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क्यों नहीं खाद का कारोबार समितियों के सदस्यों के साथ किया?
-याद रहे सहकारिता आंदोलन की सफलता सहकारिता एक्ट के पालन में निहित है, न कि विचलन मेंःनरेंद्रबहादुर सिंह
-अगर एआर सहकारिता एक्ट में निहीत एक्ट का पालन करते तो आज किसान रोता नहीं, बल्कि मुस्कराता
-जब आयुक्त एवं निबंधक सहकारिता के परिपत्रों का पालन एआर ने नहीं किया बथ्लक मनमानी किया तो खाद का ब्लैक होना ही था
-एआर कोआपरेटिव की असफलता और खाउं नीति के कारण आज जिले की पूरे प्रदेश में बदनामी हो रही
बस्ती। किसान और किसान नेता बार-बार यह सवाल उठा रहे हैं, कि एआर ने क्यों नहीं आयुक्त एवं निबंधक सहकारिता के परिपत्रों का पालन किया जिसमें समितियों को खाद का कारोबार सिर्फ और सिर्फ समिति के सदस्यों से करना था? क्यों इन्होंने मनमाने तरीके से पूरे जिले में खाद का वितरण करवाया, जिसके चलते जिलें का किसान एक-एक बोरी खाद के लिए रोता फिर रहा है। सवाल उठ रहा है, कि क्या इसी को पारदर्शी व्यवस्था कहते हैं, जिसमें किसानों को खाद न मिले और यूरिया पंप खाद ब्लैक हो। अधिवक्ता एवं सहकारिता के विशेषज्ञ नरेंद्रबहादुर सिंह कहते हैं, कि प्रदेश सहकारिता एक्ट की धारा 62 स्पष्ट व्यवस्था है कि कोई भी सहकारी समिति किसी गैर सदस्य से कोई व्यवसाय नहीं करेगी, लेकिन सहकारी समितियों पर खाद का वितरण आधार कार्ड पर चाहें वह सदस्य हो या न हो सभी के लिए खुला कर दिया गया। सवाल के लहजे में कहते हैं, कि आखिर उनका क्या लाभ जो समितियों में 200 या 300 रुपए शेयर जमाकर सदस्य बने है। सहकारी समितियाँ अपने सदस्यों की सुविधा के लिए बनी हैं, न कि उन्हें परेशान करने के लिए। कहते हैं, कि अगर समितियों के सदस्यों के साथ ही खाद का कारोबार सचिव करते या एआर करवाते तो खाद का ब्लैक नहीं होता। कहा कि आयुक्त एवं निबंधक सहकारिता ने 2011-2013 में कई परिपत्र निर्गत कर व्यवस्था देते हुए कहा कि आरकेवीवाई योजना के अंतर्गत समितियों को समितियों सरकार से पांच लाख की पूंजी इसलिए दी गई थी ताकि कि समितियां अपने सदस्यों को उर्वरक उपलब्ध करा सके। इन परिपत्र में स्पष्ट रूप से ’सदस्य’ शब्द का उल्लेख है न कि गैर सदस्य का। लेकिन स्थानीय अधिकारियों द्वारा स्पष्ट रूप से इस विधिक और प्रशासनिक व्यवस्था का स्पष्ट उल्लंघन तो किया ही जा रहा है साथ ही सहकारी समितियों को भी वित्तीय रूप से क्षति भी पहुंचाई जा रही है। कोई गैर सदस्य समिति का सदस्य बनने के लिए प्रेरित नहीं हो रहा है। जिससे समितियों की अंश पूंजी में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। हर वह प्रभावी व्यक्ति जो समिति का सदस्य नहीं है, वह गैर कानूनी ढंग से समिति के सदस्य के अधिकार का हनन कर कई-कई बोरी खाद ले रहा है। गांव की जोत परिवार के मुखिया के नाम है। आधार कार्ड परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के नाम है, जिससे उसी परिवार का हर व्यक्ति लाइन में लग जा रहा है। समिति से स्वीकृत दर से खाद लेकर मार्केट में बेंच रहे है। आवश्यकता और कानूनी प्राविधान भी है कि समिति के प्रत्येक सदस्य को अंशधारी होने का प्रमाण पत्र दिया जाय, उसी प्रमाण पत्र पर सदस्य संख्या, जोत और पता अंकित हो ऐसे सदस्यों को ही सहकारी समितियाँ खाद का वितरण करें। इससे भीड़ का दबाव भी कम होगा और बिना आवश्यकता के लेकर ब्लैक करने वालो की पहचान भी होगी। साथ ही समितियों को लाभ यह होगा कि लोग सदस्य बनने के लिए प्रेरित होंगे और समितियों की अंश पूंजी भी बढ़ेगी।
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