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जिन मरीजों को दलाल ले जातें, उन्हीं अस्पतालों में अधिक मौतें होती!
-अधिकांश नर्सिगं होम दलालों की मेहरबानी पर जिंदा, दलालों के सहारे चलने वाला नर्सिगं होम ही तरक्की कर रहा, मौतें भी सबसे अधिक यहीं होती
-जिला अस्पताल और महिला अस्पताल के आसपास और उसके पांच सौ मीटर की दूरी पर जितने भी नर्सिगं होम या क्लीनिक स्थापित हैं, वे सभी दलालों पर निर्भर
-वहीं बिना दलाल वाले नर्सिगं होम में मरीजों का सन्नाटा छाया रहता, लाइफ लाइन मेडिकल सेंटर ने खोली नामचीन नर्सिगं होम के संचालकों की पोल
-दलाल के रुप से आशा सबसे अधिक सक्रिय, इनमें कई ऐसे दलाल है, जिनकी आमदनी एक डाक्टर से भी अधिक होती, एक मरीज ले जाने पर दलाल को पांच हजार मिलता, सभी दलालों के अपने-अपने नर्सिगं होम सेट
बस्ती। गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों के मौत का सबसे बड़ा कारण दलाल बनते जा रहे है। अब जरा अंदाजा लगाइए कि डा. जीएम शुक्ल और पत्नी डा. अल्का शुक्ला जैसे नामचीन डाक्टरों का नर्सिगं होम दलालों के भरोसे चलेगा तो मरीजों का क्या होगा? कहना गलत नहीं होगा कि अधिकांश नर्सिगं होम, दलालों की मेहरबानी पर जिंदा, दलालों के सहारे चलने वाला नर्सिगं होम ही अधिक तरक्की कर रहा, मौतें भी सबसे अधिक यहीं पर होती हैं। जाहिर सी बात हैं, जब नर्सिगं होम वाले दलालों को एक मरीज लाने पर पांच हजार से लेकर दस हजार देगें तो मरीज मरेगा ही। ऐसे भी दलाल हैं, जो दवाओं में भी कमीशन लेते है। जिला अस्पताल और महिला अस्पताल के आसपास और उसके पांच सौ मीटर की दूरी पर जितने भी नर्सिगं होम या क्लीनिक स्थापित हैं, वह अधिकांश दलालों पर निर्भर है। पचपेड़िया रोड तो दलालों का स्वर्ग कहा जाता है। एकाध को छोड़कर कोई भी ऐसा प्राइवेट अस्पताल नहीं हैं, जहां पर दलाल मरीज न ले जाते हों, दलालों में भी कंपटीशन होता है, और यह कंपटीशन नर्सिगं होम वाले करवाते हैं। कहने का मतलब दलाल एक तरह से गरीब मरीजों की जिंदगियों के साथ खिलवाड़ करते हैं, पैसे के लिए उनका सौदा करते है। याद रखिए दलालों से खरीदे गए मरीजों का कोई भरोसा नहीं होता, कि वह जिंदा भी रहेगें या नहीं? यह पूरी तरह मरीज के किस्मत पर निर्भर करता हैं, वरना दलाल और नर्सिगं होम वाले कुछ भी नहीं छोड़ते। सबसे अधिक खर्चीला इलाज दलाल के जरिए लाए गए मरीजों का ही होता है, एक तरह से इन मरीजों का खून चूस लिया जाता है, आपरेशन और दवाओं, बेड एवं जांच के नाम पर नर्सिगं होम वाले मरीजों को खोखला कर देते है। उनके जेवर तक बिकवा देते हैं, जमीन और मकान तक गिरवी रखवा देतें है। इसके बाद भी मरीजों के सही सलामत घर वापसी की गारंटी नहीं रहती है। वहीं बिना दलाल वाले नर्सिगं होम में मरीजों का सन्नाटा छाया रहता, न जाने कितने ऐसे ईमानदार संचालक हैं, जो अपने वसूलों पर नर्सिगं होम चला रहे है। ऐसे लोगों का नर्सिगं होम का खर्चा निकालना मुस्किल हो जा रहा है। फिर भी ऐसे लोगों को न तो कोई नकली दवा बनाने वाली कंपनी खरीद पाती है, और न फारेन टूर कराने वाली कंपनी ही फंसा सकती है। एक तरह से नामचीन लाइफ लाइन मेडिकल सेंटर ने दलालों की पोल खोलकर रख दी है। खुद भी नंगा हुए और दलालों को भी नंगा कर दिया। जबकि इस नर्सिगं होम के मिया-बीबी को न तो धन की और न शोहरत की ही कोई कमी है। दलालों के जरिए भवन पर भवन खड़ा कर रहे हैं, फिर भी पेट नहीं भर रहा है। ऐसा लगता है, कि मानो सबसे गरीब डाक्टर दंपत्ति यही है। दलाल के रुप में आशा सबसे अधिक सक्रिय, इनमें कई ऐसे दलाल है, जिनकी आमदनी एक डाक्टर से भी अधिक है। एक मरीज ले जाने पर दलाल को कम से कम पांच हजार मिलता, सभी दलालों के अपने-अपने नर्सिगं होम सेट है। जिन लोगों को समाज सबसे अधिक बुद्विजीवी और पढ़ा लिखा एवं समाज का सबसे अधिक ईज्जतदार और सम्मानित मानता है, उन्हीं में से अधिकतर मरीजों का खून चूस रहे है। ऐसे लोगों को इस बात की कोई परवाह नहीं रहती कि समाज उन्हें किस निगाह से देख रहा है, या फिर उनके बारे में क्या राय रख रहा है। ऐसे लोगों के लिए समाज नहीं बल्कि दलाल प्यारे होते है।
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