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ओमवीर अस्पताल में पत्रकार जाएं पांच हजार ले आएं
बस्ती। जनता इससे पहले भी कई बार कुछ मीडिया पर यह आरोप लगा चुकी है, कि जब भी किसी प्राइवेट अस्पताल या होटल में कोई घटना होती है, उसका सबसे अधिक लाभ मीढिया कें लोगों को होता है। कई ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी है, जिसमें खबर दबाने और फेवर में खबर लिखाने के लिए लिफाफा बांटा जाता है। खास बात यह है, कि लिफाफा चाहें पांच सौ का हो या दो सौ का। पत्रकारों को लेने में कोई एतराज नहीं होता। ठीक यही स्थित ओमवीर अस्पताल में आज कल हो रहा है। यहां पर पल्टू नामक मरीज की मौत क्या हुई कुछ पत्रकारों के लिए चांदी हो गया। यह पहला ऐसा अस्पताल होगा, जहां पर पत्रकारों का पूरा सम्मान किया जा रहा है। घटना के बाद इस अस्पताल में पत्रकारों के लिए एक आफर दिया गया है। आफर की कीमत चार से पांच हजार है। बषर्ते पत्रकारों को वही लिखना होगा जो अस्पताल प्रषासन चाहेगा। यानि पत्रकारों को मौत का जिम्मेदार अस्पताल और डा. नवीन चौधरी को नहीं, बल्कि पल्टू के परिवार को दोषी मानकर खबर लिखना, चलाना और सोषल मीडिया पर डालना होगा। पहली बार पत्रकारों को पांच हजार का लिफाफा मिल रहा है। हांलाकि इसके पहले डा. गौड़ के मामले में तो लाखों का खेल हुआ, पत्रकार पुलिस और न्याय दिलाने की दंभ भरने वाले मालामाल हो गए। कुल 20 से 21 लाख का बंदरबांट होने की खबरें डाक्टर के लोगों के करीबियों से छन कर आ रही है। एक नामचीन और बदनाम पत्रकार पर तो पुलिस और पत्रकारों को मैनेज करने के नाम पर दस लाख तक की वसूली हुई। खासबात यह है रही इसमें प्रिंट और इलेक्टानिक मीडिया ने पूरी ईमानदारी का परिचय दिया। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, कि अब मीडिया भी नीजि लाभ के लिए अपराध करने वालों का साथ देने लगी है। ऐसा भी नहीं कि यह छिप जाने वाली बात है। ध्यान में रखिएगा हर वर्ग में गलत काम छिप सकता है, लेकिन मीडिया में नहीं। आमजनता सवाल करती है, कि आप में और अपराधियों में क्या फर्क रह गया? अपराधी से अधिक अपराध को छिपाने वाले को गुनहगार माना जाता है, और यह आरोप पुलिस और नेताओं के बाद मीडिया पर लगने लगा है। कल बनकटी ब्लॉक के एक आली प्रधान मिले, कहने लगे कि भईया बुरा न मानिएगा, हम पत्रकारों से परेषान हो गएं हैं, जब होता गांव पहुंच जाते हैं, और पैसा मांगने लगते है। जब कहा जाता है, कि पैसा नहीं हैं, तो कहते हैं कि प्रधानजी कम से कम पचास रुपया तो दे दिजीए। कभी-कभी तो पत्रकारों के डर गांव छोड़कर अन्य स्थानों पर चले जाना पड़ता है।
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