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राजनीति

भू-राजनीतिक चुनौतियों से उत्पन्न आपूर्ति शृंखला

डॉ. सुरजीत सिंह। भू-राजनीतिक चुनौतियों से उत्पन्न आपूर्ति शृंखला और कच्चे तेल के दामों में आई तेजी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था 2024 में विश्व की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी रही है। तकनीकी प्रगति, प्रौद्योगिकी, बैंकिंग, नवीकरणीय ऊर्जा और आत्मनिर्भर भारत जैसे नीतिगत उपायों से भारत वैश्विक आर्थिक क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत रखने में सफल रहा है। मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार और विदेशी निवेश के रिकार्ड प्रवाह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इंजन का कार्य किया है तो बढ़ती मुद्रास्फीति, घटता उपभोग, वित्तीय ऋण और जीडीपी वृद्धि पूर्वानुमानों में कमी ने बड़ी चिंताएं भी पैदा की हैं। 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र का दर्जा दिलाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए वर्तमान आर्थिक स्थितियों में वर्ष 2025 की रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। निवेश, उपभोग और ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले सुधार वर्ष 2025 में भारतीय अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार तैयार करेंगे। दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के कारण वर्ष 2025 में भी घरेलू मांग में मजबूत निरंतरता बनी रहेगी। शहरी के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों की मांग में भी सकारात्मक रुझान दिखाई दे रहा है। जून 2024 में भारत की जीडीपी में निजी अंतिम उपभोग व्यय 57.9 प्रतिशत से बढ़कर 60.4 प्रतिशत हो गया। ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग 2.2 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 6.2 प्रतिशत हो गई। सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार मासिक प्रति व्यक्ति व्यय में शहरी-ग्रामीण अंतर वित्त वर्ष 2011-12 में 84 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 71 प्रतिशत हो गया। यह 2023-24 में और घटकर 70 प्रतिशत हो गया। ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग वृद्धि से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में असमानता कम हुई है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर में आम चुनावों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में 5.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो पहली तिमाही की 6.7 प्रतिशत वृद्धि के मुकाबले धीमी है। तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था पुनः बढ़ने का अनुमान है। क्रिसिल की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, चालू वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत से सात प्रतिशत के बीच रह सकती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि भारत के पास अभी कार्यशील युवाओं की सबसे बड़ी फौज है। 25 से 54 आयु वर्ग की महिलाओं के बीच श्रम बल भागीदारी दर में भी वृद्धि हुई है। हालांकि उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना और मेक इन इंडिया अभियान सहित अनेक सरकारी प्रोत्साहनों के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र अपेक्षित लाभ लेने में सफल नहीं रहा है। इसके लिए विनिर्माण क्षेत्र की दीर्घकालिक प्रकृति पर अधिक ध्यान देते हुए संरचनात्मक सुधारों की दिशा में बढ़ना होगा। नीति निर्माताओं को निवेश में विविधता लाने पर ध्यान देना होगा, क्योंकि अभी तक निवेश स्टील, मशीनरी, केमिकल्स जैसे भारी उद्योगों में ही अधिक रहा है। विविध उद्योगों को बढ़ावा मिलने से घरेलू मांग में भी तेजी से वृद्धि होगी। नवाचार संस्कृति, अकादमिक-उद्योग साझेदारी और वैश्विक बाजार पहुंच का विस्तार करके भारत 2025 में स्वयं को वैश्विक नवाचार पावर हाउस में बदल सकता है। वर्ष 2024 में सेंसेक्स और निफ्टी के रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंचने से भारत का वित्तीय बाजार वैश्विक निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया था। यह तेजी 2025 में भी बनी रह सकती है, इसके लिए विदेशी मुद्रा बाजार में स्थायित्व पर काम करते हुए अपनी वस्तुओं के निर्यात को बढ़ाने पर अधिक काम करना पड़ेगा। साथ ही निवेशकों का भरोसा बनाए रखने के लिए राजकोषीय अनुशासन पर विशेष ध्यान देना होगा। वर्ष 2025 में सरकार की प्राथमिकता मौद्रिक नीति में मामूली ढील द्वारा मुद्रास्फीति के दबाव को घटाने की भी होगी। पूंजी निर्माण को प्रोत्साहन मिलने से निम्न एवं मध्य आय वर्ग की क्रय शक्ति को बढ़ावा मिलेगा। जन धन, आधार और मोबाइल के तहत खोले गए खातों में 2.32 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रकम जमा है। वर्तमान में ई-लेनदेन बढ़कर 134 अरब रुपये हो गया है, जो सभी वैश्विक डिजिटल भुगतानों के 46 प्रतिशत के बराबर है। उम्मीद है 2025 की शुरुआत में ही भारतीय अर्थव्यवस्था जापान की अर्थव्यवस्था के आकार को पछाड़ कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। एक दशक पहले भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। जापान में संभावित ब्याज दर वृद्धि, अमेरिका और चीन के बीच संभावित टैरिफ युद्ध सहित वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव भारत के लिए वैश्विक व्यापार और विनिर्माण में एक केंद्रीय खिलाड़ी बनने के नए अवसर खोल सकते हैं। तेजी से बदलती भू-राजनीतिक स्थितियों में आपूर्ति शृंखला में विविधता लाने, चीन प्लस वन का रणनीतिक लाभ लेने, कुशल श्रमशक्ति के उपयोग आदि के लिए नीतिगत उपायों पर विशेष ध्यान केद्रिंत कर 2025 में भी विदेशी निवेश के प्रवाह की निरंतरता को बनाए रखा जा सकता है। इसके लिए मुक्त व्यापार समझौतों को तेजी से आगे बढ़ाने और रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण करने के उपायों पर विशेष फोकस करना होगा। कुल मिलाकर शहरी उपभोग में वृद्धि, सेवा क्षेत्र में बढ़त और आधारिक संरचना क्षेत्र में हो रहे निवेश की ओर लगातार झुकाव के कारण वर्ष 2025 में भारतीय अर्थव्यवस्था एक मजबूत वृद्धि के लिए तैयार है। (लेखक अर्थशास्त्री हैं)

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