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नूर’ हास्पिटल पर ‘करम’ और ‘मेडीवर्ल्ड’ पर ‘रहम’

नूर’ हास्पिटल पर ‘करम’ और ‘मेडीवर्ल्ड’ पर ‘रहम’

बस्ती। फिल्म आंखें में एक गाना है, ‘गैरों पर रहम और अपनों पर करम ऐ जाने वफा यह जुल्म न कर’ इसी पैटर्न पर सीएमओ और उनकी टीम चल रही है। जिसे चाहती हैं, उस पर ‘रहम’ करती और जिसे नहीं चाहती उस पर ‘करम’ करती है। इसी दोहरी कार्रवाई की नीति के चलते सीएमओ बदनाम हो रहे हैं। ताजा उदाहरण नूर हास्पिटल और मेडीवर्ल्ड हास्पिटल पर हुई कार्रवाई सामने आया। भाजयुमो के जिलाध्यक्ष अमित गुप्त की शिकायत पर तो सीएमओ ने नूर हास्पिटल को सील और दस हजार का जुर्माना लगा दिया, लेकिन रफीउदीन की शिकायत पर मेडीवर्ल्ड हास्पिटल पर जुर्माना न तो जुर्माना लगाया और न ही पूरी तरह सील ही किया। दुनिया को दिखाने के लिए हास्पिटल को सील करने और एफआईआर दर्ज करने का ढ़ोग रचा। सवाल उठ रहा हैं, कि जब दोनों अस्पतालों में एक जैसा फर्जीवाड़ा पमिला तो कार्रवाई क्यों दो तरह की गई? क्यों नूर हास्पिटल पर गाज गिराया गया और क्यों मेडीवर्ल्ड को बड़ी कार्रवाई से वंचित किया गया? शिकायतकर्त्ता इसे मनी और पावर का गेम मानते और कहतें हैं, कि जब यह साबित हो गया कि मेडीवर्ल्ड हास्पिटल के डा. प्रमोद कुमार चौधरी ने रफीउदीन की डिग्री लगा कर फर्जीवाड़ा किया तो क्यों नहीं वही कार्रवाई की गई जो नूर हास्पिटल के खिलाफ की गई? इससे साफ पता चलता है, कि सीएमओ और उनकी टीम में कार्रवाई करने के मामले में पारदर्शिता का अभाव है। इसी लिए सीएमओ और उनकी टीम से कोई भी शिकायतकर्त्ता संतुष्ट नहीं रहता। जब तक इस टीम पर पैसा लेकर दोषियों को बचाने का आरोप लगता रहेगा, तब तक शिकायतकर्त्ता इस अधिकारी से लेकर उस अधिकारी तक यह चिल्लाता रहेगा कि साहब सीएमओ और उनकी टीम ने न्याय नहीं किया।

नूर हास्पिटल के पंजीकरण के मामले में तत्कालीन सीएमओ और नोडल अच्छी तरह जानते थे, कि आयुष की डिग्री पर एलोपैथ का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता, फिर भी दिया और जब दबाव पड़ा तो निरस्त भी किया। दोनों शिकायतकर्त्ताओं का कहना है, कि कार्रवाई तो तत्कालीन सीएमओ और नोडल के खिलाफ होनी चाहिए, क्यों कि गलत तो सीएमओ और नोडल ने किया, तो फिर कार्रवाई भी गलती करने वालों के खिलाफ होनी चाहिए। सीएमओ अगर अपने लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने लगेंगे तो गांधीजी का दर्शन कौन कराएगा? अगर कोई शिकायतकर्त्ता इसे लेकर कोर्ट चला जाए तो सीएमओ और उनके कमाउपूत दोनों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है, दोनों के खिलाफ एफआईआर और निलंबित तक की कार्रवाई हो सकती है। चूंकि सीएमओ और उनकी टीम अच्छी तरह जानती हैं, कि कोई भी शिकायतकर्त्ता या फिर उनके सहयोगी अधिक दिन तक नहीं टिक सकते हैं, क्योंकि अधिकांश शिकायतकर्त्त आर्थिक रुप से कमजोर होता है, और जिसके खिलाफ आरोप लगाया जाता है, वह पावर और मनी दोनों रुप से मजबूत होता है, इस लिए वह हाईकोर्ट तक नहीं जा सकता, और जिन शिकायतकर्त्ताओं और उनके सहयोगियों को आवेदन टाइप करवाने के लिए आर्थिक तंगी से गुजरना पड़े उन लोगों के लिए तो लड़ाई और भी कठिन हो जाती। कहा भी जाता है, कि कोई भी लड़ाई एकता और आर्थिक के अभाव में न तो अधिक दिन तक लड़ी जा सकती है, और न लड़ाई को ही जीता जा सकता है, इसी का फायदा भ्रष्टाचारी उठाते आ रहे है। इसी लिए अगर किसी कोई लंबी लड़ाई लड़नी है, और उसे अंजाम तक पहुंचाना है, उसे किसी पर भी निर्भर नहीं रहना चाहिए। जो भी निर्भर रहा, उसे जीत नहीं मिली, बदनामी का दंष अलग से झेलना पड़ा। ईमानदारी के अभाव में भी लोग लड़ाई नहीं जीत पाते। ईमानदारी जैसा अनमोल रत्न अगर किसी के पास है, तोउसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। ईमानदारी सिर्फ पैसे और व्यापार में ही नहीं बल्कि रिष्तों में होनी चाहिए। ईमानदारी के बल पर ही न जाने कितने लोग कहां से कहां पहुंच गए। बेईमानी से सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाया और बनाया जा सकता है, इज्जत और मान-सम्मान नहीं। कहा जाता है, मेडीवर्ल्ड, नूर, सूर्या, ओमबीर, गौड़, स्टार, ओम आर्थोपैडिक, भव्या, फातिमा और पीएमसी जैसे लोगों ने पैसा तो बहुत बनाया और कमाया लेकिन पैसे के सापेक्ष में मान-और सम्मान नहीं कमा पाए।

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