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महिला अस्पताल में पांच हजार में होता मरीजों का किडनैप!

महिला अस्पताल में पांच हजार में होता मरीजों का किडनैप!

-महिला अस्पताल में आशाओं की लगती मरीजों के किडनैप करने की मंडी, जैसे ही कोई गरीब महिला डिलीवरी के लिए अस्पताल में इं्रटर करती, वैसे ही आशाओं की गैंग हमला बोल देती

-यह लोग किडनैप करके ऐसी नर्सिगं होम में डिलीवरी के लिए ले जाती, जहां पर कोई भी प्रशिक्षित डाक्टर नहीं होता

-इस गैंग के सदस्यों को दवाओं पर 45 फीसद, अल्टासाउंड पर 50 फीसद कमीशन मिलता

-गैंग की प्रत्येक सदस्य की डेली की आमदनी 20 से 25 हजार होती, सुबह होते ही इनके परिवार के सदस्य महिला अस्पताल के पिपल के पेड़ के नीचे छोड़ जाते

-कमीशन के चक्कर में यह गैंग अब तक न जाने कितने जज्जा-बच्चा की जान ले चुकी, इनके इस खेल में अस्पताल के डाक्टर से लेकर कंपाउडर तक शामिल रहतें

-गरीब महिलाओं की किडनैपिगं अस्पताल के सीएमएस के आखों के सामने होता, सीसी कैमरा भी गैंग को नहीं रोक पा रही

बस्ती। अभी तक आप लोगों ने फिरौती के लिए बच्चों का किडनैप होने की न जाने कितनी घटनाएं सुनी होगी, अब हम आप को ऐसे किडनैप के बारे में बताने जा रहा है, जिसे सुनकर आप भी हैरान हो जाएगें और सोचने पर मजबूर हो जाएगें कि क्या पैसे के लिए गरीब महिला मरीजों का भी किडनैप हो सकता है? जीं हां यह सही है, कि महिला अस्पताल में गांव गढ़ी की उन गरीब महिला मरीजों का किडनैप होता है, जो डिलीवरी कराने के लिए सरकारी अस्पताल आती है, जैसे ही यह महिला अस्पताल पहुंचती है, इनका सामना खूंखार आशा महिला किडनैपरों से होता हैं, यह महिलाओं को बेहतर इलाज और कम पैसे में डिलीवरी कराने का झांसा देकर उन्हें उस नर्सिगं होम में ले जाती है, जहां पर प्रषिक्षित डाक्टर का अभाव रहता है, जैसे ही मरीज ले कर जाती है, वैसे ही इन्हें चार से पांच हजार मिल जाता है, इसके आलावा इस गैंग के सदस्यों को दवाओं पर 45 फीसद, अल्टासाउंड पर 50 फीसद कमीशन मिलता। गैंग की प्रत्येक सदस्य की डेली की आमदनी 20 से 25 हजार होती, सुबह होते ही इनके परिवार के सदस्य महिला अस्पताल के पिपल के पेड़ के नीचे छोड़ जाते है। कमीशन के चक्कर में यह गैंग अब तक न जाने कितने जज्जा-बच्चा की जान ले चुकी, इनके इस खेल में अस्पताल के डाक्टर से लेकर कंपाउडर तक शामिल रहतें, गरीब महिलाओं की किडनैपिगं अस्पताल के सीएमएस के आखों के सामने होता, सीसी कैमरा भी गैंग को नहीं रोक पा रही।

यहां पर भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर धन लोभी अब यमराज हो गये चिकित्सा का पेशा अब बाजारु हो गया है, जेनरिक दवाइयां और मोनोपली दवाइयां जिस पर 300-600 रेट रहता है जो 20-25 रुपया में मिलती है, उसे नर्सिंग होमों और निजी अस्पतालों पर रेट टू रेट मिलेगा। चले जाइए महिला अस्पताल जहां प्रतिदिन सैकड़ों आशाएं दलाली के लिए बन ठन के खड़ी रहती है और गरीब मरीजों को प्राइवेट नर्सिंग होमों अस्पतालों पर पहुंचाती है डिलेवरी में आपरेशन पर 4000-5000 हजार दवा में 45 फीसद अल्ट्रासाउंड में 50 फीसद आशाओं का कमीशन है। महिला चिकित्सालय पर आशाओं का बाजार सुबह 8 बजे से 5 बजे तक जमा रहता यह सब महिला अस्पताल से लेकर महिला अस्पताल के सामने चलने वाले लैबों नर्सिंग होमों अस्पतालों अल्ट्रासाउंड सेंटरों मेडिकल स्टोरों पर जमी रहती है।जिन आशाओं को अपने क्षेत्र पर रहना चाहिए ऐसे महिला अस्पताल पर व महिला अस्पताल के इर्द-गिर्द क्या करती है? कोई देखने वाला नहीं। सरकार को जिसपर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए जिसमें जनता का हित है वह चिकित्सा व शिक्षा बदहाली व भ्रष्टाचारी के भेट चढ़ा हुआ है। ईश्वर की कल्याण करें देश प्रदेश का। जीरो टॉलरेंस नीति का अभिप्राय ही भ्रष्टाचार करना है। अफसरशाही नौकरशाही लूट खसोट में मस्त व्यस्त हैं। प्रतिदिन बस्ती आने वाली एक आशा कम से कम 20000-25000 कमाती है। डाक्टर की फीस में भी आशाओं का हिस्सा रहता फीस का 1/2 भाग आशाओं को इस, लिए मिलता है कि वो मरीज लाएं महिला अस्पताल के अगल बगल हर मेडिकल स्टोरों पर एक डाक्टर बैठती है, जिसमें जेनम एनम होते हैं। गांव देहात की भोली जनता आशाओं को देवी मान लेती है, समझती है, आशा दीदी आशा संगनी साथ है तो हमारा अच्छा होगा होता इसका उल्टा है। आशाओं की ईमानदारी देखिए जब मरीज सौ पचास चाय नाश्ता को देता है तो कहती हैं रहने दो परेशान हो दवा कराओ मरीज को कहां पता आशा ने मोटी रकम मारी है।

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