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क्या ‘कृतिका ज्योत्सना’ आईडिएल ‘डीएम’ बन ‘पाएगीं’?

क्या ‘कृतिका ज्योत्सना’ आईडिएल ‘डीएम’ बन ‘पाएगीं’?

बस्ती। काफी साल हो गए जिले के लोगों को एक ‘आईडिएल’ डीएम नहीं मिला। सिद्धार्थनगर जैसा एक भी ऐसा डीएम नहीं मिला, जिसके जिला छोड़ने का अफसोस जिलेभर के लोगों को हुआ हो। माला श्रीवास्तवा जैसा डीएम भी नहीं मिला, जिसने आडिटोरिएम सहित सांसद निधि की जांच कराने की हिम्मत की हो। ऐसा डीएम भी नहीं मिला जिसके जाने पर आम लोगों ने विरोध जताया हो और यह कहा हो कि हम्हें तो यही डीएम चाहिए। जिले को ऐसा डीएम नहीं चाहिए जो नेताओं और भ्रष्टाचारियों का हीरो हो। जिले वालों को  आम जनता का हीरो वाला डीएम चाहिए। जिले को लोगों को ऐसा डीएम चाहिए जो जिले को भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से मुक्त करा सके। ऐसा डीएम भी नहीं चाहिए, जिसके कार्यकाल में भ्रष्टाचारी अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सके। ऐसा डीएम चाहिए जो भ्रष्टाचारियों की नींदे हराम कर दें। जिले के लोगों को ऐसा डीएम चाहिए, जो अपनी प्रशासनिक टीम को ईमानदारी का पाठ पढ़ा सके। जिस दिन कोई डीएम अपनी टीम को ईमानदारी का पाठ पढ़ाने में सफल होगा, उस दिन जनता उसकी जय-जयकार करेगी, इस लिए सबसे अधिक ईमानदार बनने की जरुरत एडीएम, सीआरओ, एसडीएम, तहसीलदार को ही है। अकेले डीएम के ईमानदार होने से जिले और जनता को कुछ हासिल होने वाला नहीं हैं, जब तक उनकी टीम ईमानदार नहीं होगी। क्यों कि कलेक्टेट और तहसीलों से ही सरकार और डीएम की छवि बनती और बिगड़ती है, और जब तक टीम नहीं चाहेगी तब तक कोई भी डीएम आईडिएल नहीं बन सकतें। जो वर्तमान डीएम की टीम हैं, उससे न तो ईमानदारी की उम्मीद की जा सकती और न यह टीम डीएम को आईडिएल डीएम ही बना सकती है। कहना गलत नहीं होगा कि जिले का प्रशासनिक अमले का इतना निजाम खराब हो चुका है, कि उसे कोई भी डीएम सुधार नहीं सकता, कहा भी जाता है, कि अगर डीएम की टीम तत्कालीन डीएम रवीश गुप्ता की छवि बनाने में मदद की होती तो जिले वालों को एक आईडिएल डीएम के लिए न तरसना पड़ता। जब तक कलेक्टेट भवन और विकास भवन भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं होगा, तब तक कोई भी डीएम आईडिएल नहीं बन सकता। जिले में जिस तरह जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायतों और ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार बढ़ा है, उसके लिए पूरी तरह से सीडीओ को जनता जिम्मेदार मानती है। अगर इसी तरह सीएमओ, कृषि विभाग, पीडब्लूडी, आरईडी, डीपीआरओ, तहसीलें, सिंचाई विभाग, चकबंदी, कोषागार, एआर कार्यालय, पीसीएफ, डूडा, नगर पंचायतें, नगर पालिका जैसे विभागों में भ्रष्टाचार बढ़ता है, तो इसके लिए डीएम को जिम्मेदार माना जाता है। वैसे डीएम की जिम्मेदार तो सबकी होती है। यह भी कहना गलत नहीं होगा कि नवागत डीएम कृतिका ज्योत्सना को विरासत में एक ऐसा जिला मिला है, जो इतना बिगड़ा हुआ हैं, कि अगर इसे सुधारने चली तो खुद चली जाएगी। पिछले कई सालों से जिस तरह भ्रष्टाचारी अधिकारी, प्रशासन पर हावी रहे, उससे जिले के विकास को काफी नुकसान हुआ। जिला और जिले के लोग और भी पिछड़ते चले गए। वहीं भ्रष्टाचारी पनपते रहे। जिले के नेताओं ने अगर डीएम के आईडिएल बनने में सहयोग किया, जिसकी संभावना न के बराबर है, तो कृतिका ज्योत्सना जब जिले से जाएगी तो जिले के लोग जाने का विरोध करेगें, जिस तरह सिद्धार्थनगर के डीएम के जाने के बाद वहां के लोग विरोध कर रहे है। सिर्फ जनता दरबार लगाकर और आदेश निर्देश देने से पीड़ितों को न तो कभी लाभ मिला है, और न कभी मिलेगा, जब तक डीएम अपने आदेश और निर्देश की समीक्षा नहीं करती तब तक जनता दरबार के लगाने और न लगने से कोई मतलब नहीं। नवागत डीएम को इस बात की समीक्षा करनी होगी कि उसके आदेश का पालन हुआ कि नहीं और क्यों नहीं हुआ? जनता को भी यह लगना चाहिए, कि वह किसी डीएम से अपनी फरियाद कह कर आया है। जनता अपने डीएम से यह उम्मीद करती है, कि उनसे मिलने के बाद काम हो जाएगा और न्याय भी मिलेगा। पीड़ितों को न्याय दिलाना ही एक डीएम का कर्त्तव्य ही नहीं जिम्मेदारी भी होती है।

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