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हरीश सिंह ने सदन में फोड़ा बम, रह गए सभी दंग

हरीश सिंह ने सदन में फोड़ा बम, रह गए सभी दंग

"-अपने नेता एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह की तरह ऐसा दहाड़े कि सांसद, पांच विधायक और सभागार में मौजूद अधिकारी भोैचक्के रह गए, कहा कि जैसा नेता वैसा प्रतिनिधि

-जब इन्होंने सीएमओ पर आरोप लगाते हुए यह कहा कि इन्होंने रातों रात एक करोड़ 60 लाख का बंदरबांट कर लिया, यह सुन सभागार में सन्नाटा छा गया

-मामले को अति गंभीर बताते हुए इन्होंने सदन से इसकी सीडीओ और एडीएम की अध्यक्षता जांच कराने की मांग की

-दहाड़ते हुए कहा कि गैलेक्सी नामक आयुष्मान के अस्पताल ने एक दर्जन से अधिक गरीब मरीजों का आंख फोड़ दिया, और सीएमओ ने अभी तक सील तक नहीं किया, जांच के नाम पर यह सौदेबाजी कर रहें

-जिले के 22 यूनानी, आयुर्वेदिक और होम्योपैथ के अस्पतालों में पिछले तीन साल से एक रुपये की दवाएं नहीं गई, सारा पैसा सीओओ ने हजम कर लिया

-इन्होंने बिजली विभाग के अधिकारियों पर भी जोरदार हमला बोला, कहा कि गनेशपुर मिनी औधौगिक क्षेत्र में साई कृपा टेंडर्स की प्रोपराइटर कंचन पांडेय बैक से लोन लेकर ढ़ाई करोड़ का प्रोजेक्ट लगाया, लेकिन विभाग ने अभी तक उसे शहरी क्षेत्र से नहीं जोड़ा

-बिजली विभाग के अधिकारियों से कहा कि सदन में रामकथा ना सुनाइए यह बताइए कि कितना धन मिना और कितना उपयोग हुआ, अधिकारी बगले झांकने लगें

बस्ती। डीएम सभागार में जिले की सबसे बड़ी सदन में काफी दिनों बाद हुई जिला विकास समन्यवक एवं निगरानी यानि दिषा की बैठक को अगर एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह के प्रतिनिधि एवं भ्रष्टाचार को लेकर निरंतर आवाज उठाने वाले हरीष सिंह की बैठक कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इन्होंने ठीक उसी तरह भ्रष्टाचार रुपी बम फोड़ा, जिस तरह इनके नेता फोड़ा करते हैं। जिस तरह इन्होंने एक के बाद एक भ्रष्टाचार का बम फोड़ा उसे सुन और देख सभी फौचक्के रह गए, और कहने लगे कि जैसा नेता वैसा प्रतिनिधि। जिस बम को विपक्ष के चार विधायक मिलकर नहीं फोड़ सके, उसे इन्होंने अकेले फोड़ दिया, जबकि यह बम जनता विपक्ष के माननीयों से फोड़ने की अपेक्षा करती है। वैसे भी विपक्ष के नेताओं को विपक्ष की भूमिका निभाना ही नहीं आता, इन्हें तो बस बखरा लेना आता है। हरीष सिंह के निषाने पर सीएमओ और बिजली विभाग के अधिकारी ही सबसे अधिक रहे। सवाल इतना तीखा और कड़ुवा था, कि जबाव देने के बजाए दोनों विभागों के अधिकारी बगले झांकने लगे।

जब इन्होंने साक्ष्यों के साथ सीएमओ पर आरोप लगाते हुए यह कहा कि इन्होंने रातों रात एक करोड़ 60 लाख का बंदरबांट कर लिया, यह सुन सभागार में सन्नाटा छा गया। जिन फर्मो को बिना सामानों की आपूर्ति किए भुगतान करने की बातें कही गई उनमें सुल्तानपुर के किसी सुनील के फर्म जय मां वैष्णों, जस मां सरस्वती, मेडी प्वाइंट हब, सर्जिकल हाउस, टेकनेट प्रा. लि. एवं विदसा सर्विसेज का नाम षामिल है। बाद में डीएम ने इस मामले में सीडीओ की अध्यक्षता में कमेटी गठित किया। देखा जाए तो इस मामले में अगर ईमानदारी से जांच हो गई तो सीएमओ के साथ फर्म भी फंस सकती है। ऐसा ही बम अन्य नेताओं को भी खासतौर पर विपक्ष के नेताओं को भी फोड़ना चाहिए। दहाड़ते हुए कहा कि आवास विकास स्थित गैलेक्सी नामक आयुष्मान के अस्पताल ने एक दर्जन से अधिक गरीब मरीजों का आंख फोड़ दिया, और सीएमओ ने अभी तक अस्पताल को सील तक नहीं किया, जांच के नाम पर यह सौदेबाजी कर रहें। कहा कि जिले के 22 यूनानी, आयुर्वेदिक और होम्योपैथ के अस्पतालों में पिछले तीन सालों से एक रुपये की दवाएं नहीं गई, जबकि ओपीडी बराबर हो रहा है, मजबूरी में डाक्टर्स बाहर की दवांए लिख रहे हैं, और सीएमओ साहब गरीब मरीजों के दवा के नाम पर आए पैसे का बंदरबांट कर रहें है। बिजली विभाग के अधिकारियों पर भी जोरदार हमला बोलते हुए कहा कि गनेषपुर मिनी औधोगिक क्षेत्र में ‘साई कृपा टेंडर्स’ की प्रोपराइटर कंचन पांडेय ने बैंक से लोन लेकर ढ़ाई करोड़ का प्रोजेक्ट लगाया, लेकिन बिजली विभाग ने अभी तक उसे षहरी क्षेत्र से नहीं जोड़ा, इस पर एक्सईएन ने कहा कि कल ही वह लोग मौके पर गए थे, जल्द ही उसे षहरी क्षेत्र से जोड़ दिया जाएगा। यही एक ऐसा सवाल था, जिसका जबाव विभाग के अधिकारी दे सके। जोर देकर कहा कि षहरी क्षेत्र की बिजली मिल जानी चाहिए, जब बिजली विभाग के अधिकारी गाथा गाने लगे तो उन्होंने अधिकारियों से कहा कि सदन में रामकथा ना सुनाइए यह बताइए कि कितना धन मिला और कितना उपयोग हुआ, इस पर अधिकारी बगले झांकने लगें। बैठक के समय बुकलेट देने पर भी सवाल उठाया और कहा कि नियमानुसार बुकलेट बैठक के चार पांच दिन पहले ही मिल जाना चाहिए, अंतिम समय में बुकलेट मिलने से जनप्रतिनिधि इसका अध्ययन नहीं कर पाते। यह सही हैं, कि जब नेता बिना होमवर्क के बैठक में आ जाएगें तो कैसे वह जनहित की समस्या कैसे उठा पाएगे। होमवर्क करके अगर किसी नेता को बैठक में आना सीखना हो तो वह हरीष सिंह जैसे नेता से अवष्य सीखे। जिले की सबसे बड़ी सदन में अगर कोई जनप्रतिनिधि मौन रहता है, तो इसका मतलब वह सही मायने में जनप्रतिनिधि है। जनप्रतिनिधि अगर बोलेगा नहीं चिल्लाएगा नहीं तो जनहित की समस्याएं कैसे हल होगी। यह सदन बना ही खुलकर बोलने और सुझाव देने के लिए।

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