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डीआर और एआर के कारण ही बस्ती के माथे पर लगा कलंक का टीका
बस्ती। जिला लुटता रहा, और डीएम, एडीम, एआर, डीआर एसीडीओ भांग खाकर सोते रहे। बस्ती के माथे पर भ्रष्टाचार के कंलक का टीका लगाने वाले डीआर और एआर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, न संस्पेंशन हुआ, न तबादला हुआ और न एफआईआर ही दर्ज हुआ। डीआर और एआर एसी चेंबर से बाहर निकले ही नहीं, चेंबर में बैठकर नोट गिनते रहे, और भ्रष्ट सचिवों के साथ राजनीति करते रहें। बखरा के आगे डीआर, एआर, तहसील प्रभारी एडीसीओ और ब्लॉक प्रभारी एडीओ सभी फेल हो गए, एक ने भी अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी के साथ नहीं निभाया। सभी तिजोरी भरने में मस्त रहे। कागजों में एआर और डीआर क्रय केंद्रों की समीक्षा करते रहें, निरीक्षण करने तक नहीं गए, इधर साप्ताहिक समीक्षा होती थी, उधर सचिव फर्जीवाड़ा करने में मस्त रहते थे।
राइस मिलों से चावल यानि सीएमआर, एफसीआई के गोदाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी एआर और डीआर की है। अगर एआर, डीआर और एडीसीओ अपनी जिम्मेदारी निभाते तो 21.38 करोड़ के धान की सप्लाई हो जाती, और तब करोड़ों रुपये के चावल का गबन न होता, और न राइस मिलों से पैसा ही जमा करवाया जाता। सबसे बड़ा सवाल यह है, एआर का गृह जनपद बस्ती हैं, कैसे इनका तबादला बार-बार बस्ती हो जाता है, यह सवाल बना हुआ है। इससे यह साबित होता है, कि यह क्रय नीति को सफल बनाने के लिए नहीं बल्कि अपनी जेबें भरने, सीएम की आंख में धूल झांेक कर बस्ती आते रहें। कहना गलत नहीं होगा कि एआर और डीआर के कारण ही भ्रष्ट सचिवों ने इतना बड़ा धान घोटाले की साजिष रची, घोटाले का प्लान एआर और डीआर के चेंबर में बनता रहा। बर्खास्त डीएस अमित कुमार चौधरी को अभयदान देने और उसे नटवरलाल बनाने में डीआर और एआर का बहुत बड़ा हाथ, इन दोनों अधिकारियों ने अपने लाभ के लिए डीएस को बढ़ावा दिया। उससे भ्रष्टाचार करवाया, ताकि अधिक से अधिक बखरा मिल सके। बखरा मिल जाने के बाद कोई यह देखने नहीं जाता था, कि क्रय क्रेंद्रों पर धान हैं, कि नहीं, क्रय प्रभारियों ने धान को चावल मिलों तक पहुंचाया कि नहीं, और मिलों ने एफसीआई तक सीएमआर यानि चावल दिया कि नहीं? क्रय नीति के तहत अगर सहकारिता क्षेत्र में धान/गेहूं की खरीद में घोटाला होता है, तो उसके लिए डीआर, एआर और एडीसीओ को जिम्मेदार माना गया, इन्हें आईपीसी के तहत 120बी का दोषी माना जाएगा। जनता कह रही है, कि अगर डीएम, एडीम, एआर, डीआर एसीडीओ भांग खाकर न सोए रहते तो धान खरीद और सीएमआर में इतना बड़ा घोटाला न होता, और बस्ती के माथे पर कलंक का टीका ही लगता। डीआर और तीनों जनपदों के एआर के चलते मंडल में 21.38 के धान की सप्लाई ही नहीं हुई, डीएस और सचिवों के साथ मिलकर इतनी बड़ी रकम को हजम कर ले गए। सवाल उठ रहा है, कि डीएस के खिलाफ तो तीन-तीन बार एफआईआर हुआ बर्खास्त भी कर दिए गए, लेकिन डीआर और एआर के खिलाफ कब कार्रवाई होगी? होगी भी यह नहीं?
जिले में 23-24 में दो अरब पांच करोड़ 79 लाख का धान कागजों में 11719 किसानों से खरीदा गया। इनमें लगभग एक अरब से अधिक का बंदरबांट हुआ। एसआईटी की जांच रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है, कि किसानों से धान खरीदा ही नहीं गया और उनके नाम पर करोड़ों रुपये का भुगतान हो गया। वैसे इस फर्जीवाड़े में सबसे अधिक सहकारिता के क्रय क्रेद्र आ रहे हैं, लेकिन देखा जाए तो मार्केटिगं के केंद्रों पर कम फर्जीवाड़ा नहीं हुआ, सहकारिता से अधिक इनके केंद्रों पर फर्जी खरीद की गई, चूंकि यह विभाग सीधे प्रशासन और षासन, इस लिए यह बच गए। जाहिर सी बात हैं, कि अगर जनपद में एक अरब से अधिक की फर्जी खरीद होती है, तो यह किसी एक का काम तो होगा नहीं, जाहिर सी बात हैं, इतना बड़ा फर्जीवाड़ा तभी हो सकता है, जब बड़े लोगों का साथ मिलता है। एक अरब रुपया चंद अधिकारियों और क्रय प्रभारियों के जेबों में तो गया नहीं होगा, अवष्य बड़े लोगों की जेबों में भी गया होगा। बार-बार कहा जा रहा है, कि इस घोटाले का खुलासा अधिकारियों या फिर नेताओं ने नहीं बल्कि मीडिया और कुछ भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वालों के कारण हुआ, अधिकारियों ने तो मामले को दबाने का पूरा प्रयास किया, लेकिन भला हो मीडिया और जुझारु और जागरुक नागरिकों का जिन्होंने घोटाले की आवाज को लखनउ से लेकर दिल्ली तक पहुंचाया, जबकि यह काम जिले के पक्ष और विपक्ष के नेताओं का है। विपक्ष के एक सांसद और तीन विधायक हैं, लेकिन किसी में इतनी हिम्मत नहीं पड़ी कि घोटाले की आवाज को सदन में उठा सके। इन्हें भी भ्रष्टाचारियों से कम दोषी जनता नहीं मान रही है।
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