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तहसीलदार साहब नहीं चलेगा वकीलों के हड़ताल का बहाना, कब्जा हटवाईए, वरना...

तहसीलदार साहब नहीं चलेगा वकीलों के हड़ताल का बहाना, कब्जा हटवाईए, वरना...

-तहसीलदार हरैया को कड़ी फटकार लगाते हुए हाईकोर्ट ने जारी किया कारण बताओ नोटिस

-बैदोलिया भारीनाथ गांव में दलसिंगार ने 20 साल से बंजर और नवीन परती की जमीन पर मकान बनवा कर कब्जा कर रखा

-सालिगराम यादव ने कब्जा हटवाने के लिए एक नहीं दो नहीं बल्कि दर्जनों बार तहसीलदार को लिखकर दिया, फिर भी कब्जा नहीं हटा

-कब्जा हटवाने के लिए शिकायतकर्त्ता ने अधिवक्ता केएल तिवारी का सहारा लिया, और उनके जरिए जनहित याचिका दायर किया,

-हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी तहसीलदार ने कब्जा नहीं हटवाया, बल्कि वकीलों के हड़ताल का बहाना बनाते रहे

-पुनः याचिका दायर की गई, जिसमें हाईकोर्ट ने तहसीलदार को कड़ी फटकार लगाते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया


बस्ती। सवाल उठ रहा है, कि गांव का व्यक्ति क्यों सरकारी जमीनों पर से कब्जा हटाने के लिए बार-बार पीआईएल दाखिल करेगा? क्या पीआईएल के बिना राजस्व के अधिकारी कब्जा नहीं हटवाएगें? क्या कब्जा हटवाने के लिए दिए गए दर्जनों प्रार्थना पत्र का कोई मतलब नहीं? अगर पीआईएल दाखिल के बाद ही कब्जा हटना है, तो क्यों कोई बार-बार शिकायत करेगा? सबसे बड़ा सवाल यह है, कि जो कब्जा 20 सालों में डीएम, एसडीएम और तहसीलदार नहीं हटवा सके, वह कब्जा क्यों हाईकोर्ट के डंडा चलते ही एक घंटे में खाली हो जाता है? अगर डीएम, एसडीएम और तहसीनदार को कब्जा हटवाने के लिए जाना पड़े तो इसका मतलब यह हुआ कि पूरी तहसील कब्जा करने वालों के हाथों में बिकी हुई है। जिस तरह बार-बार हाईकोर्ट के आदेश पर अधिकारी कब्जा हटवाने जा रहे हैं, उससे लगता है, कि तहसील प्रशासन सरकारी जमीनों को सुरक्षित रखने में विफल है। जब तक हाईकोर्ट कब्जा के मामले में एलएमसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगा, तब तक प्रधान और लेखपाल मिलकर कब्जा करवाते रहेगें। कोर्ट अगर वाकई सरकारी जमीनों को सुरक्षित रखने के मामले में गंभीर हैं, तो सबसे पहले प्रधान और लेखपाल के खिलाफ कार्रवाई करने का संदेश देना होगा। चूंकि हाईकोर्ट कब्जा हटवाने तक ही सीमित रह जाता है, इस लिए प्रधान और लेखपाल मलाई काट रहें है। पीआईएल तो पूरे एलएमसी के खिलाफ दाखिल होना चाहिए। जिन तहसीलों और एलएमसी की जिम्मेदारी सरकारी जमीनों पर कब्जा न होने देने की है, वही जमीनों को भूमाफियों के हाथों बेच रहे है। बहुत कम ऐसे प्रधान होगें जिन्होंने सरकारी जमीनों पर कब्जा करने वालों के खिलाफ वाद दाखिल किया हो। जितने भी वाद या पीआईएल दाखिल हो रहे हैं, वे सभी गांव वाले कर रहे है।

हरैया तहसील के बैदोलिया भारीनाथ गांव के दलसिंगार के द्वारा दशकों वर्ष पूर्व से गाटा संख्या 94 (नवीन परती) व 95 (बंजर) पर पक्का मकान व टीन शेड बनाकर कब्जा कर लिया गया था, जिसकी शिकायत गांव के कुछ लोगों द्वारा संबंधित अधिकारियों से करते हुए कब्जा हटवाने की मांग की गई थी। लेकिन अधिकारियांे के द्वारा मामले को संज्ञान में नहीं लिया गया, जिससे क्षुब्ध होकर गांव के सालिकराम यादव के द्वारा वर्ष 2023 में अपने ’अधिवक्ता के.एल.तिवारी’ के माध्यम से जनहित याचिका नंबर 2718-2023 (सालिकराम यादव बनाम सरकार व अन्य) दायर कर कब्जा हटाये जाने की याचना की, जिसकी सुनवाई करते हुए माननीय न्यायालय ने तीन महीने के अंदर कार्रवाई करने का तहसीलदार को आदेश दिया था। मगर, तहसीलदार हरैया के द्वारा तहसील बार एसोसिएशन के हड़ताल का हवाला देते हुए कार्रवाई बाधित होने की बात कही। हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में अभी तक कोई कार्यवाही न किए जाने से क्षुब्ध होकर पुनः याची व अन्य के द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष अपने अधिवक्ता के माध्यम से जनहित याचिका नंबर 1420-2025 (सालिकराम व अन्य बनाम सरकार व अन्य) दायर कर पुनः कब्जा हटाने की याचना की गई, जिसकी सुनवाई दिनांक 28-05-2025 को करते हुए उच्चन्यायालय ने तहसीलदार हरैया को कड़ी फटकार लगाते हुए नोटिस जारी करते हुए कहा कि तहसीलदार, हरैया, जिला बस्ती, परसों अर्थात् 30. मई 25 तक अपने शपथ पत्र में कारण बताएं कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अवहेलना करने तथा बार एसोसिएशन द्वारा व्यावसायिक कर्तव्यों से विरत रहने के लिए हड़ताल के आह्वान को स्वीकार करने के कारण, ’क्यों न  तहसीदार के विरुद्ध उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई की संस्तुति कर दी जाए।


 

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