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बीएसए’ की ‘योजना’ बताने वाले ‘किसानों’ और ‘माननीयों’ को मिलेगा ‘ईनाम’!

बीएसए’ की ‘योजना’ बताने वाले ‘किसानों’ और ‘माननीयों’ को मिलेगा ‘ईनाम’!


-बीएसए यानि भूमि संरक्षण अधिकारी कार्यालय जिले का पहला ऐसा कृषि विभाग का अगं हैं, जहां पर किसानों के लिए करोड़ों का बजट बनता, लेकिन किसानों का ही पता नहीं होता कि वह करोड़ों कहां गया

-भले ही सांसद और विधायक हो उन्हें भी विभाग की योजनाओं के बारे जानकारी नहीं रहती, प्रशासन और प्रभारी मंत्री तक इस विभाग की योजनाओं की समीक्षा नहीं करते, क्यों कि बुकलेट में विभाग की योजना का जिक्र ही नहीं होता

-इस विभाग में अधिकतर कार्य कागजों में होता, अधिकारी, जेई और दलाल मिलकर किसानों के नाम पर सालों से मलाई काट रहे, इस विभाग के अधिकारी की पहचान अपने उपलब्धियों के कारण नहीं होती, बल्कि प्रभारी बीडीओ के कारण अधिक होती

-इस विभाग की योजनाओं की जानकारी न तो किसानों और न माननीयों को और न मीडिया को ही बताई जाती, 90 फीसद कार्य कागजों में होता

-इस विभाग की योजनाओं का मानिटरिगं न तो जेडीए और न डीडी करते हैं, बखरा मिलते ही बिल और बाउचर पर हस्ताक्षर कर देते, फुलप्रुफ एकोनामिक क्राइम इस विभाग में होता  

बस्ती। जिले के 90 फीसद से अधिक किसानों और नेताओं को यह तक नहीं मालूम होगा कि जिले में बीएसए यानि भूमि संरक्षण अधिकारी नामक कोई विभाग भी होगा जो किसानों के हित में काम करता हैं, और जिसका सालाना बजट करोड़ों में होता है। इसी लिए मीडिया और जनता किसानों और माननीयों से यह सवाल कर रही है, कि और सही जबाव देने वाले को ईनाम की भी घोषणा भी कर रही है। जिले का यह पहला ऐसा विभाग होगा, जिसकीे योजनाओं को बताने वाले को ईनाम दिया जाएगा। भले ही सांसद और विधायक हो, लेकिन  उन्हें भी विभाग की योजनाओं के बारे जानकारी नहीं रहती, प्रशासन और प्रभारी मंत्री तक इस विभाग की योजनाओं की समीक्षा नहीं करते, क्यों कि बुकलेट में विभाग की योजना का जिक्र ही नहीं होता। इस विभाग में अधिकतर कार्य कागजों में होता, अधिकारी, जेई और दलाल मिलकर किसानों के नाम पर सालों से मलाई काट रहे, इस विभाग के अधिकारी की पहचान अपने उपलब्धियों के कारण नहीं होती, बल्कि प्रभारी बीडीओ के कारण अधिक होती है। इस विभाग की योजनाओं की जानकारी न तो किसानों और न माननीयों को और न मीडिया को ही बताई जाती, 90 फीसद कार्य कागजों में होता। इस विभाग के योजनाओं की मानिटरिगं न तो जेडीए और न डीडी ही करते हैं, बखरा मिलते ही बिल और बाउचर पर हस्ताक्षर कर देते, फुलप्रुफ एकोनामिक क्राइम इस विभाग में होता। भुगतान करने से पहले डीडी यह तक देखने नहीं जाते कि जिसका वह भुगतान करने जा रहे हैं, वह योजना है, की नहीं। चूंकि सभी का बखरा फिक्स्ड् रहता है, इस लिए सभी आंख बंद कर लेते है।   

किसान हित में हवा में काम करने वाले भूमि संरक्षण विभाग की अनुचर शकुंतला वर्मा लंबे समय से गायब हैं। वह कार्यालय नहीं आती हैं इसके बावजूद उन्हें घर बैठे तनख्वाह पहुंच रही है। भूमि संरक्षण अधिकारी (बीएसए) डॉ. राजमंगल चौधरी के राज में किसानों का भले ही अमंगल हो रहा है। लेकिन, उनके मातहत अपने साहब का मंगलगान करते नहीं थकते हैं। डॉ. मंगल साहब किसी भी कीमत पर खुद का मंगल करते नहीं अघाते। इनके तमाम रुप हैं कभी यह बीडीओ बन जाने है तो कभी नेडा जैसे विभागों के प्रमुख पदों पर आसीन हो जाते हैं। नियम विरुद्ध जिला कृषि अधिकारी के पद पर तैनाती को लेकर इन्होंने इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप छोड़ी है। बीएसए साहब के बारे में चर्चा है कि सुबह से लेकर शाम तक यह अपने एक मंडलीय अधिकारी की सेवा में लगे रहते हैं। मंडलीय अधिकारी के संरक्षण में इनकी मंडली ने भ्रष्टाचार के नए आयाम गढ़े हैं। खेत तालाब और नमसा जैसी किसानों को समृद्धशाली बनाने वाली योजनाओं का यह अपने दफ्तर में ही गला घोंट देते हैं। इन योजनाओं का लाभ किन किन किसानों को मिला आजतक साहब इसकी सूची नहीं दे पाए। बीएसए कार्यालय में तैनात वरिष्ठ सहायक राजेंद्र प्रसाद गुप्ता साहब के सबसे खास कर्मचारी हैं। राजेंद्र लंबे समय से एक ही कार्यालय में तैनात हैं और योजनाओं में बड़े पैमाने पर हो रहे भ्रष्टाचार के जनक भी माने जाते हैं। दीपावली से पहले बीएसए साहब के कारनामों ने तो एक बार टेजरी के अफसरों को संकट में डाल दिया था। बिना उप निदेशक कृषि के हस्ताक्षर के बीएसए ने टेजरी में पत्रावलियां भेजकर 15 लाख का भुगतान करा लिया। बाद में जब पत्रावलियां पर उप निदेशक कृषि के हस्ताक्षर नहीं मिले तो टेजरी अफसरों ने कृषि विभाग का टेजरी रजिस्टर ही जब्त कर लिया था। करीब 11 दिनों तक रजिस्टर टेजरी में ही पड़ा रहा। काफी मान मनौव्वल के बाद जब उप कृषि निदेशक ने हस्ताक्षर किया तब विभाग को रजिस्टर वापस मिला। देखा जाए तो बीएसए साहब के इससे भी बड़े रहस्य हैं। खैर, बात करते हैं अनुचर शकुंतला वर्मा की, जो अपने ही घर पर आराम फरमा रही हैं। बीएसए साहब ने उनकी जगह पांच हजार रुपए मासिक मानदेय पर एक धर्मराज नामक सख्श को रखा हुआ है। जो दिनभर साहब की आवभगत करता रहता है। शकुंतला वर्मा के कार्यालय न आने की पुष्टि कृषि भवन में लगे सीसीटीवी कैमरे से की जा सकती है।

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