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चैन की नींद सोना है, तो डीआई और एफआई को देना होगा महीना

चैन की नींद सोना है, तो डीआई और एफआई को देना होगा महीना

-जो व्यापारी महीना देने से इंकार करता है, तो उसके प्रतिष्ठानों में पूरी टीम नमूना लेने पहुंच जाती

-नमूना लेने के बाद कहा जाता हैं, कि कार्यालय आइए, वहां पर सौदेबाजी होती, पचास हजार से कम में कोई सौदा नहीं होता

-एफआई के उत्पीड़न के डर से अनेक छोटेे मोटे कारोबारियों ने कारोबार को ही बंद कर दिया

-कहते हैं, कि हम लोग सौ फीसद सही उत्पादन करते हैं, लेकिन न जाने कैसे उनका नमूना फेल हो जाता, पैसे देने पर फेल नमूना पास हो जाता

-महीना न देने वाले एक कारोबारी ने बताया कि उनका दालचीनी का नमूना फेल हो गया, डेढ़ लाख का जुर्माना भी लगा, अब बताइए दालचीनी में कौन सा मिलावट हो सकता

बस्ती। जिले के लगभग 26 लाख लोगों को स्वस्थ्य रखने का दावा करने वाले डीआई और एफआई का सेहत तब ठीक रहता है, जब उन्हें महीना मिल जाता है। कहने का मतलब अगर किसी को दवा और खाद्य पदार्थ का कारोबार करना है, और चैन से सोना है, तो महीना देना होगा, अगर नहीं दिया तो पूरी टीम नमूना लेने पहुंच जाएगी। फिर वह आप को कार्यालय बुलाएगी, तब वहां होगा सौदेबाजी, सौदा पचास हजार से कम का नहीं होता, अगर कोई उत्पादन करता है, तो उसकी फीस एक लाख तक पहुंच जाती है। सौदा होने पर गांरटी दिया जाता है, कि नमूना फेल नहीं होगा, और न ही नमूने को जांच के लिए भेजा ही जाएगा। परचून का दुकान चलाने वाले एक कारोबारी ने बताया कि जब उसने महीना नहीं दिया तो उसके यहां से दालचीनी का नमूना ले लिया, नमूना फेल भी हो गया, डेढ़ लाख का जुर्माना भी लगा, कहते हैं, कि जरा इस बात का अंदाजा लगाइए कि दालचीनी में कौन से मिलावट हो सकता है, यह उत्पादित भी नहीं होता, फिर भी विभाग ने दालचीनी का नमूना न जाने कैसे फेल कर दिया? यह भी कहा कि कुछ साल पहले वह नमकीन बनाने की एक फैक्टरी खोल रखा था, जिसमें सौ फीसद फारचून का तेल इस्तेमाल होता हैं, नमूना फेल होने का एक फीसद भी चांस नहीं था, फिर भी एफआई वाले पूरी टीम के साथ आए और नमूना ले गए, जो फेल हो गया, फेल और नमूना इस लिए लिया गया, क्यों कि वह महीना नहीं दे रहा था, ईमानदारी से कारोबार करना चाहता था, लेकिन एफआई के उत्पीड़न के चलते कारोबार को ही बंद करना पड़ा। कहा कि अब वह भी उसी सिस्टम में जाने की सोच रहे हैं, जिसमें चैन की नींद आने की गारंटी दी जाती है। मुख्यमंत्री का फरमान लगभग सारे जिले के लोगों ने मानकर खाद्य पदार्थ का नमूना ले रहे हैं, नकली दवाओं का कारोबार करने वाले के यहां छापेमारी मार रहे हैं, लेकिन बस्ती की टीम न जाने किस बात का इंतजार कर रही है। डीआई और एफआई पर निरंतर जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगता रहा है। जाहिर सी बात हैं, जिस विभाग के अधिकारी महीना लेते हो उसकी कार्रवाई कहां से दिखेगी। इन महीना लेने वाले अधिकारियों पर इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी खाउ नीति से लाखों लोगों की सेहत खराब हो सकती है, उनके परिवार की भी सेहत खराब हो सकती है, फूड प्वाजनिगं हो सकता है, अस्पताल में भर्ती हो सकते है। क्यों कि इनका परिवार भी वही सामग्री और दवा इस्तेमाल करता है, जो आम आदमी करता है। कहा भी जाता है, कि जिस दिन डीआई और एफआई महीना लेना बंद कर देगें, उस दिन किसी की भी सेहत खराब नहीं होगी। चूंकि यह विभाग सीधे प्रशासन के अधीन रहता है, इस लिए प्रशासन के अधिकारियों की भी यह जिम्मेदारी बन जाती है, वह समय-समय पर अपनी देखरेख में छापेमारी की कार्रवाई करते रहें। जिस तरह फूड प्वाइजनिगं और मरीजों के जल्दी ठीक न होने की शिकायतें मिल रही हैं, उसके लिए डीआई और एफआई को पूरी तरह जिम्मेदार माना जा रहा है। यह लोग नकली दवाओं के कारोबारी के गोद में बैठे हुए हैं। कमिष्नर से भी डीएलए और डीआई की शिकायत की गई, कहा गया कि सबकुछ जानते हुए भी अभी तक नकली दवाओं की फैक्टरी को न तो सील किया गया और न उस फर्म पर कार्रवाई की गई, जो कारोबार कर रहा है। कमिष्नर से यह भी कहा कि डीआई नकली दवाओं का नमूना नहीं लेते असली दवाओं का नमूना लेते है। कमिष्नर ने इसे गंभीर मानते हुए कार्रवाई करने की बात कही है।    

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