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डीएम साहब क्यों नहीं चेयरमैन, ईओ और बाबू के खिलाफ दर्ज करवाया केस?

डीएम साहब क्यों नहीं चेयरमैन, ईओ और बाबू के खिलाफ दर्ज करवाया केस?

-जब आप भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगें तो जीरो टालरेंस का क्या होगा?

-आखिर छह लाख से अधिक के गबन के जिम्मेदारों से क्यों नहीं की गई वसूली और क्यों कार्रवाई करने वाला पत्र दूसरे अनुभाग को भेज दिया

-नगर पंचायत रुधौली की जनता चाहती है, कि जनता का पैसा लूटने वाले चेयरमैन, ईओ और बाबू को क्यों अभयदान दे दिया गया?

-डीएम साहब अगर कार्रवाई नहीं करवा सकते तो कम से कम धन तो वसूल लीजिए

बस्ती। नगर पंचायत रुधौली की जनता डीएम और एडीएम से जानना चाहती है, कि जनता का पैसा लूटने वाले चेयरमैन धीरसेन, ईओ राम समुख और लिपिक नित्यानंद सिंह के खिलाफ आरोप साबित होने के बाद भी क्यों नहीं छह लाख दस हजार से अधिक के गबन के आरोप में मुकदमा दर्ज करवाया गया? क्यों घोटालेबाजों को अभयदान दे दिया गया? क्या यह लोग अभयदान पाने के लायक है? डीएम साहब अगर इसी तरह घोटालेबाजों को अभयदान मिलता रहेगा तो फिर सजा किसे मिलेगी? योगीजी के जीरो टालरेंस नीति का क्या होगा? गबन के दोषी पाए जाने के बाद क्यों खुला छोड़ दिया गया? क्यों नहीं उन्हें जेल भेजा गया? अगर इसी तरह समाज और सरकार के दुष्मनों को अभयदान मिलता रहा तो पूरा जिला भ्रष्टाचार की आग में जलता हुआ मिलेगा। अब जरा अंदाजा लगाइए कि जिस चेयरमैन की कुर्सी वित्तीय अनियमितता के आरोप में चली जानी चाहिए थी, उसे तत्कालीन डीएम ने अभयदान दे दिया, जिसका नतीजा नगर पंचायत रुधौली को बार-बार लूटने जैसा काम किया गया। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि आखिर घोटालेबाजों को कहां से इतनी ताकत मिलती है, कि जेल जाने के बजाए वह टहलते नजर आते है। नेताओं की ओर से मिलने वाले ताकत से हर कोई वाकिब हैं, लेकिन अगर यही ताकत किसी डीएम की ओर से मिले तो इसे हम आप क्या समझे? तत्कालीन डीएम के एक पत्र ने पूरी व्यवस्था की पोल खोल दी है, इससे नंदलाल के उस आरोप को बल मिलता है, जिसमें उसने डीएम के नाम पर दो लाख कमीषन लेने का आरोप लगाया। हालांकि अभी यह साबित नहीं हुआ कि लेकिन सवाल तो खड़ा हो ही रहा है। एलबीसी कार्यालय पर बार-बार यूंही भ्रष्ट चेयरमैन और ईओ को बचाने का आरोप नहीं लगता रहा। इसका सबसे बड़ा सबूत तत्कालीन डीएम का अनुभाग-3 के उस पत्र से होता है, जिसमें गबन तो साबित होना बताया गया, लेकिन न तो एफआईआर की संस्तुति की गई और न चेयरमैन को पदच्यूत करने की सिफारिश की गई, यहां तक कि आरोपी ईओ के खिलाफ भी कोई कार्रवाई करने की संस्तुति की गई, संस्तुति तीनों से वसूली की हुई। यहां पर बाबू ने बड़ा खेल खेला, जो पत्र अनुभाग-1 को जाना चाहिए, उस पत्र को अनुभाग-3 में भेज दिया, और अनुभाग-3 जलकल और जल निगम से संबधित है। अब आप समझ गए होगें कि पत्र में कितना बड़ा फ्राड किया गया, अगर फ्राड न किया गया होता तो कम से कम छह लाख तो वापस आ ही गया होता, लेकिन जब पत्र ही दूसरे विभाग के अनुभाग को भेज दिया गया तो वसूली कैसे होगी और कौन करेगा, जल निगम या जलकल तो करेगा। इसी लिए डीएम साहब से मीडिया ने कहा कि सी कम से कम पैसा तो वसूल करवा दीजिए।

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