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‘करोड़ों’ के ‘टेंडर’ में ‘एसपी’ कार्यालय पर उठे ‘सवाल’?

‘करोड़ों’ के ‘टेंडर’ में ‘एसपी’ कार्यालय पर उठे ‘सवाल’?

-ठेकेदार जब निविदा फार्म लेने सुबह 10 बजे पुलिस अधीक्षक कार्यालय गए तो बाबू ने कहा फार्म की बिक्री क्लोज हो गई, जब कि विज्ञापन में सात नवंबर 25 तक फार्म की बिक्री 12 बजे और उसी दिन में 12 तक निविदा डालने का समय बताया गया

-59 आवासीय/अनावासीय भवनों के अनुरक्षण एवं मरम्मत के लिए विभाग ने 29 और 30 अक्टूबर 25 को विज्ञापन के जरिए निविदा आमंत्रित किया, लेकिन फार्म बिकने और निविदा डालने से पहले ही विडों क्लोज कर दिया गया


-नाराज ठेकेदार डीआईजी से भी मिलने गए और उन्हें ज्ञापन देते हुए टेंडर को निरस्त करने और पारदर्शी टेंडर प्रक्रिया अपनाए जाने की अपील की, काम कितने धनराषि का, कितना सुरक्षा राशि जमा करना होगा, का भी जिक्र विज्ञापन में नहीं किया गया

-विभाग को ओपेन टेंडर कराने में आर्थिक लाभ हो सकता, क्यों कि जितना अधिक फार्म बिकेगा, उतना अधिक राजस्व मिलेगा, और बिलो रेट डालने से भी विभाग को राजस्व का भारी लाभ हो सकता

बस्ती। कहा जाता है, कि जो विभाग टेंडर के मामले में जितना टेंडर प्रक्रिया को जितना अधिक सरल और पारदर्शी  बनाता हैं, उस विभाग को उतना ही राजस्व का लाभ होता है। जितना अधिक निविदा फार्म बिकेगा, उतना अधिक राजस्व मिलेगा, और जितना अधिक ठेकेदार टेंडर प्रक्रिया में भाग लेग,ें उतना अधिक धन सरकार के खजाने में जाएगा, क्यों कि कंप्टीषन होने की स्थित में बिलो रेट डालने की संभावना 100 फीसदी रहती है। जिसका लाभ विभाग को मिलता है। उदाहरण के तौर पर पीडब्लूडी को लिया जा सकता है, चूंकि यहां पर पूरी पारदर्शी  बरती जाती है, ओैर प्रयास होता है, कि अधिक से अधिक निविदा फार्म बिके ताकि अधिक से अधिक ठेकेदार भाग ले सके, और जब अधिक ठेकेदार भाग लेगें तो टेंडर पाने की चाहत में 30 से 35 फीसदी बिलो रेट भी डालेगें। जैसा कि हर्रैया विधानसभा को छोड़कर अन्य विधानसभाओं में हो रहा है। बिलो रेट में ही विभाग को हर साल 100 करोड़ से अधिक का राजस्व प्राप्त होता है। जाहिर सी बात है, कि अगर कोई टेंडर 10 करोड़ का फाइनल होता है, तो विभाग को सिर्फ बिलो रेट में ही साढ़े तीन करोड़ से अधिक का राजस्व लाभ हुआ। इसी लिए सरकार हर टेंडर में कंप्टीशन पैदा करना चाहती है, ताकि उसे बिलो रेट के जरिए राजस्व का लाभ हो सके। वहीं पर कुछ ऐसे विभाग भी है, जो इच्छित ठेकेदारों को ठेका देने का प्रयास करती है, भले ही चाहें इसके लिए राजस्व का नुकसान ही क्यों न हो। ऐसे विभागों के लोग नहीं चाहते कि सरकार को राजस्व का लाभ हो, ऐसे लोग ठेकेदारों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाना चाहते हैं, ताकि उन्हें अधिक से अधिक लाभ हो सके, भले ही उनके थोड़े से लाभ के चलते सरकार को भारी राजस्व का नुकसान ही उठाना ही क्यों न पड़े? टेंडर के मामले में अक्सर सबसे अधिक उंगलियां बाबू पर ही उठती है। इसी तरह के अनेक मामले पीडब्लूडी, आरईडी और सिंचाई विभाग के सामने आ चुकें है, जहां पर टेंडर बाबूओं ने जैसा चाहा वैसा किया, नहीं चाहा तो किसी को निविदा फार्म नहीं मिला, और चाहा तो नियम कानून तोड़कर चहेतें ठेकेदारों को फार्म मिल गया। कुछ इसी तरह का मामला एसपी कार्यालय का सामने आया। 59 आवासीय/अनावासीय भवनों के अनुरक्षण एवं मरम्मत के लिए विभाग ने 29 और 30 अक्टूबर 25 को विज्ञापन के जरिए निविदा आमंत्रित किया, लेकिन निर्धारित फार्म की बिक्री के समय से पहले ही विंडो को क्लोज कर दिया गया। ठेकेदार जब निविदा फार्म लेने सुबह 10 बजे पुलिस अधीक्षक कार्यालय गए तो पटल सहायक अजय पांडेय ने कहा कि फार्म की बिक्री क्लोज हो गई, यही बात पटल सहायक ने मीडिया से भी कहा। जब कि विज्ञापन में सात नवंबर 25 तक फार्म की बिक्री 12 बजे और उसी दिन में 12 बजे तक निविदा डालने का समय बताया गया। कहा जाता है, कि जिस नेचर के काम के लिए टेंडर आंमत्रित किया गया, उसमें ठेकेदार को अधिक लाभ हाने की संभावना रहती है। नाराज ठेकेदार संजय कुमार श्रीवास्तव डीआईजी से भी मिलने गए और उन्हें ज्ञापन देते हुए टेंडर को निरस्त करने और पारदर्शी  टेंडर प्रक्रिया अपनाए जाने की अपील की, कहा कि पटल सहायक ने कुछ ठेकेदारों से सांठगांठ करके फार्म देने से मना कर दिया, जिसके चलते टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित होना पड़ा। काम कितने धनराषि का, कितना सुरक्षा राषि जमा करना होगा, का भी जिक्र विज्ञापन में नहीं किया गया। ठेकेदारों का कहना है, कि ओपेन टेंडर कराने में विभाग को आर्थिक लाभ होता हैं, क्यों कि जितना अधिक फार्म बिकेगा, उतना अधिक राजस्व मिलेगा, और जितना अधिक ठेकेदार टेंडर डालेगें उतना अधिक बिलो रेट होगा, जिसका राजस्व का भारी लाभ विभाग को मिलता है। अगर यही टेंडर आनलाइन होता तो कोई ठेकेदार सवाल नहीं खड़ा करता, और न पटल सहायक को यह कहने की आवष्कता पड़ती, कि क्लोज हो गया।

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