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चार हजार गारंटी मनी दीजिए, चाहें जिस रेट में खाद बेचिए, कोई नहीं पूछेगा!

चार हजार गारंटी मनी दीजिए, चाहें जिस रेट में खाद बेचिए, कोई नहीं पूछेगा!

-कृषि विभाग में तो साहब का चपरासी और चालक तक धन की उगाही करतें!

-बाबू और अधिकारियों की तो कोई बात ही नहीं, चपरासी और चालक सरकारी गाड़ी लेकर वसूली में निकल जाते, जब तक इनकी जेबों में लाख दो लाख नहीं आ जाता, तब तक गाड़ी लेकर खाद के दुकानों का चक्कर लगाते रहे

-रवि और खरीफ के सीजन में जेडीई, डीडीए, जिला कृषि अधिकारी, पटल सहायक, वाहन चालक और चपरासी की जेबों में लगभग 70 लाख हर साल जाता

-18 सौ खाद के खुदरा विक्रेताओं से प्रत्येक दुकानों से रवि और खरीफ में दो-दो हजार वसूलते, इसके एवज में इन्हें मनमाने दर पर खाद बेचने, कार्रवाई एवं निरीक्षण से मुक्त रहने की गारंटी दी जाती

-जब निरीक्षण और कार्रवाई के बारे में डीओ से पूछा गया तो गोलमोल में जबाव दिया, इनके पास कार्रवाई का आकड़ा तक नहीं

-खाद की उपलब्धता के मामले में विभागी आकड़े और एफएमएएस पोर्टल के आकड़ों में भारी भिन्नता, पोर्टल पर जिले में खाद की कोई कमी नहीं, लेकिन स्थानीय स्तर पर कमी ही कमी

-खाद की कमी को लेकर पिछले दिनों सांसद रामप्रसाद चौधरी ने लोकसभा में सवाल भी उठाया, सरकार कहती है, की खाद की कोई कमी नहीं, अधिकारी कहते हेैं, कि सरकार के कोटा कम कर देने से किल्लत

बस्ती। कृषि विभाग के अधिकारी अपने 18 सौ खुदरा खाद के विक्रेताओं को कालाबारी करने के लिए गांरटी देते हैं, बषर्ते इसके लिए दुकानदारों पर रवि और खरीफ के सीजन में दो-दो हजार की गांरटी मनी जमा करना होगा। जो दुकानदार गारंटी मनी जमा नहीं करता है, उसकी जांच होती तब दुकानदार को गांरटी मनी के कई गुना अधिक जमा करना पड़ता है। लाइसेंस निरस्त होने के डर से दुकानदार गांरटी मनी आसानी से जमा कर देते हैं। कहना गलत नहीं होगा कि किसानों की तरक्की और सुविधा देने के नाम पर हर कोई उन्हें लूट रहा है। पीसीएफ से लेकर मार्केटिगं विभाग एवं एआर कार्यालय से लेकर पीसीयू एवं कृषि विभाग के अधिकारी, बाबू, चपरासी, वाहन चालक धान/गेहूं के क्रय प्रभारी सभी का टारगेट किसान ही होता है। कोई खाद और बीज के नाम पर किसानों को लूट रहा है, तो कोई धान/गेहूं खरीद के नाम पर फर्जीवाड़ा कर रहा है। अब आप अंदाजा लगाइए, जब इतने लोग मिलकर एक किसान को लूटेंगे तो वह किसान गरीब का गरीब ही रहेगा। सवाल उठ रहा है, आखिर क्यों किसान नहीं तरक्की कर रहा है? और क्यों विभाग के लोग तरक्की कर रहे हैं? क्या सरकार ने भ्रष्टाचारियों की तिजोरी भरने के लिए पैसा खर्च करती है? दिक्कत तो यह है, कि जिन विभागों की जिम्मेदारी किसानों को लाभ पहुंचाने की है, उन्हीं विभागों के अधिकारी और कर्मचारी किसानों के लाभ पर डंाका डाल रहे है। ऐसे में कैसे कोई किसान खुषहाल रहेगा, जिन किसानों को खुषहाल रहना चाहिए वे नहीं हो रहे हैं, वे लोग अवष्य खुषहाल हो रहे हैं, जिनकी जिम्मेदारी किसानों को खुषहाल बनाने की है। अब तक आप लोगों ने धान/गेहूं खरीद में करोड़ों रुपये के फर्जीवाड़े की खबरे मीडिया के जरिए पढ़ी या सुनी होगी, लेकिन आज हम आप को खाद की कालाबाजारी के बारे में बताने जा रहे है। वैसे खाद की कालाबाजारी में तो एआर और पीसीएफ कार्यालय भी है, लेकिन सबसे अधिक इसकी चपेट में कृषि विभाग के लोग आ रहे है। आप को जानकर हैरानी होगी कि यह पहला ऐसा किवभाग होगा, जिसके चपरासी से लेकर साहब के वाहन चालक तक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। अब आप सोच रहें होगें कि अभी तक तो अधिकारी और पटल सहायक के बारे में ही भ्रष्टाचार में लिप्त होने की खबरे मिलती थी, चपरासी और साहब के वाहन चालक कैसे भ्रष्टाचार में लिप्त हो सकते है?

जिले में पोर्टल पर उपलब्ध आकड़ों के अनुसार खाद के खुदरा विक्रेताओं की संख्या 18 सौ है, लेकिन जिला कृषि अधिकारी डा. वीआर मौर्य के मुताबिक 11 सौ है। क्यों इतनी भिन्नता है, यह साहब नहीं बता पाए। रवि और खरीफ के सीजन में प्रत्येक दुकानदारों से दो-दो हजार गारंटी षुल्क लेने का है, यानि एक विक्रेता को साल में इस लिए चार हजार रुपया देते हैं, क्यों कि साहब लोग उन्हें मनचाहे रेट में खाद बेचने और दुकानों पर खाद की उपलब्धता और रेट बोर्ड ना लगाने की गारंटी देते है। सुबह होते ही साहब का चपरासी सरकारी गाड़ी के साथ वसूली के निकल जाते है। यह लोग एक साल में लगभग 70 लाख की वसूली दुकानदारों से करते है। लगभग 95 फीसद दुकानदार गारंटी षुल्क दे देता हैं, जो पांच फीसद नहीं देते हैं, उनके दुकानों का निरीक्षण और कमियां निकालकर कई गुना वसूला जाता है। तभी तो इस विभाग का चपरासी और वाहन चालक गिनती अमीरों में होती है। अब आ जाइए, उन हिस्सेदारों की जिन्हें बखरा जाता है। पहले स्थान पर जेडीई, दूसरे स्थान पर उप निदेषक कृषि और तीसरे स्थान पर जिला कृषि अधिकारी का नाम षामिल है। पटल सहायक, चपरासी और वाहन चालक का भी बखरा लगता है। खाद लाइसेंस का पटल सहायक बनने के लिए मारामारी होती है, बोली तक लगाई जाती है, नेताओं से सिफारिष तक करवाई जाती है। इस विभाग में अगर गारंटी षुल्क लिया जाता है, तो गारंटी भी दी जाती। इसका उदाहरण, जब साहब से जांच और कार्रवाई के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कोई भी आकड़ा देने के बजाए कहा कि कार्रवाई और निरीक्षण होता रहता है, कितना हुआ इसकी जानकारी इन्हें नहीं है। जानकारी इस लिए नहीं हैं, क्यों कि इन्होने जो गांरटी राषि जो ले रखा है। 75 फीसद दुकानों पर तो बोर्ड ही नहीं लगा, यह लोग सुबह-षाम महगें दरों पर खाद बेचते हैं, दिन में कोई जाता है, तो कह देते हैं, कि खाद उपलब्ध नहीं है। दो-तीन पहले खाद की किल्लत को देखते हुए सांसद रामप्रसाद चौधरी ने लोकसभा में सवाल उठाया था, और कहा था, कि अधिकारियों से पूछो तो कहते हैं, कि जिले का सरकार ने ही कोटा 30 फीसद कम कर दिया। वहीं जब पोर्टल पर देखा जाता है, तो जिले में खाद की कोई समस्या नहीं हैं, इसका मतलब यह हुआ है, कि अधिकारी जानबूझकर सरकार को गलत रिर्पोटिगं कर रहे हैं, ताकि उनके गांरटी वाले दुकानदार खाद की कालाबाजारी कर सके।

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