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संासद, विधायक, डीएम, चेयरमैन, ईओ, जेई के नाम पर लेते 54 फीसद कमीशन!

संासद, विधायक, डीएम, चेयरमैन, ईओ, जेई के नाम पर लेते 54 फीसद कमीशन!

-सांसद और विधायक को दो-दो फीसद, डीएम को दस, चेयरमैन और जेई को 15-15 फीसद, सचिवालय को दस सहित कुल 54 फीसद कमीशन में जाता

-जांच अधिकारी एडीएम के सामने शिकायतकर्त्ता नंदलाल वर्मा ने खोली धीरसेन निषाद, प्रेम प्रकाश पटेल, हरीश चौधरी और अजीत की खोली पोल

-कमीशन का आडियो भी सुनाया और उपलब्ध कराया, आडियो सुन हैरान रह गए एडीएम और ईओ से कहा कि अगर दो दिन में निस्तारण नहीं किया तो एफआईआर के आदेश  दे दिए जाएगें

-शिकायतकर्त्ता ने स्पष्ट किया कि उसे बकाया का साढ़े छह लाख नहीं चाहिए, उसे तो एफआईआर चाहिए, कहा कि लगातार उसे जान से मारने की धमकी मिल रही, अगर उसके साथ कोई अप्रिय घटना होती है, तो चारों को जिम्मेदार माना जाए

-कमीशन के मामले में नगर पंचायत रुधौली के चेयरमैन ने जिला पंचायत अध्यक्ष को भी पीछे छोड़ दिया


बस्ती। अब आप लोग समझ ही गए होगें कि क्यों नहीं नगर पंचायतों और नगर पालिका के निर्माण कार्यो की जांच होती? इस लिए नहीं होती क्यों कि सांसद और विधायक को दो-दो फीसद, डीएम को दस, चेयरमैन और जेई को 15-15 फीसद, सचिवालय के नाम पर दस फीसद सहित कुल 54 फीसद कमीशन लिया जाता है, ठेकेदार का कम से कम दस फीसद लाभांश सहित कुल 64 फीसद कमीशन में चला गया तो क्या 36 फीसद धन में 100 फीसद का काम हो सकता हैं? यानि एक लाख के काम को क्या 36 हजार में किया जा सकता? इतनी छोटी सी गणित का हल केजी क्लास का बच्चा भी हल कर सकता है। इसका खुलासा हमने नहीं बल्कि नगर पंचायत रुधौली के उस नंदलाल वर्मा नामक ठेकेदार ने जांच अधिकारी एडीएम के सामने दिए गए बयान में किया। एडीएम को वह आडियो भी सुनाया जिसमें चेयरमैन यह कह रहे हैं, कि जो दो लाख तुमने दिया, उसे तुमने हमको नहीं दिया, बल्कि वह पैसा टेजरी यानि डीएम को जाता है। आडियो सुनने के बाद एडीएम ने भी माना कि चेयरमैन और बाबू गलत है। इसके लिए उन्होंने ईओ से कहा कि अगर दो दिन में इसका निस्तारण नहीं किया तो एफआईआर के आदेष हो जाएगे। शिकायतकर्त्ता का कहना है, कि हमको अपना साढ़े छह लाख अब नहीं चाहिए, हम्हें तो चेयरमैन, बाबू, हरीश चौधरी और अजीत के खिलाफ एफआईआर चाहिए। यह भी कहा कि उसे निरतंर शिकायत वापस न लेने की दशा में जान से हाथ धो बैठने की धमकी दी जा रही है। कहा कि कमीशन का यह खेल सभी नगर पंचायतों और नगर पालिका में हो काफी पहले से हो रहा है। अन्य का कमीशन लेना तो समझ में आता है, लेकिन सांसद और विधायकों का कमीशन लेना जनता के समझ से परे है। सांसद और विधायकों का कमीषन का यह खेल क्षेत्र पंचायतों में भी होता है। अब सवाल उठ रहा है, कि क्या भाजपा शासित नगर पंचायत और क्षेत्र पंचायत भी सपा के सांसद और विधायकों को कमीशन देते होगें, भाजपा के चारों विधायकों के हारने का  बाद यह सवाल उठा था, कि अब किसको कमीशन जाएगा, निर्णय हुआ कि भले ही चाहे भाजपा के विधायक हार गए, लेकिन कमीशन तो पूर्व विधायकों को ही जाएगा। भाजपा के सांसद के हारने के बाद फिर सवाल उठा कि कमीशन किसको जाएगा। अब जरा अंदाजा लगाइए कि जिन विधायकों और सांसद की जिम्मेदारी भ्रष्टाचार को समाप्त करने की है, वही जब भ्रष्टाचार में लिप्त रहेगें तो भ्रष्टाचार पर लगाम कैसे और कौन लगाएगा? भ्रष्टाचार पर सदन और सार्वजनिक स्थलों पर लंबे-लंबे भाषण देने वाले जनप्रतिनिधियों का सच अब धीरे-धीरे जनता के सामने आने लगा है। मीडिया बार-बार जनप्रतिनिधियों से यह सवाल करती आ रही है, कि आप लोग क्यों नहीं जिले को भ्रष्टाचार के चंगुल से मुक्त कराते? यकीन मानिए यह लोग हां या न में भी जबाव नहीं देते। आज जो मनरेगा में भ्रष्टाचार को लेकर पूरे देश में जिले की बदनामी हो रही हैं, उसका कारण जनप्रतिनिधियों का मौन रहना रहा है। जनप्रतिनिधियों ने थोड़े से लाभ के लिए पूरे जिले को भ्रष्टाचार में झांेक दिया। रही सही कसर अधिकारियों ने पूरा कर दिया। विधायक राजेंद्र प्रसाद चौधरी ने कहा कि अगर पटेल मेरे नाम का गलत इस्तेमाल कर रहा है। जो काम भाजपा के विधायक और सांसद ने किया वहीं काम विपक्ष के जनप्रतिनिधि कर रहें हैं। इस प्रकरण में जितने लोग भी फंस रहे हैं, वे सभी समझौता/सौद कराने में

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