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जब बच्चों वाली मैडम सीजर करेगीं तो मरीज मरेगा ही!
-इससे पहले मेडिकल कालेज के रेडियोलाजिस्ट डा. पासवान ने मरीज का आपरेशन किया, मरीज की मौत हो गई, अब मेडिकल कालेज की ही बच्चों वाली डा. अल्का शुक्ल ने महिला का आपरेशन किया और महिला की मौत हो गई
-सवाल उठ रहा जब डा. अल्का शुक्ला मेडिकल कालेज में पीडियाटिक्स के रुप नौकरी कर रही है, तो कैसे उन्होंने अपने लाइफ लाइन मेडिकल सेंटर में गर्भवती महिला का आपरेशन कर दिया
-गोरखपुर निवासी दिनेश कुमार पुत्र राजेंद्र प्रसाद ने कोतवाली में तहरीर देकर डा. अल्का शुक्ला के खिलाफ इलाज में लापरवाही और बेईमानी के चलते हुई पत्नी वैशाली की मौत का जिम्मेदार मानते हुए एफआईआर दर्ज करने और नर्सिगं होम सीज करने की अपील की
-रिजेंसी हास्पिटल लखनउ के पैनल ने भी आपरेशन और इलाज में हुई लापरवाही के कारण हुई मौत के लिए डा. अल्का शुक्ला को जिम्मेदार माना, इसकी शिकायत सीएम, एसपी और सीएमओ से भी करते हुए कार्रवाई करने की मांग की गई
-मृतका वैशाली पत्नी दिनेश अपने भाई के साथ महिला अस्पताल में चेक करवाने गई थी, वहीं दलाल मिल गया और कहां यहां पर सुविधा नहीं, चलो मैं डा. अल्का शुक्ल के पास ले चलता हूं, यह मेडिकल कालेज की अच्छी डाक्टर
-लाइफ लाइन वालों ने कोई भी कागज मांगने के बावजूद भी नहीं हुआ, लेकिन बच्ची के दोनों पैर का छाप लेकर जीवित प्राप्त करने का अवष्य लिखवा लिया, जन्म-प्रमाण पत्र भी नहीं दिया, बल्कि आधार कार्ड लेकर खुद आनलाइन के जरिए करवाकर प्रमाण-पत्र दे दिया
-दक्षिण दरवाजा स्थित सत्यम पैथालाजी की रिपोर्ट में रेफर करने वाले डाक्टर का नाम अवष्य डा. अल्का शुक्ला लिखा
-पहले पति दिनेश ने जिला अस्पताल में डाक्टरों की लापरवाही के चलते बच्ची को खोया और अब लाइफ लाइन मेडिकल सेंटर में डा. अल्का शुक्ला की लापरवाही के चलते पत्नी को खो दिया
-पति दिनेश ने इस लिए पत्नी को गोरखपुर से ससुराल बस्ती भेजा, ताकि डिलीवरी के समय जज्जा और बच्चा दोनों का अच्छी तरह से देखभाल हो सके, लेकिन दिनेश को क्या मालूम था, कि बस्ती के डाक्टर जिंदगी कम देते हैं और जान अधिक लेते
-पत्नी को खोने वाले पति दिनेश का कहना है, किवह इस लिए लाइफ लाइन मेडिकल सेंटर वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और सीज करवाना चाहते हैं, ताकि जो उनके साथ हुआ वह अन्य किसी के साथ न हो
बस्ती। यह सही हैं, कि कोई भी डाक्टर भगवान नहीं होता, यह भी सही हैं, कि कोई भी डाक्टर अपने मरीज को जानबूझकर नहीं मारता, और यह भी सच हैं कि जब भी किसी मरीज की मौत होती है, तो उसका अफसोस पीड़ित परिजनों के साथ डाक्टर्स और उनकी टीम को भी होता है। लेकिन अगर परिजन उन डाक्टर्स पर मौत का आरोप लगातें है, जिनके पास आपरेशन करने की डिग्री ही नहीं तो परिजन और समाज, डाक्टर्स को ही मौत का जिम्मेदार मानता है। जैसा कि मेडिकल कालेज के रेडियोलाजिस्ट डा. पासवान और इसी मेडिकल कालेज की बच्चों की डाक्टर अल्का शुक्ला को जिम्मेदार मान रहा है। सवाल यह नहीं हैं, कि कानूनी रुप से डाक्टर अल्का शुक्ला को जिम्मेदार/दोशी ठहराना आसान होगा या नहीं? लेकिन सामाजिक रुप से डा. अल्का शुक्ला को अवष्य वैशाली की मौत का जिम्मेदार माना जा रहा है। क्यों कि इन्होंने मेडिकल कालेज की नौकरी करते समय बाहर अपने लाइफ लाइन मेडिकल सेंटर नामक नर्सिगं होम पर वैशाली का आपरेशन किया। भले ही इन्होंने सारे सबूत मिटा दिए, लेकिन कुछ ऐसे सवाल है, जो इनका पीछा करता रहेगा। बकौल मृतका के पति दिनेश कन्नौजिया अगर डा. अल्का शुक्ला उनके परिजन को पहले बता देती कि मरीज की हालत गंभीर हैं, तो उसे गोरखपुर के बजाए लखनऊ ले जाते, कम से कम उसकी पत्नी तो आज जिंदा होती। जब भी डाक्टर या फिर उनके स्टाफ से पूछा जाता कि अगर मामला गंभीर है, तो बता दीजिए, लेकिन हर बार नार्मल बताकर टालते रहें। व्यवहार भी इन लोगों का ठीक नहीं रहा। सवाल उठ रहा जब डा. अल्का शुक्ला मेडिकल कालेज में पीडियाटिक्स के रुप नौकरी कर रही है, तो कैसे उन्होंने अपने लाइफ लाइन मेडिकल सेंटर में गर्भवती महिला का आपरेशन कर दिया। कैसे एक पीढियाटिक्स, गाइनी बन गई।
गोरखपुर निवासी दिनेश कुमार पुत्र राजेंद्र प्रसाद ने कोतवाली में तहरीर देकर डा. अल्का शुक्ला के खिलाफ इलाज में लापरवाही और बेईमानी के चलते हुई पत्नी वैशाली की मौत का जिम्मेदार मानते हुए एफआईआर दर्ज करने और नर्सिगं होम सीज करने की अपील की है। रिजेंसी हास्पिटल लखनउ के पैनल ने भी आपरेशन और इलाज में हुई लापरवाही के कारण हुई मौत के लिए डाक्टर को जिम्मेदार माना, इसकी शिकायत सीएम, डीएम, एसपी और सीएमओ से भी करते हुए कार्रवाई करने की मांग की गई। मृतका वैशाली पत्नी दिनेश अपने भाई के साथ महिला अस्पताल में चेक करवाने गई थी, वहीं दलाल मिल गया और कहा कि यहां पर सुविधा नहीं, चलो मैं डा. अल्का शुक्ल के पास ले चलता हूं, यह मेडिकल कालेज की अच्छी डाक्टर है। पैसा खर्चा होगा, लेकिन सुविधा मिलेगी। दलाल के चक्कर में पड़कर दिनेश अपनी पत्नी को खो दिया, दलाल तो पांच हजार लेकर किनारे हो गया, लेकिन मौत का दंश तो दिनेश के परिवार को ही झेलना पड़ा।
लाइफ लाइन वालों ने कोई भी कागज मांगने के बावजूद नहीं उपलब्ध कराया, डिस्चार्ज तक का कागज नहीं दिया, लेकिन बच्ची के दोनों पैर का छाप लेकर जीवित प्राप्त करने का अवष्य लिखवा लिया, ओटी में जाने से पहले जो फार्म भरवाया जाता है, वह भी नहीं दिया। जन्म-प्रमाण पत्र भी नहीं दिया, बल्कि आधार कार्ड लेकर खुद आनलाइन के जरिए करवाकर प्रमाण-पत्र दे दिया। जन्म का स्थान लाइफ लाइन ही बताया गया। दक्षिण दरवाजा स्थित सत्यम पैथालाजी की रिपोर्ट में रेफर करने वाले डाक्टर का नाम अवष्य डा. अल्का शुक्ला लिखा है। डेढ़ साल पहले पति दिनेश ने जिला अस्पताल में डाक्टरों की लापरवाही के चलते बच्ची को खोया और अब लाइफ लाइन मेडिकल सेंटर में डा. अल्का शुक्ला की लापरवाही के चलते पत्नी को खो दिया। पति दिनेश ने इस लिए पत्नी को गोरखपुर से ससुराल बस्ती भेजा, ताकि डिलीवरी के समय जज्जा और बच्चा दोनों का अच्छी तरह से ससुराल वाले देखभाल कर सके। लेकिन दिनेश को क्या मालूम था, कि हर बार बस्ती के डाक्टर उनकी जिंदगी बर्बाद करेगें। कहते हैं, कि बस्ती के डाक्टर्स जिंदगी कम देते हैं और जान अधिक लेते। पत्नी को खोने वाले पति दिनेश का कहना है, कि वह इस लिए लाइफ लाइन मेडिकल सेंटर वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और सीज करवाना चाहते हैं, ताकि जो उनके साथ हुआ वह अन्य किसी के साथ न हो। इस मामले में मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य को भी शिकायत भेजी गई है।
कोतवाली में दी गई तहरीर में दिनेश कुमार पुत्र राजेंद्र प्रसाद निवासी रेती चौक गोरखपुर ने लिखा कि उसका विवाह तीन साल पहले दक्षिण दरवाजा निवासिनी वैशाली पुत्री अमरपाल से हुआ था। बताया वह अपनी गर्भवती पत्नी को सुविधानुसार ससुराल भेज दिया। चिकित्सीय सलाह के लिए पत्नी अपने भाई विशाल कन्नौजिया के साथ महिला अस्पताल 22 जुलाई 25 को गई। अस्पताल में मौजूद एक दलाल ने समझाया कि यहां परन आपरेशन की कोई सुविधा नहीं है। यहीं पास में लाइफ लाइन सेंटर पर कैली मेडिकल कालेज की पुरानी और अच्छी डाक्टर अल्का शुल्का के द्वारा सिजेरिएन आपरेशन किया जाता है। दलाल पत्नी और उनके भाई को ले जाया, डाक्टर ने एक सप्ताह बाद आपरेशन करने को कहा। 27 जुलाई 25 को सुबह करीब साढ़े नौ बजे पत्नी को पुनः ले जाया गया। बताया कि बिना कोई परेशानी और समस्या सुने पत्नी को तुरंत भर्ती करने को कहा। बिना किसी जांच के ओटी में पत्नी को शिफट कर दिया। 4.59 बजे आपरेशन के जरिए बच्ची पैदा हुई। लेकिन पत्नी की तबियत खराब होने लगी। पूछताछ में डा. अल्का ने बताया कि कोई प्राब्लम नहीं है। आपरेशन के कारण दिक्कत हो रही है। देर रात में जब तबियत अधिक खराब होने लगी तब भी डाक्टर ने नहीं बताया कि समस्या गंभीर है। कहीं और ले जाइए, अगर बता देती तो गाहर ले जाता। उसके बाद डाक्टर और उनके पति डा. जीएम शुक्ल के द्वारा डांटडपट और गाली देते हुए कहा कि आप का मरीज ठीक हैं, एहतिहात के तौर पर इन्हें गोरखपुर के सावित्री अ स्पताल ले जाइए। बिना किसी रेफरल पत्र के एंबुलेस उपलब्ध कराते हुए भेज दिया। वहां पता चला कि पत्नी को ‘पोस्ट पारटम सेपसिस के साथ शाक’ हो गया है। पत्नी के बचने की संभावना कम है। फिर 28 जुलाई 25 को लखनउ के रिजेंसी हास्पिटल ले गया। 10 दिन तक इलाज चला और छह अगस्त 25 को पत्नी का निधन हो गया।
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