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क्या’ नवागत ‘डीएम’, बेसिक ‘विभाग’ को ‘भ्रष्टाचारमुक्त’ कर ‘पाएगीं’?

क्या’ नवागत ‘डीएम’, बेसिक ‘विभाग’ को ‘भ्रष्टाचारमुक्त’ कर ‘पाएगीं’?

-जब तक डीएम, प्रभात जैसे एसडीआई पर शिकजा नहीं कसेंगी, तब तक बीएसए की कमाई बंद नहीं होगी, और भ्रष्टाचार ही कम:अशोक पाडेय

-एक निलबंन और बहाली में लाखों का लेन-देन होता, अगर कोई शिक्षक बहाली के लिए लाख दो लाख देगा तो उससे शिक्षा की गुणवत्ता की क्या उम्मीद की जा सकती

-वेतन रोकने और भुगतान करने से लेकर स्कूलों के मान्यता, निर्माण से लेकर कम्पोजिट ग्रांट में एसडीआई लोग 15 फीसद कमीशन तक वसूली बीएसए के लिए करते, हाजिर और गैरहाजिर के नाम पर वसूली होती

-जिन स्कूलों के हेडमास्टर कमीशन नहीं देता, उसके यहां लावलष्कर के साथ एसडीआई और बीएसए की टीम पहुंच जाती, सबसे अधिक कमाई निर्माण कार्य में

-बीएसए की मजबूती का पता इस बात से लगाया जा सकता कि मंत्री औी जनप्रधिनियों को अगर कोई काम करवाना होता है, तो उन्हें बीएसए को सर/साहब कहना पड़ता, इतना मान-सम्मान तो किसी डीएम को भी नहीं मिलता

बस्ती। बेसिक विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार से व्यथित कर्मचारी नेता अशोक पांडेय का कहना है, नवागत डीएम अगर इस विभाग के भ्रष्टाचार को समाप्त करने में सफल होती है, तो समझो आधा जिला भ्रष्टाचारमुक्त हो गया। कहते हैं, कि भ्रष्टाचार के चलते शिक्षा की गुणवत्ता दिन प्रति दिन गिरती जा रही हैं, कहते हैं, कि अगर कोई निलंबित शिक्षक बहाल होने के लिए लाख दो लाख देगा तो उससे पठन-पाठन की उम्मीद नहीं की जा सकती है। जिस भवन में 15 फीसद तक कमीशन हेडमास्टर्स से लिए जाते हो, उस भवन की गुणवत्ता कैसी होगी, इसे आसानी से समझा जा सकता है, जिस विधालय में मान्यता के नाम पर लाखों लिया जाता हो, उस विधालय से क्या उम्मीद कर सकते हैं? अगर कम्पोजिट ग्रांट में 15 फीसद कमीशन लिया जाएगा तो फर्जीवाड़ा होगा ही, डीसी निर्माण ये लेकर डीसी एमडीएम और एसडीआई तक बीएसए के वसूली गैंग के सदस्य है। कमीशन का चस्का बीएसए और एसडीआई लोगों को लोकसभा चुनाव के दौरान हुआ, बताते हैं, कि निर्माण में लगभग चार करोड़ की कमाई बीएसए, एसडीआई और डीसी निर्माण ने किया, भले ही चाहे चुनावी चंदे के नाम पर एक करोड़ देना पड़ा, फिर चार करोड़ का लाभ तो हुआ। इसी चस्के ने एक ईमानदार बीएसए को जिले का सबसे बड़ा बेईमान अधिकारी बना दिया। एक बीएसए की कमाई हर माह 10-15 लाख और एसडीआई की तीन से चार लाख आंकी जा रही हैं। वैसे भी जिले में सबसे पावरफुल अधिकारी बीएसए को ही माना जाता है, नियुक्ति अधिकारी होने के नाते इनका रुतबा अन्य अधिकारियों से अधिक है। जिस बीएसए के परिवार तीन चार हजार सदस्य हो, उस बीएसए को कैसे कमजोर माना जा सकता है। कहना गलत नहीं होती होगा, जिले का कोई भी ऐसा कोना नहीं जहां पर इनके आय के साधन न हो। पूरा जिला कमाने का जरिया है। पांडेयजी कहते हैं, कि जब तक डीएम, प्रभात जैसे एसडीआई पर शिकजा नहीं कसेंगी, तब तक बीएसए की कमाई बंद नहीं होगी, और न भ्रष्टाचार ही कम होगा। कहते हैं, कि एक निलबंन और बहाली में लाखों का लेन-देन होता, अगर कोई शिक्षक बहाली के लिए लाख दो लाख देगा तो उससे शिक्षा की गुणवत्ता की क्या उम्मीद की जा सकती? वेतन रोकने और भुगतान करने से लेकर स्कूलों के मान्यता, निर्माण से लेकर कम्पोजिट ग्रांट में एसडीआई लोग 15 फीसद कमीशन तक वसूली बीएसए के लिए करते हैं, हाजिर और गैरहाजिर के नाम पर वसूली होती है। कहते हैं, कि जिन स्कूलों के हेडमास्टर कमीशन नहीं देता, उसके यहां लावलष्कर के साथ एसडीआई और बीएसए की टीम पहुंच जाती, सबसे अधिक कमाई निर्माण कार्य में ही होता। बीएसए की मजबूती का पता इस बात से लगाया जा सकता कि मंत्री और जनप्रधिनियों को अगर कोई काम करवाना होता है, तो उन्हें बीएसए को सर/साहब कहना पड़ता, इतना मान-सम्मान तो किसी डीएम को भी नहीं मिलता। जोर देकर कहते हैं, कि दोनों शिक्षक संघ के अध्यक्ष चाह जाए तो बीएसए एक रुपया नहीं कमा सकते। बीएसए के भ्रष्टाचार के मामले में दोनों अध्यक्षों की खामोशी बताता है, कि यह लोग अपने ही साथियों का आर्थिक शोषण करवाना चाहते है।

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