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हाईकोर्ट ने गुलाम हुसैन के परिवार को मरने से बचाया, दिया जीवनदान

हाईकोर्ट ने गुलाम हुसैन के परिवार को मरने से बचाया, दिया जीवनदान

-वरना भ्रष्ट हाजी मुनीर अली और भ्रष्ट अधिकारियों ने परिवार को कब्र तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ा

-भ्रष्ट अफसरों की उपज हैं, हाजी मुनीर अली, नीजि लाभ के लिए अफसरों ने एक पीड़ित अध्यापक की मदद नहीं की, बल्कि उस मैनेजर की, की जिसने कदम-कदम पर अनिमियतता और भ्रष्टाचार किया

-भ्रष्ट अफसरों और हाजी मुनीर अली को उस समय जोर का झटका लगा जब हाईकोर्ट ने सारे आदेश को निरस्त करते हुए गुलाम हुसैन को वेतन सहित बहाल करने का निर्णय सुनाया

-इस एक निर्णय ने गुलाम हुसैन और उनके परिवार को जीने का सहारा मिल गया, मददगार और रिश्तेदार मिली बहुत बड़ी राहत

-लगभग 10 बार हज करने वाले हाजी मुनीर अली को जहां लोग इनसे दीन दुखियाईयों की मदद और समाज की सेवा करने की उम्मीद करतें हैं, वहीं इन्होंने अपने छठें दामाद की नियुक्ति के लिए इंसानियत की सारे हदें पार कर गुलाम हुसैन और उनके परिवार को बर्बाद करने में लगे

बस्ती। दस बार हज करने वाले कप्तानगंज स्थित मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत फैजुन्नवी के प्रबंधक आजी मुनीर अली उन प्रबंधकों के लिए एक सबक हैं, जो अपने लाभ के लिए अपने ही मदरसे के अध्यापक को इस लिए नौकरी से निकाल देते हैं, ताकि उसके स्थान अपने दामाद या फिर परिवार के किसी सदस्य को नौकरी दी जा सके। हाजी मुनीर अली को यह लगा था, कि अगर वह गुलाम हुसैन को बर्खास्त कर देंगे तो वह छठें दामाद की नियुक्ति कर सकेगें। इसी मंशा को लेकर हाजी मुनीर अली ने सात साल पहले गुलाम हुसैन को सारे नियम कानून तोड़कर बर्खास्त कर दिया, मुनीर अली ने यह बर्खास्तगी अपने आकाओं की सहमति मिलने के बाद की, अगर ऐसा नहीं होता तो आका लोग शिकायत करने के बाद भी पीड़ित गुलाम अली की सुनने के बजाए हाजी की ही सुनते रहें। हाजी के गलत निर्णय को भी सही बताते रहे। सात साल तक भ्रष्ट अधिकारियों के द्वारा गुलाम का उत्पीड़न किया गया, इसकी सही बातों को भी गलत और हाजी के गलत निर्णय को ठहराते रहे। वह तो हाईकोर्ट का भला हो, जिसने गुलाम अली और उनके परिवार को जीवनदान दिया, वरन भ्रष्ट हाजी मुनीर अली और भ्रष्ट अधिकारियों ने गुलाम हुसैन के परिवार को कब्र तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रखा। इसी लिए हाजी मुनीर अली को भ्रष्ट अफसरों की उपज कहा जाता है। नीजि लाभ के लिए अफसरों ने एक पीड़ित अध्यापक की मदद नहीं की, बल्कि उस मैनेजर की, की जिसने कदम-कदम पर अनिमियतता और भ्रष्टाचार किया, ऐसे मैनेजर की मदद किया, जिसने इंसानियत की सारी हदें को पार कर दिया। ऐसे लोगों को उस समय जोर का झटका लगा, जब हाईकोर्ट ने सारे आदेश को निरस्त करते हुए गुलाम हुसैन को वेतन सहित बहाल करने का निर्णय सुनाया। जिस समय यह निर्णय हुआ उस समय गुलाम हुसैन के आखों था, इस आंसूं का दर्द वही लोग जान सकते हैं, जो संवेदनषील होते हैं, हाजी मुनीर अली जैसे लोगों के लिए आसूंओं की कोई कीमत नहीं। कहा जाता है, कि अगर गुलाम हुसैन को कोर्ट से जीवनदान नहीं मिलता तो, यह और इनका परिवार मरने जैसा होता, क्यों कि कानूनी और हक की लड़ाई-लड़ाई लगते परिवार पूरी तरह टूट और बर्बाद हो चुका था, आत्महत्या करने जैसी स्थित आन पड़ी थी। गुलाम हुसैन और उनके परिवार एवं मददगारों ने इस जीवनदान के लिए न्यायाधीष को धन्यवाद कहा। गुलाम हुसैन की मुसीबतें अभी कम नहीं हुई, बल्कि और बढ़ गई, इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी हाजी मुनीर अली अपने छठें दामाद को षिक्षक बनाने का मोह नहीं छोड़ रहे हैं, और हाईकोर्ट के निर्णय और मामला लंबित होने के बाद भी हाजी ने गुलाम हुसैन को बर्खास्त करने के लिए फिर से वह झूठा आरोप-पत्र थमा दिया, जिसे हाईकोर्ट निरस्त कर चुकी है।

लोग उस नेक इंसान से अवष्य ही दीनदुखियों की मदद करने की उम्मीद करते हैं, जो न जाने कितनी बार हज और न जाने कितनी बार चारों धाम करके आते है। जिस दिन मुनीर अली जैसे लोगों को यह समझ में आ गया कि जो मजा और सबाब लोगों को आबाद करने में मिलता है, वह किसी को बर्बाद करने में नहीं। फिर कहा जा रहा है, कि अगर मुनीर अली ने अपनी जिदद नहीं छोड़ी तो हाईकोर्ट छोड़वा देगा। हाईकोर्ट सब कुछ बर्दास्त कर सकता है, लेकिन वह यह नहीं बर्दाष्त करता कि कोई उसके निर्णय की अवहेलना करे। अगर इसके बाद भी हाजी मुनीर अली जिदद करने पर तुले हैं, तो उनकी मर्जी।

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