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डीएम और एडीएम ने कीर्ति सिंह को बनाया सुपरवुमेन!

डीएम और एडीएम ने कीर्ति सिंह को बनाया सुपरवुमेन!

-जब डीएम को ईओ का प्रभार देने का अधिकार ही नहीं तो कैसे कीर्ति सिंह को प्रभार दे दिया, और क्यों एडीएम ने डीएम को प्रस्ताव दिया

-शासनादेश के तहत शासन प्रस्ताव देने के अधिकार को छीन कर कमिश्नर को दे दिया, कमिश्नर ने आज तक किसी का प्रस्ताव नहीं भेजा

-शासन ने गिरधारी लाल स्वर्णकार बनाम राज्य सरकार के मामले में हाईकोर्ट के निर्णय के बाद प्रस्ताव देने का अधिकार डीएम से छीनकर कमिश्नर को दिया

-क्या यह माना जाए कि शासनादेश की जानकारी डीएम और एडीएम सहित एलबीसी कार्यालय को नहीं?

-शासनादेश में स्पष्ट लिखा हैं, कि अगर कोई प्रभार डीएम के प्रस्ताव पर दिया गया तो उसे फौरन वापस लिया जाए

-प्रभार देने का प्रस्ताव देते समय इस बात का विशेष ख्याल रखा जाए कि इसी ईओ को प्रभार दिया जाए जो सबसे अधिक निकट हो

-कीर्ति सिंह को तीन-तीन नगर पंचायतों का प्रभार देते समय यह तक नहीं देखा गया, कि क्या यह एक साथ तीन तहसीलों और तीन थाना दिवसों में उपस्थित रह सकती?

बस्ती। सुपरवुमेन के नाम से चर्चित मुंडेरवा, रुधौली और बभनान की ईओ कीर्ति सिंह की खूब चर्चा हो रही है। इनके सुपरवुमेन वाली काम करने की क्षमता एवं दक्षता को लेकर अधिक चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है, चलो हमारे जिले में कोई तो ऐसा ईओ हैं, जो सुपरवुमेन की तरह काम करती है। यह ऐसी ईओ हैं, जिनके लिए तत्कालीन डीएम और एडीएम ने अधिकार से बाहर जाकर तीन-तीन नगर पंचायतों का प्रभार दे दिया। सवाल उठ रहा है, कि जब शासन ने डीएम से प्रस्ताव देने का अधिकार ही छीन लिया तो किस अधिकार के तहत एडीएम ने डीएम को प्रस्ताव दिया और डीएम ने प्रभार दे दिया। यह भी सवाल उठ रहा है, अगर डीएम और एडीएम सहित एलबीसी कार्यालय को शासनादेश की जानकारी नहीं रहेगी तो फिर किसे होगी? अब आप समझ ही गए होगें कि कीर्ति सिंह को सुपरवुमेन क्यों और किसने बनाया? शासन ने गिरधारी लाल स्वर्णकार बनाम राज्य सरकार के मामले में हाईकोर्ट के द्वारा दिए गए निर्णय के क्रम में प्रस्ताव देने का अधिकार कमिश्नर को देने का आदेष जारी किया है। ऐसा भी नहीं यह शासनादेश आज का है, इस शासनादेश को जारी हुए नौ साल हो गए। नया आदेश जारी करने से पहले शासन ने अपने 11 अप्रैल 13 के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें प्रस्ताव देने का अधिकार डीएम को दिया गया था। यह भी लिखा हैं, कि अगर किसी ईओ को नगर पंचायत का प्रभार डीएम के द्वारा दिया गया तो उसे वापस लिया जाए, और त्वरित प्रभार वाले ईओ को कार्यमुक्त किया जाए।

कमिश्नर को जारी पत्र में कहा गया है, कि मंडल के जनपदों में रिक्त नगर निकायों एवं उसके सापेक्ष तैनात ईओ की उपलब्धता के आधार पर जनपद में ही उन्हें निकटस्थ रिक्त नगर निकाय दूरी सहित का प्रभार के संबध में नाम सहित स्पष्ट प्रस्ताव भेजे। यानि रिक्त नगर पंचायत में उन्हीं ही ईओ का प्रभार दिया जाए, जो सबसे अधिक निकट नगर पंचायत है। लेकिन यहां पर कीर्ति सिंह के लिए मानो सारे नियम कानून तोड़ने के लिए लोग तैयार बैठे थे, तभी तो डीएम, एडीएम और एलबीसी ने आंख बंदकरके कीर्ति सिंह को तीन-तीन नगर पंचायतों का प्रभार दे दिया। इस मामले में डीएम और एडीएम की कम और एलबीसी कार्यालय की अधिक जिम्मेदारी मानी जा रही है, कोई जरुरी नहीं कि डीएम और एडीएम को सारे शासनादेशो की जानकारी हो, लेकिन यह नहीं माना जा सकता कि एलबीसी कार्यालय को शासनादेश की जानकारी न हो। तत्कालीन डीएम और एडीएम ने तीन-तीन प्रभार देते समय यह तक नहीं सोचा कि क्या कोई ईओ एक साथ तीन-तीन तहसीलों के दिवसों और थाना दिवसों में उपस्थित रह सकती हैं, कि नहीं? निकटतम प्रभार देने के पीछे सरकार की मंशा समय और सरकारी खर्चे को बचाना रहा। 60 किमी. दूरी का प्रभार देकर अधिकारी कौन सा समय और सरकारी खर्चा बचा रहे हैं, यह तो वही बताएगें जिन्होंने प्रभार दिया। तीन-तीन नगर पंचायतों में न तो सफाई का ही कार्य हो सकता है, और न प्रशासनिक एवं कार्यालय का ही काम सुचारु रुप से ही हो सकता है। एसडीएम को भी ईओ का प्रभार देने का प्राविधान है। चूंकि ईओ की तैनाती और अतिरिक्त प्रभार देने के मामले में संबधित नगर पंचायतों के चेयरमैन की भी अहम भूमिका रहती है। एक तरह से इनकी भी सहमति रहती हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो अब तक चेयरमैन कई शिकायत ईओ के खिलाफ कर चुके होते। बहरहाल, यह जांच का विषय हैं, कि क्यों शासनादेश के विरुद्व ईओ कीर्ति सिंह को तीन-तीन नगर पंचायतों का प्रभार दिया गया। अक्सर देखा गया है, कि डीएम और एडीएम ने जिसे चाहा, उसे प्रभार दे दिया, और प्रस्ताव शासन में भेज दिया। शासन डीएम के प्रस्ताव को इस लिए नहीं मंजूरी दे सकता क्यों कि प्रस्ताव देने का अधिकार कमिश्नर को है।

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