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राम जाने बस्ती का पंचायत चुनाव किसके नाम पर लड़ा जाएगा!

राम जाने बस्ती का पंचायत चुनाव किसके नाम पर लड़ा जाएगा!

-अपने दम पर गांव पंचायत का चुनाव न जीत सकने वाले लोग जिला पंचायत अध्यक्ष और प्रमुख बने बैठे

आगामी पंचायत चुनाव भाजपा के लिए लिटमस टेस्ट जैसा होगा, इस लिटमस टेस्ट पर 27 का चुनाव निर्भर

-पंचायत चुनाव में पार्टी का उंट किस करवट बैठेगा या बिदक जाएगा, इस पर प्रत्याशियों को चिंतन करना होगा

-अगर पार्टी का सेनापति तेज होता तो कुछ भूमिका निभा भी सकते थे, पर वर्तमान सेनापति से वह उम्मीद भी नहीं की जा सकती

-सेनापति चुप है, और बैटिगं करने वाले छुट भैया नानी दादी तक एक दूसरे को याद दिला रहें

-जितने भी पूर्व या वर्तमान जनप्रतिनिधि हैं, सबका लक्ष्य पार्टी नहीं बल्कि परिवार और लक्ष्मीजी हैं

-जिस तरह पार्टी में रहते हुए पार्टी के खिलाफ अपने अहंकार की संतुष्टि के लिए एक दूसरे को देख लेने की जो प्रवृत्ति बढ़ रही, वह किसी अनहोनी घटना की ओर ईशारा कर रहा

-जिन लोगों ने गिल्लम चौधरी को अध्यक्ष नहीं बनने दिया, वही लोग फिर उन्हीं को मोहरा बनाकर बैटिगं कर रहे हैं

-क्या अगले चुनाव में गिल्लम चौधरी धोखेबाजों पर फिर विष्वास कर सकेगें, यह पूरी तरह गिल्लम चौधरी पर निर्भर

बस्ती। वैसे तो पूरे प्रदेश में चुनाव मोदी और योगी के नाम पर लड़ा जाएगा, पर बस्ती का चुनाव किसके नाम पर लड़ा जाएगा यह राम जाने। भाजपा के लिए पंचायत चुनाव लिटमस टेस्ट जैसा होने वाला हैं, इस चुनाव के परिणाम का प्रभाव 27 के विधानसभा चुनाव पर निर्भर रहेगा। अपने दम पर गांव पंचायत का चुनाव न जीत सकने वाले लोग जिला पंचायत अध्यक्ष और प्रमुख बने बैठे है। इनकी असली पहचान सीधे चुनाव में होगी, कौन कितने पानी में हैं, इसका पता तब चलेगा, जब सरकार सीधे चुनाव कराने की मंजूरी देगी। तब तक यह लोग चाहें जितना अपने को षेर या बब्बर शेर समझ लें, लेकिन जैसे ही इन्हें सीधे चुनाव में जाना पड़ेगा, इनकी नाना-नानी और दादा-दादी सब याद आ जाएगी। वैसे प्रमुखी और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ने वाले अभी से अपनी तैयारी कर लें, और जितना हो सके जनता में अपनी खराब छवि को साफ-सुधरा बना लें, फिर मौका नहीं मिलेगा। कम से कम अभी से सीधे चुनाव में जाने वाले प्रत्याषियों को तो तैयारी कर ही लेनी चाहिए। जिस तरह राज्य और केंद्र की ओर से सीधे चुनाव कराने के संकेत मिल रहे है, उससे लगने लगा है, कि अब असली लोकतंत्र आने वाला है। जनता को भी अपने प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष को चुनने का मौका मिलेगा। जो प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष गांव के मतदाताओं को कुछ नहीं और नेताओं को सबकुछ समझ रहे हैं, उन्हें अभी से ही हाथ पैर जोड़ना सीख लेना चाहिए। जो लोग फारचूनर से चल रहें हैं, उन्हें गांव की पगडंडी पर चलने की आदत डाल लेनी चाहिए। जो लोग जनता से सीधे मुंह बात नहीं करते थे, उन्हें सभ्यता से बात करने का सलीका सीख लेना चाहिए। एसी कमरे में रहने की आदत कम से कम चुनाव तक तो छोड़ ही देना चाहिए। बार-बार सवाल उठ रहा है, कि अगर सीधे चुनाव की व्यवस्था हो गई तो क्या वर्तमान का कोई प्रमुख या जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव जीत पाएगें? इनके जीतने पर इस लिए प्रशन चिंहृ लग रहा है, क्यों कि इन लोगों ने अपनी छवि को इतना खराब कर दिया है, कि यह लोग चाहें तो भी नहीं सुधार सकते है। वर्तमान में इन लोगों की जो पहचान बनी है, वह विकास पुत्र की नहीं बल्कि भ्रष्टाचारी की बनी है। यही कारण है, कि यह लोग कभी नहीं चाहेगें कि सीधा चुनाव हो। क्यों कि इन लोगों की आदत जनता के बीच में रहने की नहीं बल्कि नेताओं के आवासों पर परिक्रमा करने की बन चुकी है। धन के बल पर बैक डोर से पद पाने की जो आदत बनी हुई हैं, उस आदत में अगर सुधार नहीं किया तो जिंदगीभर पूर्व ही कहलाएगें। देखा जाए तो सीधे चुनाव होने से सबसे अधिक नुकसान उन नेताओं का होगा, जिन्हें कमीशन खाने की आदत पड़ चुकी है। ऐसे नेताओं को भी अपनी आदतों में सुधार लाना होगा, खर्चे को कम करना पड़ेगा। क्यों कि कभी न कभी इन्हें भी जनता के बीच में जाना है। मीडिया को भी रिर्पोटिगं करना आसान हो जाएगा, तब उन्हें कोई प्रमुख टमाटर खरीदने के दो सौ रुपया नहीं देगा। क्षेत्र का विकास होगा, प्रधान भी अपना काम ईमानदारी से इस लिए करेगा क्यों कि उसे भी प्रमुखों को कमीशन देने से निजात मिल जाएगा।  

कहा जा रहा है, कि पंचायत चुनाव में पार्टी का उंट किस करवट बैठेगा या बिदक जाएगा, इस पर प्रत्याशियों को चिंतन करना होगा, अगर पार्टी का सेनापति तेज होता तो कुछ भूमिका निभा भी सकते थे, पर वर्तमान सेनापति से वह उम्मीद भी नहीं की जा सकती, सेनापति चुप है, और बैटिगं करने वाले छुट भैया नानी दादी तक एक दूसरे को याद दिला रहें, जितने भी पूर्व या वर्तमान जनप्रतिनिधि हैं, उन सबका लक्ष्य पार्टी को आगे ले जाने की नहीं, बल्कि परिवार और लक्ष्मी हैं, जिस तरह पार्टी में रहते हुए पार्टी के खिलाफ अपने अहंकार की संतुष्टि के लिए एक दूसरे को देख लेने की जो प्रवृत्ति बढ़ रही, वह किसी अनहोनी घटना की ओर ईशारा कर रहा, जिन लोगों ने गिल्लम चौधरी को अध्यक्ष नहीं बनने दिया, वही लोग फिर उन्हीं को मोहरा बनाकर बैटिगं कर रहे हैं, क्या अगले चुनाव में गिल्लम चौधरी धोखेबाजों पर फिर विष्वास कर सकेगें, यह पूरी तरह गिल्लम चौधरी पर निर्भर?

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