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डीओ’ और ‘पटल सहायकों’ के ‘संरक्षण’ में पनप रहा ‘डुप्लीकेट’ खाद का ‘कारोबार’!

डीओ’ और ‘पटल सहायकों’ के ‘संरक्षण’ में पनप रहा ‘डुप्लीकेट’ खाद का ‘कारोबार’!

-जो अधिकारी और कर्मचारी काली कमाई से अपना और परिवार का भरण पोषण करते हैं, और मंहगी षौक को पूरा करते हैं, उनके बच्चे भी बेईमान ही निकलते

-काली कमाई से तो तिजोरी को भरा और षौक को तो पूरा किया जा सकता है, लेकिन इज्जत नहीं कमाया जा सकता हैं, न जाने कितने भ्रष्ट लोगों का परिणाम सामने आ चुका

-इन लोगों का दिन जब तक अच्छा रहता है, तब तक यह तिजोरी भर लें, लेकिन जैसे ही खराब दिन आते हैं, यह लोग जेल के भीतर नजर आते

-आलीशान कार्यालय में विभागीय कार्यों को संपादित करने वाले 50 लाख के पटल सहायक की इस दुकानदार पर विशेष कृपा रहती, साहब भी अपना हिस्सा पाकर मदमस्त हाथी की पदेन दायित्वों की पूर्ति कर रहें

-जेडीए, डीडी और डीओ कोई अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा, जिम्मेदारी निभाने के बजाए गांधीजी बटोर रहे, अगर जिले में खाद की लूट हो रही है, तो इसके लिए इन्हीं तीनों और एआर को जिम्मेदार माना जा रहा

बस्ती। अब तो कृषि विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों और पटल सहायकों के संरक्षण में डुप्लीकेट खाद का कारोबार भी शुरु हो गया। सवाल उठ रहा है, कि इन भ्रष्ट लोगों को कितना पैसा चाहिए कि यह ईमानदारी से काम करने लगें, कहा भी जाता है, कि जिसका पेट वेतन से नहीं भरता उसका काली कमाई से नहीं भर सकता। जो अधिकारी और कर्मचारी काली कमाई से अपना और परिवार का भरण पोषण करते हैं, और मंहगी शोक को पूरा करते हैं, उनके बच्चे भी बेईमान ही निकलतेें। काली कमाई से तो तिजोरी को भरा और शोक को तो पूरा किया जा सकता है, लेकिन इज्जत नहीं कमाया जा सकता हैं, न जाने कितने भ्रष्ट लोगों का परिणाम सामने आ चुका है। इन लोगों का दिन जब तक अच्छा रहता है, तब तक यह तिजोरी भर लें, लेकिन जैसे ही खराब दिन आते हैं, यह लोग जेल के भीतर नजर आते है। याद रखिएगा काली कमाई करने वालों की इज्जत उनके परिवार के लोग ही नहीं करतें।

भ्रष्टाचार में सने कृषि विभाग के अफसर किसानों के लाभ से जुड़ी हर वस्तु की दलाली खा रहे हैं। अभी ताजा मामला, बभनान में डुप्लीकेट डीएपी बेंचवाने का है। जब समितियों पर भी इफको की डीएपी नहीं मिल रही है तो बभनान के भटहा में एक प्राइवेट दुकानदार कहां से बेंच रहा है? सूत्र बताते हैं कि यह डुप्लीकेट डीएपी दुकानदार बाहर से कहीं से लाता है। कृषि विभाग के अधिकारी व बाबूओं की मिलीभगत से किसानों को बेचता है। पूर्व में मुखविरों ने इसकी सूचना जिला कृषि अधिकारी को दिया था। तब कार्रवाई करने के बजाय अधिकारी ने दलाली खाकर मामले को दबा दिया। बताया जा रहा है कि प्रति बोरा 200 रुपये कमीशन पर डुप्लीकेट डीएपी का वितरण कराया जा रहा है।  बता दें कि बभनान कस्बा गोंडा और बस्ती जिले की सीमा पर स्थित है। इसी का फायदा दुकानदार उठा रहें है। कंठ भर भ्रष्टाचार में डूबे अफसरों पर जब दबाव पड़ता है तो जांच के नाम पर नमूना लेकर मामले की इतिश्री कर देते हैं। आलीशान कार्यालय में विभागीय कार्यों को संपादित करने वाले 50 लाख के पटल सहायक की इस दुकानदार पर विशेष कृपा रहती है। साहब भी अपना हिस्सा पाकर मदमस्त हाथी की पदेन दायित्वों की पूर्ति कर रहे हैं। कहने को जिले में मंडल के सभी अधिकारी बैठते हैं लेकिन किसी की नजर कृषि विभाग के कण-कण में व्याप्त भ्रष्टाचार पर नहीं पड़ रही है। संयुक्त कृषि निदेशक तो कार्रवाई न करने की मानो कसमें तक खा चुके हैं। वह उर्वरक की अपनी फर्जी रिपोर्ट के जरिए मंडलायुक्त और शासन तक को गुमराह करते रहते हैं। कहना गलत नहीं होगा कि जेडीए, डीडी और डीओ कोई अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा, जिम्मेदारी निभाने के बजाए गांधीजी बटोर रहे है। कहा भी जाता है, कि अगर जिले में खाद की लूट हो रही है, तो इसके लिए इन्हीं तीनों और एआर को जिम्मेदार माना जा रहा है। रही बात प्रषासन की तो किसानों की नजर में प्रशासन भी एक तरह से अधिकारियों के सुर में सुर मिला रहा है। रबी की फसल षुरु हो गई, लेकिन प्रषासन ने अभी तक उर्वरक वितरण समिति की बैठक ही नहीं किया, जबकि करीब के जिलों में हो भी चुकी अभी तक जिला कृषि अधिकारी की ओर से कंटोल रुम स्थापित नहीं किया गया और न ही नंबर ही पब्लिस किया गया। इससे पता चलता है, प्रशासन किसानों को खाद उपलब्ध कराने में कितना सक्रिय और सजग है।

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