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जब वकील साहब ठेकेदार बनेगे तो मार खाएगें ही!

-क्लाइंट और वकील में विष्वास बना रहे, इसके लिए जरुरी है, कि अधिवक्ता केवल अपने व्यवसाय से ही मतलब रखें

-जिस दिन अधिवक्ता न्यायिक आदेश कराने का ठेका लेना बंद कर देगें उस दिन किसी क्लांइट की हिम्मत नहीं पड़ेगी कि वकील साहब लोगों को बुराभला कह सके, मारना पिटना तो बहुत दूर की बात

-अगर किसी अप्रिेय घटना या विवाद से बचना है, तो अधिवक्ताओं को प्योर प्रोफेशनल रर्वैया अपनाना होगा

-मुवक्लिों का आवष्यकता से अधिक उम्मीद करना और वकीलों का क्षमता से अधिक ठेका लेना ही विवाद और मारपीट का कारण बनने लगा

-चकबंदी के अधिवक्ता जिस तरह बिचौलिये की भूमिका निभा रहे हैं, उसके चलते कालेकोट वालों की अधिक बदनामी हो रही

बस्ती। आज जो अधिवक्ताओं और मुवक्लिों के बीच में अविष्वास का संकट खड़ा है, उसके लिए उन अधिवक्ताओं को जिम्मेदार माना जा रहा है, जो शार्ट कट के जरिए अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहते है। कहा भी जा रहा है, कि जब अधिवक्ता ठेकेदार की भूमिका निभाने लगेंगे तो सवाल भी उठेगा और कालेकोट पर दाग भी लगेगा। क्लाइंट और वकील में विष्वास बना रहे, इसके लिए जरुरी है, कि अधिवक्ता केवल अपने व्यवसाय से ही मतलब रखें। जिस दिन अधिवक्ता न्यायिक आदेश कराने का ठेका लेना बंद कर देगें उस दिन किसी क्लांइट की हिम्मत नहीं पड़ेगी कि वकील साहब लोगों को बुराभला कह सके, मारना पिटना तो बहुत दूर की बात है। अगर किसी अप्रिेय घटना या फिर किसी विवाद से बचना है, तो अधिवक्ताओं को प्योर प्रोफेशनल रर्वैया अपनाना होगा। मुवकिलों का आवष्यकता से अधिक उम्मीद करना और वकीलों का क्षमता से अधिक ठेका लेना ही विवाद और मारपीट का कारण बनता जा रहा। यह भी सही है, कि अविष्वास का संकट चंद अधिक्ताओं के कारण ही खड़ा हुआ। अधिकांष ऐसे अधिवक्ता आज भी है, जिनपर क्लांइट भगवान से अधिक विष्वास करता है। अब जरा उस क्लाइंट की मनोदशा को समझने का प्रयास किजीए जो अपनी सारी जायदाद और इज्जत अधिवक्ता के हवाले यह सोचकर कर देता है, कि उसके साथ कभी धोखा नहीं होगा, लेकिन जब क्लांइट को यह पता चलता है, जिसे वह भगवान समझकर सबकुछ सौंप दिया, उसी ने ही उसके साथ डबल क्रास कर दिया, जाहिर सी बात है, कि ऐसे में वह कुछ भी करना चाहेगा। फिल्मी स्टाइल की तरह बदला भी लेने की सोचेगा। अनेक अधिवक्ता आज भी ऐसे हैं, जिन्होंने अपने क्लांइट के भरोसे का खून कभी नहीं किया। ऐसे लोगों को ना तो दौलत ही खरीद पाई और ना ही उन्हें जान से मार देने की धमकी ही डरा पाई। न्यायालयों में भेंट की परम्परा और फिजूल खर्ची ने भी विष्वास का संकट खड़ा किया है।

दो स्मार्ट महिलाओं ने जिस तरह अधिवक्ता विजय यादव पर उनके ही तख्ते पर हमला बोला, और मारापीटा गया, उससे अधिवक्ता वर्ग की काफी बदनामी हुई, मीडिया में खबर आने के बाद हर कोई इस घटना की बाते कर रहा है, और सच जानने के लिए एक दूसरे अधिवक्ता से पूछताछ कर रहे है। जो बात सामने आई, उसे अगर सच माना जाए तो वकील साहब ने दोनों महिलाओं को तख्ते पर बुलाया था, महिलाएं खुद नहीं गई थी, बल्कि दोनों को बुलाया गया था, वहां पर अचानक कौन सी ऐसी बात हो गई, जिसके चलते इतना बड़ा कांड हो गया। इसका पता नहीं चल पाया। इस घटना के बाद इज्जत तो अधिवक्ताओं की ही दांव पर लगी हुई है, और इज्जत बचाने के लिए अधिवक्ताओं को ही आगे आना होगा। सिविल बार एसोसिएशन की बैठक बुलाकर इस पर चर्चा करनी चाहिए, और एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए, जिसमें सभी अधिवक्ताओं से यह कहा जाए कि आप लोग अपना काम ईमानदारी से करिए, क्लांईट का विष्वास जीतिए। अपने काम से ही मतलब रखिए। इसे लेकर आम लोगों के बीच जो चर्चा हैं, उसे लेकर घटना पर तो अफसोस जताया गया, लेकिन यह भी कहा गया कि यह लोग इसी के लायक हैं, कहते हैं, कि जिस तरह पुलिस वालों को कोई अपना मकान किराए पर नहीं देता ठीक उसी तरह वकीलों को भी नहीं देता। अधिवक्ताओं को उन कारणों की तलाश करनी होगी, जिसमें एक अधिवक्ता मार खाता है, और जिसे लेकर अधिकांश लोग यह कहते हैं, कि यह लोग इसी लायक है। एक पीड़ित डाक्टर ने कहा कि उसके वकील ने रजिस्टी कराने के लिए पांच सौ लिया, कुछ दिन बाद कहा कि रजिस्टी वापस आ गई, इस लिए पांच सौ और दीजिए, फिर दे दिया, फिर कहा कि साहब से बात हो गई है, अपने पक्ष में आदेश करने को साहब 50 हजार मांग रहे है। क्लांइट को लगा कि उसके साथ धोखा हो रहा है, तो वह साहब के पास खुद पहुंच गया, तब साहब ने हथेली पर लिखा कि 50 हजार नहीं 80 हजार चाहिए। क्लांइट को लगा कि इसका मतलब उसका काम नहीं होता और वकील साहब उसका 50 हजार भी रख लेते और फिर कोई बहाना बना दें। क्लांइट कहने लगे कि अगर साहब, वकील साहब के 50 हजार की पुष्टि कर देते तो मान लिया जाता कि वकील साहब झूठ नहीं बोल रहे। यह मामला सीओ चकबंदी न्यायालय का है, जहां पर डैष पर ही खुले आम दोनों पक्षों में वकील साहबों के जरिए बोली लगाई जाती है। चकबंदी के अधिवक्ता जिस तरह खुले आम बिचौलिया बनकर ठेकेदार की भूमिका निभा रहे हैं, उसके चलते कालेकोट वालों की अधिक बदनामी हो रही है। ऐसे लोगों की रोजी रोटी उनकी ईमानदारी पर नहीं बल्कि बेईमानी पर टिकी हुई है। यह भी सही है, कि अविष्वास का संकट चंद अधिक्ताओं के चलते ही खड़ा हुआ। अधिकांश ऐसे अधिवक्ता आज भी है, जिनपर क्लांइट भगवान से अधिक विष्वास करता है। न्यायालयों में भेंट की परम्परा और फिजूल खर्ची ने भी क्लाइंट और वकील के बीच विष्वास का संकट खड़ा कर दिया।

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