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चाहतें हैं, कि डीएम कब्जा हटवाने जाएं तो दाखिल करना पड़ेगा पीआईएल!

चाहतें हैं, कि डीएम कब्जा हटवाने जाएं तो दाखिल करना पड़ेगा पीआईएल!

-पीआईएल दाखिल के बाद डीएम खुद जाकर कब्जा हटवाएगें अन्यथा नहीं फोटो भेजेगें

ं-अगर ग्राम पंचायत गढ़हा गौतम के विष्नोहरपुर के अजय पांडेय अधिवक्ता केएल तिवारी के जरिए पीआईएल दाखिल न करते तो हाईकोर्ट के आदेश पर डीएम खुद कब्जा हटवाने न जाते

-आखिर इस ग्राम पंचायत के भूमि प्रबंधन समिति के अध्यक्ष प्रधान और सचिव लेखपाल क्या कर रहे थे? झूठा रिपोर्ट लेखपाल ने लगाया और लथाड़ डीएम को पड़ी, लेखपाल और प्रधान के खिलाफ करने की मांग उठ रही

-यही एफआईआर लेखपाल जीतेंद्र नायक ने उस समय क्यों नहीं कब्जाधारक संतराम उपाध्याय पुत्र राम कृपाल उपाध्याय के खिलाफ दर्ज करवाया, जब कब्जा कर रहे थे? क्यों डीएम के पहुंचने और हाईकोर्ट के फटकार के बाद करवाया?

बस्ती। अगर किसी आम नागरिक को सरकारी जमीन पर से कब्जा हटवाने के लिए उसे पीआईएल दाखिल करना पड़े तो इसे शासन और प्रशासन की नाकामी मानी जाती है। इससे जुड़े अधिकारियों, लेखपालों और प्रधानों को जनता चुल्लू भर पानी में डूब मरने की सलाह दे रही है। सवाल उठ रहा हैं, कि जब आम नागरिक को ही गढ़ही पर से कब्जा हटाने के लिए हाईकोर्ट जाना पड़े तो फिर ग्राम पंचायतें, तहसीलें, तहसील दिवस, एसडीएम, एडीएम और डीएम के जनता दरबार का क्या मतलब रहा? जाहिर सी बात हैं, पीआईएल दाखिल करने से पहले आम नागरिक पहले प्रधान और लेखपाल के पास गया होगा, एसडीएम के पास गया होगा, तहसील दिवस और डीएम के जनता दरबार में भी गया होगा, जब उसकी किसी ने नहीं सुनी तभी तो वह हाईकोर्ट गया होगा। इससे बड़ा सवाल यह उठ रहा है, कि आखिर भूमि प्रबंधन समिति के अध्यक्ष/प्रधान और सचिव/लेखपाल उस समय क्या कर रहे होतें हैं, जब उनके गांव में गढ़ही, तालाब, भीटा और बंजर सहित सार्वजनिक उपयोग की सरकारी जमीनों पर कब्जा हो रहा होता? क्या प्रधानों/लेखपालों की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह कब्जा करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाए? इसका सीधा सा जबाव यह है, कि अधिकांश प्रधान और लेखपाल सरकारी जमीनों पर कब्जा करवा रहे हैं, छरदही के नीली प्रधान रमेश चंद्र चौधरी की तरह खुद भी कब्जा कर रहे हैं, और तालाब एवं पोखरों को भूमाफियों के हाथों बेच रहे है। पीआईएल तो इस बात की दाखिल होनी चाहिए कि कैसे डीएम, एडीएम, एसडीएम, तहसीलदार, लेखपाल और प्रधानों के रहते सरकारी जमीनों पर कब्जे हो रहे है? आखिर प्रशासनिक अमला क्या कर रहा? जब डीएम से यह कहा गया कि क्या एक आम आदमी को गढ़ही पर से कब्जा हटाने के लिए पीआईएल दाखिल करना पड़ेगा, आखिर गांव की एलएमसी क्या कर रही? यह भी कहा गया कि अगर डीएम को हाईकोर्ट के आदेष पर गढ़ही पर से कब्जा हटाने के लिए स्वंय जाना पड़े, तो फिर हर कोई पीआईएल दाखिल करना चाहेगा। तब डीएम को सारा कामकाज छोड़कर कब्जा हटवाने जाना पड़ेगा, जैसा कि एक दिन पहले डीएम को गढ़हा गौतम ग्राम पंचायत के विष्नोहरपुर लामाकामा के साथ जाना पड़ा, उसके बाद कब्जा करने वाले संतराम उपाध्याय पुत्र राम कृपाल उपाध्याय के खिलाफ लेखपाल ने एफआईआर दर्ज कराया, ताकि हाईकोर्ट में बताया जा सके, कि कब्जा भी हटा और कब्जा करने वालें के खिलाफ विधिक कार्रवाई भी हुई। अजय पांडेय की ओर से पीआईएल दाखिल करने वाले अधिवक्ता केएल तिवारी का कहना है, कि अगर किसी ग्राम पंचायत में सरकारी जमीनों पर कब्जा होता है, तो उसके लिए सबसे पहले प्रधान/लेखपाल जिम्मेदार होते। क्यों कि सरकार ने इन्हीं दोनों को ही सरकारी जमीनों पर कब्जा होने से रोकने के लिए नियुक्ति किया और अधिकार भी दिया। एसडीएम, एडीएम और डीएम तो बहुत बाद में आते हैं, असली कार्रवाई तो इन्हीं दोनों के खिलाफ होनी चाहिए, क्यों कि इन्हीं दोनों के चलते सरकारी जमीनों का दुरुपयोग हो रहा है, और इन्हीं के चलते डीएम को कोर्ट फटकार भी लगाती है। वैसे भी किसी भी आम व्यक्ति के लिए सरकारी जमीनों को बचाने के लिए पीआईएल दाखिल करना आसान नहीं होता, जो लोग पीआईएल दाखिल करते हैं, उन्हें समाज एक सच्चा नागरिक मानता हैं, और जो प्रधान और लेखपाल कार्रवाई नहीं करते उन्हें गांव वाले चोर और बेईमान मानते। जब तक सत्ताधारी के लोग भ्रष्ट प्रधानों और लेखपालों का बचाव करते रहेगें, तब तक सरकारी जमीनों पर से कब्जा करना बंद नहीं होगा। जिले के अनेक ऐसे भाजपाई हैं, जिन पर सरकारी जमीनों को कब्जा करने और कब्जा करने का प्रयास करने का आरोप लग चुका है।

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