिए धरने पर बैठे, कहा कि जब तक दोनों मांगे नहीं मानी जाएगी, तब तक धरना जारी रहेगा

बस्ती। अगर निलंबन का कारण फोन न उठाना बनता है, तो इसका मतलब डीएम, सीडीओ, एसपी और बीडीओ को भी निलंबित कर देना चाहिए, क्यों कि यह लोग भी फोन नहीं उठाते, अब सवाल यह उठ रहा है, कि बीडीओ सांउघाट के फोन न उठाने पर उन्होंने ग्राम विकास अधिकारी प्रिंयका यादव को तो निलंबित करवा दिया, लेकिन अधिकारियों को कौन निलंबित करवाएगा? जिला विकास अधिकारी, अगर निलंबित करने से पहले सचिव से स्पष्टीकरण मांग लिए होते तो आज डीडीओ और बीडीओ पर मनमानी और तानाशाही करने का आरोप नहीं लगता। जब यही अधिकारी बिना स्पष्टीकरण के निलंबित किए जाते है, तो लखनऊ से लेकर हाईकोर्ट तक चिल्लाते हैं, कि मेरा पक्ष सुने बिना ही निलंबित कर दिया गया। इसी को कहते अधिकारियों की तानाशाही और मनमानी, जब अपने उपर आती है, तो चिल्लाते हैं, लेकिन जब दूसरे के उपर आती है, तो आवाज तक नहीं सुनते। वैसे बीडीओ और सचिवों का चोली दामन का साथ होता है, बिना सचिव के बीडीओ कमाई कर ही नहीं सकते, जिस दिन सचिव मोदीजी की तरह चाह जाए कि न खाउगां और न किसी को खाने दूंगा। उस दिन किसी बीडीओ की हिम्मत किसी सचिव को निलंबित करवाने की नहीं पड़ेगी। अगर साउंघाट के सभी सचिव यह मन बना लें कि आज के बाद से वह वही करेगें जो नियम कानून कहता है। कहा भी जाता है, सचिव एक बार तो बिना कमीशन के रह भी लेगा, लेकिन बीडीओ साहब लोग नहीं रह पाएगें, क्यों कि इन्हें उपर जो देना रहता है, और उपर वाले बिना कमीशन के जिंदा रह ही सकते। कहना गलत नहीं होगा कि सचिवों ने ही बीडीओ लोगों का मन बढ़ाया। यह भी गलत नहीं हैं, कि जो सचिव दरी बिछाकर निलंबन का विरोध कर रहे हैं, और बीडीओ के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करने की मांग कर रहे हैं, उनमें कई ऐसे गददार और भ्रष्ट सचिव भी होगें जो रात के अंधेरें में बीडीओ साहब के आवास पर जाकर यह कहते होगें, कि साहब मजबूरी में दरी पर बैठना पड़ रहा है, नहीं तो मेरी क्या मजाल जो आपके विरोध में खड़े हो। यही कारण है, कि कोई आंदोलन सफल नहीं होता, क्यों कि आंदोलन को विफल बनाने में नेताओं और गददार सचिवों का बहुत बड़ा योगदान होता है। चर्चा तो यह तक हो रही है, कि निलंबन के पीछे सिर्फ बीडीओ का फोन न उठाना नहीं हैं, बल्कि कुछ और भी है। हितों के टकराव से भी इंकार नहीं किया जा सकता। क्यों कि अधिकारी सबकुछ बर्दास्त कर सकते हैं, लेकिन आर्थिक नुकसान नहीं। ऐसे मौकों पर अधिकारी एक हो जाते हैं, और सबक सिखाने तथा वर्चस्व कायम रखने के लिए मनमानी तरीके से निलंबन जैसी कार्रवाई कर देते है। बात कुल घूम फिर कर आर्थिक हित पर आ जाता है। अभी भी खासतौर पर जो नये सचिव बने हुए हैं, चाहें वह पुरुष हों या फिर महिला, उनमें ईमानदारी करने का जज्बा देखा गया। चूंकि अधिकारियों को ईमानदार लोग पसंद नहीं आते हैं। बहुत कम ऐसे अधिकारी होगें जो ईमानदार कर्मचारियों को सपोर्ट करते हैं। सपोर्ट करने का मतलब आर्थिक नुकसान उठाना माना जाता है। बहरहाल, वाकई बीडीओ और डीडीओ साहब भले ही एक तरफा कार्रवाई किया हो, लेकिन अगर आंदोलनरत् सचिव अडिग रहे तो निलंबन वापसी भी होगी और बीडीओ के खिलाफ जांच भी होगी। यह सबकुछ सचिवों और उनके नेाओं पर निर्भर करता है। इस लिए जब कोई ईमानदारी दिखाना चाहते हैं, तो अधिकारी तिलमिला जाते है। बीडीओ साहब पर यह भी आरोप हैं, कि वह रात नौ बजे अविवाहित ग्राम विकास अधिकारी प्रियंका यादव के साथ वीसी करते थे, अगर कोई महिला सचिव वीडियो पर नहीं आती तो उसे वीडियो पर आने को कहते। अब जरा अंदाजा लगाइए कि कोई महिला इतनी रात में न जाने किस स्थित में होती है, अगर कोई महिला सचिव, वीडियो पर नहीं आना चाहती तो उसे मजबूर क्यों किया जाता है? जो काम आडियो से चल सकता है, उसे क्यों वीडियो पर आने को कहा जाता है? यही काम कुछ दिन पहले हर्रैया के खंड शिक्षा अधिकारी ने भी किया था, वह तो रात को 11 बजे वीडियो से महिला अध्यापकों के साथ वीसी करते थे। निलंबित सचिव ने बीडीओ पर जानबूझकर परेशान और उत्पीड़न करने का आरोप लगाते हुए कहा कि निलंबन से पहले उन्हें सफाई में कहने का मौका ही नहीं दिया, जबकि कोर्ट तक कहती है, कि मौका दिया जाए। कहा कि उन्होंने लिखकर दिया था, कि उन्हें दौलतपुर कलस्टर न दिया जाए, क्यों कि यहां पर उनकी रिष्तेदारी है, जो काम को प्रभावित कर सकता है, लेकिन बीडीओ साहब ठहरे जिददी बीडीओ, कलस्टर नहीं बदला। आरोप है, कि बीडीओ साहब ने जानबूझकर प्रियंका यादव को विवादित कलस्टर दिया, ताकि यह परेशान रहे और हम्हें सहयोग करें। आप लोगों ने बहुत कम सुना होगा कि किसी बीडीओ और सचिव में तनातनी चल रही है। क्यों कि तनातनी का मतलब दोनों का आर्थिक नुकसान होना? बीडीओ का नाराज होना कुछ और भी कारण हो सकता हैं, जो सामने नहीं आ रहा है।

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