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‘सीडीओ’ ने खोली ‘एआर’ की ‘पोल’

‘सीडीओ’ ने खोली ‘एआर’ की ‘पोल’

-जो जांच एआर, एसीडीओ और एडीओ को करना चाहिए, वह जांच सीडीओ कर रहे

-सीडीओ की जांच में बी-पैक्स साधन सरकारी समिति जिनवा सल्टौआ बंद मिला, त्वरित एआर को कार्रवाई करने का दिया निर्देश

-न चाहते हुए भी एआर को समिति के सचिव राजेश कुमार चौधरी के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी, सचिव के हस्ताक्षर की मान्यता को समाप्त करते हुए, प्रभार पचानू समिति के सचिव को देना पड़ा

-सुबह ही समिति पर खाद पहुंची, खाद को बंटना चाहिए था, लेकिन समिति के सचिव इस लिए ताला बंदकर फरार हो गए, कि बाद भी खाद की कालाबाजारी की जाएगी, लेकिन सीडीओ ने सचिव की मंशा को पूरा नहीं होने दिया, जब कि यह जांच एआर, एसीडीओ और एडीओ को करनी चाहिए थी, कार्रवाई तो इन तीनों के खिलाफ भी होनी चाहिए

-अगर बसडीला और सजनाखोर जैसे समितियों की जांच हो जाए तो सबसे अधिक खाद की आपूर्ति इन्हीं समितियों पर मिलेगी, क्यों कि इन समितियों के सचिवों को एआर का चहेता माना जाता

-जो सचिव समिति छोड़कर एआर के यहां हाजरी लगाने सुबह-सुबह जाता है, उसी को ही अधिक खाद मिलती, जब कि खाद का वितरण हर समितियों पर समान रुप से होना चाहिए, खाद जब उपलब्ध हैं तो क्यों नहीं सभी समितियों को खाद भेजी जा रही?

बस्ती। मीडिया पहले ही यह बता चुकी है, कि जिन एआर और जिला कृषि अधिकारी की टीम ने खरीफ को लूटा, वही टीम रवी को लूट रही है। इसी लिए किसान बार-बार कह रहा है, कि जब तक दोनों अधिकारी रहेगें, तब तक खाद की कालाबाजारी नहीं रुक सकती। किसान की ओर से बार-बार शासन, प्रशासन और पक्ष एवं विपक्ष के नेताओं से खाद की कालाबाजारी करने वालों से बचाने की गुहार लगा रही है, मगर इन किसानों की आवाज को एआर और डीओ की बेईमानी के आगे सुनना ही नहीं चाहते। इन दोनों अधिकारियों पर इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसान एक-एक बोरी खाद के लिए क्यों परेशान और क्यों रो रहा है। खरीफ के लूट के बाद लगने लगा था, कि रवी सुरक्षित रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नया प्रशासन भी इन दोनों अधिकारियों के सामने कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। अब जरा अंदाजा लगाइए कि समितियों की जां जांच एआर, एसीडीओ और एडीओ को करनी चाहिए, वह जांच सीडीओ को करनी पड़ रही है। जाहिर सी बात हैं, जब जांच एआर करेगें तो कौन इन्हें हिस्सा देगा। 11 नवंबर 25 को सीडीओ की जांच में बी-पैक्स साधन सरकारी समिति जिनवा सल्टौआ बंद मिला, त्वरित एआर को कार्रवाई करने का दिया निर्देष। न चाहते हुए भी एआर को समिति के सचिव राजेष कुमार चौधरी के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी, सचिव के हस्ताक्षर की मान्यता को समाप्त करते हुए, प्रभार पचानू समिति के सचिव को देना पड़ा। सुबह ही समिति पर खाद पहुंची, खाद को बंटना चाहिए था, किसानों की लाइन लगी थी, लेकिन समिति के सचिव इस लिए ताला बंदकर फरार हो गए, ताकि बाद भी खाद की कालाबाजारी की जा सके। लेकिन सीडीओ ने सचिव की मंशा को पूरा नहीं होने दिया, जब कि यह जांच एआर, एसीडीओ और एडीओ को करनी चाहिए थी, कार्रवाई तो इन तीनों के खिलाफ भी होनी चाहिए। किसानों का दावा है, कि अगर बसडीला और सजनाखोर जैसे समितियों की जांच हो जाए तो सबसे अधिक खाद की आपूर्ति इन्हीं समितियों पर मिलेगी, क्यों कि इन समितियों के सचिवों को एआर का चहेता माना जाता और दोनों पदाधिकारी भी है। जो सचिव समिति छोड़कर एआर के यहां हाजरी लगाने सुबह-सुबह जाता है, उसी को ही अधिक खाद मिलती, जब कि खाद का वितरण हर समितियों पर समान रुप से होना चाहिए, खाद जब उपलब्ध हैं तो क्यों नहीं सभी समितियों को खाद भेजी जा रही? सवाल उठ रहा है, कि जब डीओ और एआर दावा कर रहे हैं, कि गोदाम में खाद भरा हुआ है, तो क्यों नहीं सभी समितियोें पर खाद उपलब्ध कराई जा रही है। किसानों का कहना हैं, कि अगर इसी तरह सीडीओ जांच करते रहें तो हर समिति का खाद उपलब्ध मिलेगा और सचिव खाद बांटते हुए मिलेगें। किसानों की ओर से डीएम से भी मांग की जा रही है, कि वह खाद की उपलब्धता बनाए रखने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों की देखरेख में समितियों और रिटेलर्स के यहां नियमित जांच करानी चाहिए। इससे काफी हद तक खाद की कालाबाजारी पर अंकुष लग सकेगा। खाद उपलब्ध रहने के बाद भी सचिवों और रिटेलर्स का समिति और दुकान बंदकर फरार रहना दर्षाता है, कि खाद की कालाबाजारी नहीं रुक रही है।

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