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कानून के राज के मुंह पर वकील साहब का जोरदार तमाचा!

कानून के राज के मुंह पर वकील साहब का जोरदार तमाचा!

-इस घटना में अधिवक्ता महिनाथ तिवारी, साधु प्रसाद पिनकी एवं राम चंदर यादव शामिल रहे, इन तीनों पर मुकदमा दर्ज प्रशासननिक स्तर पर अघिवक्ताओं का लाइसेंस निरस्त करने की अपील बार कौंसिल से करने की चर्चांए हो रही

-अगर अर्दली, चालक और होमगार्ड महिनाथ तिवारी को नहीं पकड़ते तो कोई संगीन वारदात भी हो जाता, इस सनसनीखेज घटना को लेकर खूब तीखी प्रतिक्रियाएं हो रही, हर कोई इसके लिए योगी को जिम्मेदार मान रहा

 अधिवक्ता महिनाथ तिवारी, राधुप्रसाद पिनकी एवं राम चंदर यादव के खिलाफ दर्ज हुआ मुकदमा

-कोई अधिवक्ताओं को कानून हाथ में न लेने की सलाह दे रहा है, तो कोई कह रहा है, कि क्या एसडीएम साहब दूध के धूले

बस्ती। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि आखिर हर्रैया के एसडीएम ही अधिवक्ताओं के निशाने पर क्यों रहते है? अब तक चार-पांच ऐसी घटनाएं इस तहसील में हो चुकी है, जहां पर अधिवक्ता अपना परिचय दे चुके है। एसडीएम/तहसीलदार के खिलाफ धरना-प्रदर्षन और हड़ताल करना तो इस तहसील में लगता हैं, आम बात हो गई है। हर कोई अपना काम या तो राजनैतिक या तो दंबगई या फिर पैसे के बल पर गलत/सही कराना चाहता है। इसी गलत/सही कराने के चक्कर में अधिवक्ताओं और अधिकारियों के बीच कभी-कभी बाताकाही हो जाती है, कभी-कभी तो मामला गाली गलौज तक पहुंच जाता है, लेकिन मारने पीटने जैसी घटना बहुत कम देखने को मिली। ऐसे मामलों में किसी एक पक्ष को गलत और दूसरे पक्ष को सही ठहराना उचित नहीं होगा, क्यों कि दोनों दूध के धूले नहीं होते है? यह भी सही है, कि इस तरह की घटनाओं का जन्म यूंही नहीं होता, अवष्य इसके पीछे कोई राज छिपा होता है। हर अधिवक्ता चाहते हैं, कि वह अपने मुवक्किल के लिए अधिक से अधिक लाभ पहुंचाएं। तरीका चाहे जो भी हो, हर तरीके को अपनाना चाहतें हैं। अधिवक्ताओं को भी अपने आप को मुकदमें तक ही सीमित रखना चाहिए, समस्या वहां खड़ी होती है, जब अधिवक्ता ठेकेदार की भूमिका निभाने लगते है। यहीं मामला बिगड़ जाता है।  अधिवक्ता को अगर अपने अधिवक्तता होने का घंमड है, तो दंडाधिकारी को भी अधिकारी होने का गर्व रहता है। जब दोनों का अहम टकराता है, तो थप्पड़ कांड होता है। जाहिर सी बात हैं, कि वकील साहब ठेका लेते समय अपना लाभ भी सोचते होंगे। बार-बार कहा जा रहा है, कि तहसीलें भी धीरे-धीरे चकबंदी के रास्ते पर चलने लगी है। जहां के न्यायालयों में खुले आम दोनों पक्षों में अधिक्तताओं के जरिए बोली लगाई जाती है। जिसकी बोली अधिक होती है, समझो फैसला उसी के पक्ष में होना है। भले ही चाहे गलत ही क्यों न हो? तहसीलों के न्यायालयों में भी ठीक चकबंदी की तरह बोली लगाई जाने की प्रथा प्रारंभ हो गई है। कोई फैसला बेच रहा है, तो सरकारी जमीन बेच रहा है, तो कोई तालाब बेच रहा है, तो कोई बंजर की जमीन बेच रहा है। तहसील वाले दुकान खोले बैठे है। जाइए जो खरीदना हो कीमत देकर खरीद लीजिए कोई कुछ नहीं कहेगा। जब भी तहसील कर्मियों और पुलिस वालों के खिलाफ कोई घटना या कार्रवाई होती है, तब आम आदमी को अफसोस नहीं होता, बल्कि खुशी होती हैं, वह अवष्य यह कहता है, कि चलो अच्छा हुआ मारा गया या पकड़ा गया, बहुत कम ऐसे लोग होगें जो इन दोनों विभागों के लोगों के प्रति संवेदना रखते होगें। कहने का मतलब तहसीलों में अगर कोई अधिवक्ता कानून के राज के मुंह पर तमाचा मारतें हैं, तो इसे किसका अपमान माना जाएगा?

रवींद्र गौतम लिखते हैं, कि मुख्यमंत्री को तुरंत इसे संज्ञान में लेकर कार्रवाई करना चाहिए। कहते हैं, कि एसडीएम कोई व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा सिस्टम होता है। अगर कोई अधिवक्ता जो कानून का ही सिपाही हैं, और ऐसा कृत्य करता है, तो वह अक्षम्य है। यह कानून का राज के मुंह पर तमाचा है। ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। जिससे समाज का कोई व्यक्ति कानून को अपने हाथ में लेने की हिम्मत न करे। भाजपा के राकेश शुक्ल लिखते हैं, कि आए दिन अधिकारी गाली देकर बात करते हैं, डांट कर बात करते, लेखपाल से लेकर एसडीएम तक भ्रष्ट हो चुके है। सही काम करने के लिए इन्हें रुपया चाहिए। वीरेंद्र अग्रवाल लिखते हैं, कि जब कानून के लिए कार्य करने वाले इस तरह का कार्य करेगें तो कार्य किस तरह चलेगा। एक अधिकारी के उपर हाथ उठाना अशोभनीय है। राजेश पांडेय जिखते हैं, कि ऐसा नहीं कि एसडीएम दूध के धुले है। प्रवीन कुमार लिखते हैं,  िकइस तहसील में एक माह के भीतर कई बार हड़ताल हो चुका, वकील से अधिकारी को मारा एवं वकील ने अपने मुवकिल को भी मारा। शेर बहादुर सिंह लिखते हैं, कि हर मुकदमें में एसडीएम और तहसीलदार पैसा चखोजते है। भूपेश कुमार शुक्ल कहते हैं, कि एसडीएम बेईमानी करे तो ठीक है। सुनील कुमार अग्रहरि लिखते हैं, कि मीडिया वाले इधिकारियों से खर्चा पानी लेते हैं, इस लिए कोई अगुंली नहीं उठाता। अधिकारी बिना खुले आम रिष्वत लिए कोई काम ही नहीं करते। अधिकारी और पुलिस वाले बेलगाम हो चुके हैं, और यह सभी योगीजी के अधिकारी है। षेर बहादुर सिंह फिर लिखते हैं, कि हर्रैया तहसील के एसडीएम और तहसीलदार आए दिन भ्रष्टाचार कर रहे हैं, योगीजी को एक्षन लेना चाहिए। अधिकारी पैसा लेकर काम कर रहे है। अनिल कुमार यादव लिखते हैं, कि वकील कानून का सिपाही होता है, बहुत ही जरुरी होता तो वह ऐसा कदम उठाता है। साहब को कानून की भाषा समझ में नहीं आ रही होगी, इस लिए वकील साहब ने उनकी भाषा में समझा दिया होगा।

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