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महेशजी गौमाताओं को मरने से बचा लीजिए, नहीं तो पाप लगेगा!

महेशजी गौमाताओं को मरने से बचा लीजिए, नहीं तो पाप लगेगा!

-अगर योगीजी के राज में गौशालाओं में इलाज और चारे के अभाव में गौमाताएं मर रही है, तो योजनाको त्वरित ही बंद कर दे देना चाहिए या फिर गोसेवा आयोग के उपाध्यक्ष को नैतिकता के नाते पद त्याग देना चाहिए

-योगीजी के जब तक आप बेलगाम हो चुके दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगें तब तक गौमाताएं मरती रहेगी गोैमाता को जिंदा नहीं रख सकते तो

-अगर जिले के सबसे बड़े गौशला रमना तौफीर में गौमाताओं की मौत इलाज और चारे के अभाव में हो रही है, तो अन्य गौशालाओं के बारे में सोचना ही बेकार

-जब गौसेवा आयोग के उपाध्यक्ष एक गौमाता को मरने से नहीं बचा पा रहे हैं, तो फिर उपाध्यक्ष बनने से क्या फायदा?


बस्ती। ऐसा भी नहीं कि गौसेवा आयोग के गठन के पहले गौशालाओं में गौमाताएं इलाज और भरपूर चारे के अभाव में दम नहीं तोड़ रही थी, आयोग का गठन कह लीजिए या सक्रिय होने के बाद, आम लोगों को जरुर यह लगने लगा था, कि कम से कम अब इलाज और चारे के अभाव में गौमाताएं तो नहीं मरेगी। गौशालाओं की व्यवस्था में सुधार होगा, कमियां दूर की जाएगी। बस्ती के लोग इस लिए अधिक खुश हुए क्यों कि गौसेवा आयोग का उपाध्यक्ष पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष महेष षुक्ल बनाया गया। मनोनीत होते ही इन्होंने बस्ती में जो पहला पीसी किया था, उसमें वादा किया गया था, अब गौशालाओं में इलाज और चारे के अभाव में गौमाताएं दम नहीं तोड़ेगी। मेहनत भी इन्होंने खूब किया, गौशालाओं का हकीकत जानने के लिए रोज किसी न किसी गौशाला में पहुंच जाते थे, जिले भर के अधिकारियों के साथ इन्होंने बैठक भी किया, और सभी से कहा कि योगीजी की यह अतिमहत्वपूर्ण योजना हैं, और योगीजी का कहना है, कि गौशालाओं में किसी भी चीज की कमी नहीं होने पाएगी। यह भी कहा था, कि अगर किसी गौशाला में गौमाता की मौत होती है, तो कड़ी कार्रवाई योगीजी करेगें। संदेष तो महेशजी ने अधिकारियों को बहुत स्पष्ट दिया, लेकिन क्या करें, महेषजी जब अधिकारी कैबिनेट मंत्री और विधायकों की नहीं सुन रहे हैं, तो वह आप की कितनी सुनेगें और क्यों सुनेगें? अगर अधिकारी योगीजी की गौषालाओं में गौमाताओं को सरंक्षित करने वाली नीजि योजना को पलीता लगा सकते हैं, तो अन्य योजनाओं का क्या करते होगें, इसे आसानी से सोचा और समझा जा सकता है। ऐसा भी नहीं कि महेशजी ने गौशालाओं का भ्रमण करने के बाद कमियों को दूर करने के लिए रिपोर्ट नहीं किया होगा, अवष्य किया होगा, लेकिन यहां पर भी महेषजी क्या करें? रिपोर्ट पर तो कार्रवाई अधिकारियों को ही करनी होती है, और अधिकारी उसी काम को करने में रुचि लेते हैं, जिनमें उनका आर्थिक और नीजि लाभ होता, अब कोई अधिकारी चारे या अन्य सुविधाओं के लिए बजट लाने के लिए बखरा तो देगा नहीं, और जब तक बखरा नहीं देगा, बजट भी नहीं मिलेगा? यह तो पुरानी परम्परा है। इस योजना में कोई ठेकेदार भी नहीं हैं, जो बजट खरीदकर ला सके। यह सही है, कि इस योजना को धरातल पर लाना किसी के लिए भी आसान नहीं है। भले ही सीएम चाहें जितना इसे उपयोगी योजना बताएं लेकिन अधिकारी इस योजना को बकवास और अनुपयोगी बताते है। आज भी एनएच पर छुटटा पषुओं के चलते न जाने कितनी दुर्घटनाएं रोज हो रही है, न जाने अब तक कितने की जानें जा चुकी है। सवाल उठ रहा है, कि जब इसके जिम्मेदार गौमाताओं को गौशालाओं में स्ंारक्षित नहीं कर पा रहे हैं, तो सड़कों पर घूमने वाले जानवरों को कैसे पकड़ेगे और उन्हें संरक्षित कैसे करेगंे? महेशजी के प्रेसवार्ता में यह बात उठा भी था, कैटल कैचर के नाम पर करोड़ों खर्च कर दिए, लेकिन कैटल को कैच करने के लिए वाहन में ईधन डालने के लिए धन ही नहीं है। ब्लॉकों, जिला पंचायत, नगर पंचायतों में कैटल कैचर वाहन जंग खा रहे है। अब आप लोग इस योजना के बारे में अच्छी तरह समझ गए होगें, इसी लिए इस योजना को पूरी तरह अनुपयोगी और औचित्हीन माना जा रहा है। भले ही चाहें इस योजना के पांच उपाध्यक्ष और एक अध्यक्ष मनोनीत हो गएं, लेकिन यह सब मिलकर भी एक गौमाता की जान नहीं बचा पा रहे हैं, तो फिर ऐसे उपाध्यक्ष के होने से क्या लाभ जब गौमाता की जान नहीं बचा सकते। जाहिर सी बात हैं, ऐसे में गौमाताओं की मौत होगी ही। मौत के बाद जो उनके शरीर को नोंच-नोंच कर चील कौवे और कुत्ते खाते हैं, उसे देख हर हिंदू अपने आप को गुनहगार मानने लगता है। देखा जाए तो योजना की तरह पांचों उपाध्यक्ष भी अनुपयोगी साबित हो रहे।    

यह दृश्य जिले के सबसे बृहद् गौशाला रमना तौफिर का है, जहां पर चारे और इलाज के अभाव में पशु या तो बीमार हैं या फिर मर गए हैं, मरने के बाद इनको दफनाना चाहिए लेकिन दफनाया तक नहीं गया, यह है, उस गौमाता का सम्मान जिसकी हिंदू समाज पूजा करता है। ऐसे ही बाहर पडे हैं, एक पशु तो बाउंड्री के अंदर ही सड़ा हुआ पड़ा है, यहां के कर्मचारियों से पूछो तो कहते हैं भइया डॉक्टर साहब आज आए नहीं कल भी नहीं आए थे और हम दो चार लोग क्या कर सकते हैं। बात इनकी भी सही है कि 100-200 की संख्या में पशु और देखभाल करने वालों की संख्या सिर्फ चार। कैसे होगी सेवा और कैसे बचेगे पशु। कमियों तक का कहना है, कि गौशाला बन जाने से पशुआंे की सुरक्षा नहीं होती, उसके लिए खाने-पीने दवा की व्यवस्था भी होनी चाहिए।


 

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