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चौंकिए मतःसचिव ने चार माह पहले मरे सूरज को कर दिया जिंदा
-जब जिंदा कर दिया तो कैसे दे मृत्यु का प्रमाण-पत्र
-मृत्यु प्रमाण-पत्र के लिए चार माह से मां और उसकी बेटी धक्के खा रही
-पीएम और एफआईआर कह रहा है, कि सूरज उर्फ शिवशंकर मर चुका
-लेकिन सदर ब्लॉक के ग्राम पंचायत चननी सियारोबास के ग्राम विकास अधिकारी दिनेश कुमार शुक्ल मानने को तैयार नहीं सूरम मर गया
-मां और बेटी ने सचिव के खिलाफ डीएम कार्यालय पर अनषन पर बैठने की मांगी अनुमति
बस्ती। अगर किसी दलित मां को अपने मृतक बेटे और बहन को मृतक भाई के लिए मृत्यु प्रमाण-पत्र के लिए अनशन पर बैठना पड़े, तो ऐसी भाजपा के सरकार के होने से क्या फायदा जहां पर मृतक प्रमाण-पत्र देने के बजाए ग्राम विकास अधिकारी दिनेश कुमार शुक्ल ने परिवार रजिस्टर में दो दिन पहले जिंदा घोषित कर दिया, जब कि पीएम और एफआईआर कह रही है, कि सूरज उर्फ शिवशंकर चार माह पहले मर चुका है। प्रधान धमेंद्र प्रजापति ने भी मदद करने से इंकार कर दिया। मां ने सचिव के खिलाफ एससीएसटी के तहत मुकदमा दर्ज कराने की बात कही है। मामला सदर ब्लॉक के ग्राम पंचायत चननी सियारोबास का है।
सूरज उर्फ शिवशंकर की मृत्यु दो नवंबर 24 को हुई। तभी से ही मृतक की मां दुर्गावती और बहन मृत्यु प्रमाण-पत्र के लिए धक्के खा रही है। पहले तो प्रधान ने मदद करने से इंकार कर दिया, बाद में ग्राम विकास अधिकारी दिनेश कुमार शुक्ल ने भी इंकार कर दिया, इन्होंने न सिर्फ प्रमाण-पत्र बनाने से इंकार कर दिया, बल्कि परिवार रजिस्टर में सूरज को दो दिन पहले जिंदा बना दिया। पूछने पर कहते तो हैं, कि सूरज मर गया, लेकिन यह नहीं बताते कि ज बवह मर गया तो फिर परिवार रजिस्टर में कैसे उसे जिंदा कर दिया? यह भी कहते हैं, कि मृत्यु कहीं और होने के कारण प्रमाण-पत्र नहीं बन रहा है, लेकिन इस बात का जबाव नहीं दे पा रहे हैं, कि जब वह मर गया तो क्यों आप ने उसे परिवार रजिस्टर में जिंदा होना दिखा दिया। बहरहाल, यह वही सचिव होते हैं, तो मरे हुए मनरेगा मजदूर से काम करवाकर पैसा निकाल लेते है। इन लोगों से सही काम करवाना बहुत कठिन होता है, लेकिन गलत काम करवाना आसान होता है। आसान इस लिए होता है, क्यों कि उसमें इनकी रुचि होती है। वैसे मृतक की मां ने डीएम से डीएम कार्यालय पर सचिव के खिलाफ अनशन पर बैठने की अनुमति मांगी है।
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