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पीएमसी नर्सिगं होम में खुला पीएमसी कैंटीन

पीएमसी नर्सिगं होम में खुला पीएमसी कैंटीन

-पीएमसी वाले पैसा कमाने कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहते

-जब पीएमसी वाले कैंटीन चलाने लगगें तो नर्सिगं होम की इज्जत का क्या होगा?

-पीएमसी परिसर के भीतर इस कैंटीन को छोटा मोटा कैंटीन न समझिए, यहां पर चाय, समोसा और आइसक्रीम सहित अन्य खाद्य पदार्थ बिकता, यह अलग बात हैं, फूड विभाग से लाइसेंस नहीं लिया गया

-अगर लिया गया होता तो लाइसेंस का नंबर होता और खाद्य पदार्थ की सूची रेट सहित टंगी होती, अगर किसी को पांच-दस किलो भी जलेबी चाहिए तो ताजाताजा मिल जाएगा

-बच्चों वाले अस्पताल के वार्ड के बगल में अगर कैंटीन खुलेगा तो बच्चों और मरीज को इंफेक्षन होना लाजिमी

बस्ती। बताते हैं, कि डा. रेनू राय, डा. एसके गौड़, सूर्या सहित जितने भी नामीगिरामी प्राइवेट अस्पतालों के मालिक और सह मालिक हैं, उन लोगों के पास इतनी दौलत हैं, कि उनके सामने पैसा खर्च करने और रखने की समस्या खड़ी हो गई है। ऐसे लोगों ने पैसा तो बहुत कमाया/बनाया, लेकिन इज्जत और मान-सम्मान भी गवांया। अगर पीएमसी जैसी बड़ी और नामी गिरामी नर्सिगं के मालिक/सह मालिक कैंटीन खोलकर पैसा कमा रहे हैं, तो ऐसे लोगों को किस श्रेणी में रखा जाए, इसका निर्णय जनता और मरीजों को करना है। इसी लिए कहा जा रहा हैं, इस नर्सिगं होम में जाने से पहले यह सोच लीजिए कि आप सही नर्सिगं होम में जा रहे हैं, या फिर ऐसी जगह जा रहे हैं, जहां पर अमानवीय व्यवहार किया जाता। मरीजों को गुमराह करके उनसे पैंसा एंठा जा रहा है। ऐसे लोग जमीन का कारोबार कर रहे हैं, नकली दवाओं का कारोबार कर रहे हैं, एमवे जैसी कंपनी का दवा बेचकर अपना नाम खराब कर रहे है। जबकि नियमानुसार कोई भी डाक्टर एमवे जैसी कंपनी का दवा नहीं बेच सकते और न उसका एजेंट ही बन सकता है। यह आईएमए के रुल्स के अगेस्ट है। यह लोग अपने मरीजों को डराकर एमवे की मंहगी दवा खरीदने को मजबूर करते हैं, ताकि अधिक से अधिक कमीशन मिल सके। कहना गलत नहीं होगा कि इस अनैतिक धंधे में ऐसे-ऐसे बड़े डाक्टर जुड़े हुए हैं, जो अथाह चल-अचल संपत्ति के मालिक हैं। पुरानी कोठियों के मालिक है। इसमें एक बड़ेबन रोड तो दूसरा दक्षिण दरवाजा की कोठी के मालिक है। दोनों एक ही वर्ग से ताल्लुक रखते है। इसी तरह पीएमसी वाले भी पैसा कमाने का कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहते, भले ही चाहें इसके लिए इन्हें कैंटीन ही क्यों न खोलनी पड़े। सवाल उठ रहा है, कि जब पीएमसी वाले कैंटीन चलाने लगेगें तो उनके नर्सिगं होम की इज्जत का क्या होगा? पीएमसी परिसर के भीतर इस कैंटीन को छोटा मोटा कैंटीन न समझिए, यहां पर चाय, समोसा और आइसक्रीम सहित अन्य खाद्य पदार्थ बिकता, यह अलग बात हैं, फूड विभाग से लाइसेंस नहीं लिया गया, अगर लिया गया होता तो लाइसेंस का नंबर होता और खाद्य पदार्थ की सूची रेट सहित टंगी होती, अगर किसी को पांच-दस किलो गरमा गरम जलेबी चाहिए तो वह भी मिल जाएगा, इस कैंटीन में बाहर के लोग भी गरमा-गरम जलेबी खाने आते है। बच्चों वाले अस्पताल के वार्ड के बगल में अगर कैंटीन खुलेगा तो बच्चें और मरीज को इंफेक्षन होना लाजिमी है। वैसे भी वार्ड के भीतर या अस्पताल परिसर में खान-पान की वस्तुएं लाना हानिकारक माना जाता है। खुले खाद्य पदाथे से सबसे अधिक इंफेक्षन का खतरा रहता है। जिस भी कैंटीन वाले नर्सिगं होम में साफ-सफाई का अभाव रहता है, वहां बीमारी अपने आप फैलती है। इसी लिए बार-बार कहा जाता है, कि नर्सिगं होम का टायलेट भी चमकना चाहिए। जिस तरह पीएमसी ने अपने नाम का कैंटीन का बैनर लगा रखा हैं, उससे पता चलता है, कि इस कैंटीन का मालिक पीएमसी वाले ही होगें।

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