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सब बरता हुआ कौड़ा ताप रहे थे, खूब लूटपाट किया!

सब बरता हुआ कौड़ा ताप रहे थे, खूब लूटपाट किया!

बस्ती। जिले के लोगों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके जनपद में धान का सबसे बड़ा घोटाला होगा। वैसे फर्जी धान की खरीद जब से जिले में डीएस यानि अमित कुमार चौधरी आए हैं, तब से हो रहा है। धान की इतनी बड़ी फर्जी खरीद हुई, कि जो बोरा खली बचा उसे डीएस ने रेलवे के वैगन से बाहर भेजकर करोड़ों कमा लिया। इनकी तैनाती सबसे पहले सिद्धार्थनगर में 29 सितंबर 20 को हुई, 15 दिन भी नहीं बीता था, कि इन्हें बस्ती के डीएस का अतिरिक्त प्रभार मिल गया। इनके करीबियों का कहना है, कि पांच साल में इन्होंने फर्जी धान/गेहू खरीद से इतना पैसा कमाया कि यह दिल्ली में प्रापर्टी डीलिगं में पैसा लगाना षुरु कर दिया। इस व्यक्ति को करोड़पति नहीं बल्कि अरबपति बनाने में इनके विभाग के बड़े अधिकारियों योगदान रहा। यह पैसे के बल पर मनमानी करते रहें, जिसे चाहा उसे क्रय प्रभारी बना दिया, और जिसे चाहा उसे फर्जी भुगतान कर दिया। यह धान/गेहू खरीद का सत्यापन भी नहीं करते थे, बिना सत्यापन के करोड़ों का भुगतान कर देते थे। इसमें एकाउंटेंड भी साथ देता था। तभी तो दर्ज तीनों मुकदमें में एकाउंटेंड का नाम भी षामिल है।  स्थानीय स्तर पर इनके आका डीआर और एआर रहे। डीआर ने तो इनका तबादला हो जाने के बाद यह कहते हुए रोकवा दिया कि अगर यह चले गए तो बकाए की वसूली नहीं होगी, वसूली तो नहीं हुई, अलबत्ता फर्जीवाड़ा अवष्य बढ़ गया, इसी लिए डीआर और एआर को इतने बड़े फर्जीवाड़े के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है, क्यों कि अगर यह दोनों अगर डीएस का बचाव नहीं करते तो इतना बड़ा घोटाला नहीं होता, और न जिले के माथे पर कलंक का टीका ही लगता। सच मानिए तो एफआईआर से लेकर निलंबन और बर्खास्तगी की कार्रवाई डीआर और एआर के खिलाफ होनी चाहिए। आरकेवीवाई के करोड़ों रुपये के दुरुपयोग के लिए भी डीआर, एआर और डीएस को जिम्मेदार माना जा रहा है। आरकेवीवाई का करोड़ों रुपया सचिवों ने दबा रखा हैं, लेकिन आज तक डीआर और एआर ने एक भी सचिव के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं करवाया। इसी लिए बार-बार कहा जा रहा है, कि मंडल और जिले में डीआर और एआर का रहना सहकारिता के लिए अच्छा नहीं है। कहना गलत नहीं हैं, कि मंडल में सहकारिता को बर्बाद करने के लिए यही दोनों अधिकारी जिम्मेदार है। इन दोनों ने डीएस का दामाद की तरह ख्याल रखा। क्यों कि डीएस सभी के भोजन-पानी की व्यवस्था जो करते थे। जब डीसीबी के चेयरमैन ने डीआर, एआर, डीएम, एडीएम के खिलाफ पीसीएफ के एमडी, सहकारिता मंत्री और गृहमंत्री को पत्र लिखा तो सारे लोग भिलभिला उठे। मानो डीसीबी के अध्यक्ष ही गलत हो और बाकी लोग सही हो। लखनउ के मजबूत डोर के नाते लाख अपराध करने के बावजूद एआर बचते आ रहे है। वरना गृह जनपद होने के नाते यह बस्ती में नौकरी नहीं कर पाते। अमित चौधरी को बचाने का काम भी डीआर और एआर ने ही किया। करोड़ों रुपये के धान घोटाले का आरोप जो डीएस पर मढ़ा जा रहा है, उसमें डीआर और तीनों जनपदों के एआर को सह अपराधी बनाना चाहिए। मंडल में सहकारिता की जो दुर्दषा हैं, उसके लिए सिर्फ और सिर्फ डीआर को ही जिम्मेदार माना जा रहा है। तीनों जनपदों के असख्यं सचिवों की कथित अवैध नियुक्ति बिना डीआर की सहमति के होना संभव ही नहीं है। कहा जा रहा है, कि कथित अवैध सचिवों की नियुक्ति की जांच सीबीआई से प्रस्तावित है। क्यों कि इसमें करोड़ों का खेल होने की संभावचना जताई जा रही है। चाहें एआर हो या फिर चाहें डीआर दोनों के कार्यकाल की समीक्षा करने की मांग उठ रही है। यह अलग बात हैं, कि वर्तमान गेहूं क्रय नीति के चलते असंख्य बेईमान बनने से बच गए। गेहूं का एमएसपी रेट कम होने और बाजार रेट अधिक होने के कारण करोड़ों की हेराफेरी करने वाले बिचौलियों ने क्रय केंद्र लेने से ही इंकार कर दिया। डीआर और एआर के कार्यालयों में जो 12 बजे के बाद अदालत लगती है, उसमें डीआर और एआर के कार्यो की प्रसंषा तो होती ही हैं, साथ में डीएम और एडीएम की खिल्ली भी उड़ाई जाती है। यह दोनों चाहें जितना गुनाह कर ले, इन्हें विष्वास रहता है, कि लखनउ वाले आका बचा लेगें, और अब तो निंबधक भी बस्ती के रहने वाले है। अब तो बचना और भी आसान हो गया। बस जेब ढ़ीली करनी पड़ेगी।

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डीआर और एआर के कारण ही बस्ती के माथे पर लगा कलंक का टीका

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